एक बूंद पानी। अनगिनत बूंदों के समूह से बना अथाह जल सागर। सूर्य की किरणों से वाष्प में परिणत हुईं । भाग्यशाली बूंदों को मिला कैलाश का सहारा और परिणत हो गईं बर्फ की शिलाओं में। विधाता का खेल। वापस उसी सूर्य की किरणों के कारण जल का रूप लिया और प्रादुर्भाव हुआ जल स्त्रोत का। २५०० किलोमीटर से ज्यादा लंबा सफर तय करना है और साथ ही २२००० फीट नीचे भी उतरना है। कहाँ समय है उसके पास? बड़ी बड़ी चट्टानों को काटती, उनके बीच से रास्ता निकालती, इतराती, इठलाती, कूदती, फांदती आगे बढ़ती है। रास्ते में बहुमूल्य एवं दुर्लभ जड़ी बूटियों को मथते हुए अपने में समेटती भी है। ६७ मीटर प्रति किलोमीटर की गति से उतरती हुई समतल भूभाग पर पहुंचती है। समुद्र में वापस मिलने के पूर्व २९ बड़े शहरों, २३ छोटे शहरों तथा अन्य ४८ कस्बों को देखना भी है और साथ ही दस लाख वर्ग किलोमीटर की भूमि को उपजाऊ भी बनाना है। अपनी इस भाग दौड़ में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि चलते चलते उसे महादेव के चरणों को धोना भी है। उत्तर से दक्षिण की और जाती हुई अचानक वह घूम जाती है और वापस अपने उदगम दिशा की ओर, दक्षिण से उत्तर की तरफ़ दौड़ पड़ती है। महादेव की नगरी को देखने, महादेव के चरण धोने।
आप शायद समझ ही गए हैं। जी हाँ, मैं गंगा की बात कर रहा हूँ। गंगा जिसे हमने 'माँ गंगा', 'गंगा मैया' का सम्बोधन दिया और देवी मान कर पूजा की। हाँ, गंगा हमारी माता है, देवी स्वरूपा है, उसी की करुणा से भारत भूमि इतनी उपजाऊ एवं हरियाली है। लेकिन क्या हम उसके सपूत हैं? माता ने हमें इतना कुछ दिया, उसके बदले हमने उस के साथ कैसा व्यवहार किया? यह सही है कि गंगोत्री से हमने उसे पूजना शुरू किया, हरिद्वार में आरती उतारी, इलाहबाद को प्रयाग राज का नाम दिया, काशी में उसे भवतारिणी बताया, गंगासागर में हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन मेले का आयोजन किया। लेकिन उसकी दुःख भरी कहानी भी गंगोत्री से ही प्रारम्भ हो जाती है। संसार की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में गंगा का भी नाम है। अपने श्रद्धा सुमन को हम प्लास्टिक के बैग में साथ लेकर जाते हैं और पुष्प पूजा के बाद उस प्लास्टिक को भी गंगा में प्रवाहित कर देते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए जले, अधजले एवं अनजले शवों को भी गंगा में बहाने में जरा भी संकोच नहीं करते। जानवरों को नहलाने एवं कपड़ों कों धोने में तो हमें जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती। ढेर के ढेर फूल चढ़ा कर हम जहाँ एक तरफ़ पूजा करते हैं वहीं उसे गन्दा भी करते हैं। हम अपनी बाहरी गन्दगी के अलावा आतंरिक गंदगी भी डालने में नहीं हिचकिचाते। लेकिन गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है कपड़े एवं चमड़े के उद्योग से निकली हुई रासायनिक कीचड़ के कारण तथा शहरों एवं कस्बों से निकली हुई गन्दी नालियों से। ८०% प्रदूषण इन शहरों की गंदगियों को आत्मसात करने से हुई है।
गंगा action plan के अंतर्गत सरकार ने १००० करोड़ रुपये व्यय किए। लेकिन अधिकांश रुपया बिना कुछ प्रभावित किए बह गया। लेकिन आशा की किरणें आज भी हैं। बहुत से सार्वजनिक संगठन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में लगे हुए हैं। वाराणसी में संकट मोचन मन्दिर के महन्त डा. वीर भद्र मिश्र उन में से एक हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिक डा. बिल ओसवाल्ड के साथ मिल कर डा. मिश्र इस योजना पर काम कर रहे हैं। डा. मिश्र ने संकट मोचन फाउन्देशन के नाम से धर्म निरपेक्ष एन. जी.ओ. संस्था बनाई है। इस फाउन्देशन के तहत उनहोंने 'स्वच्छ गंगा' आन्दोलन भी छेड़ रखा है जिसे भारत के अलावा अमेरिका, स्वीडेन, ब्रिटेन एवं आस्ट्रेलिया से भी समर्थन एवं सहयोग प्राप्त है। डा. मिश्र का नाम United Nations के Environmental Program's Global 500 में दर्ज है। Time पत्रिका ने Hero of the Planet का पुरस्कार भी दिया है। किसी श्रद्धालू ने पूछा -'डा. मिश्र what I can do for making Ganga clean?' उन्ही के शब्दों में -'It cannot be cleaned just by technology, just by setting up the right kind of infrastructure, there has to be an intermixing of culture, faith, science and technology. We have that kind of relation with Ganga.' उनहोंने आगे कहा -'This is not visionary. It is simply essential.' उनहोंने अंत में कहा-' To clean the river is a natural extension of a religious conviction.'
तो श्रद्धालुओं आपके पास जो है वही दें। धन, समय, तकनीक, और कुछ नहीं तो समुचित एवं सच्ची भावना तो दे ही सकते हैं। सच्ची लगन की बस एक बूंद।
आप शायद समझ ही गए हैं। जी हाँ, मैं गंगा की बात कर रहा हूँ। गंगा जिसे हमने 'माँ गंगा', 'गंगा मैया' का सम्बोधन दिया और देवी मान कर पूजा की। हाँ, गंगा हमारी माता है, देवी स्वरूपा है, उसी की करुणा से भारत भूमि इतनी उपजाऊ एवं हरियाली है। लेकिन क्या हम उसके सपूत हैं? माता ने हमें इतना कुछ दिया, उसके बदले हमने उस के साथ कैसा व्यवहार किया? यह सही है कि गंगोत्री से हमने उसे पूजना शुरू किया, हरिद्वार में आरती उतारी, इलाहबाद को प्रयाग राज का नाम दिया, काशी में उसे भवतारिणी बताया, गंगासागर में हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन मेले का आयोजन किया। लेकिन उसकी दुःख भरी कहानी भी गंगोत्री से ही प्रारम्भ हो जाती है। संसार की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में गंगा का भी नाम है। अपने श्रद्धा सुमन को हम प्लास्टिक के बैग में साथ लेकर जाते हैं और पुष्प पूजा के बाद उस प्लास्टिक को भी गंगा में प्रवाहित कर देते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए जले, अधजले एवं अनजले शवों को भी गंगा में बहाने में जरा भी संकोच नहीं करते। जानवरों को नहलाने एवं कपड़ों कों धोने में तो हमें जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती। ढेर के ढेर फूल चढ़ा कर हम जहाँ एक तरफ़ पूजा करते हैं वहीं उसे गन्दा भी करते हैं। हम अपनी बाहरी गन्दगी के अलावा आतंरिक गंदगी भी डालने में नहीं हिचकिचाते। लेकिन गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है कपड़े एवं चमड़े के उद्योग से निकली हुई रासायनिक कीचड़ के कारण तथा शहरों एवं कस्बों से निकली हुई गन्दी नालियों से। ८०% प्रदूषण इन शहरों की गंदगियों को आत्मसात करने से हुई है।
गंगा action plan के अंतर्गत सरकार ने १००० करोड़ रुपये व्यय किए। लेकिन अधिकांश रुपया बिना कुछ प्रभावित किए बह गया। लेकिन आशा की किरणें आज भी हैं। बहुत से सार्वजनिक संगठन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में लगे हुए हैं। वाराणसी में संकट मोचन मन्दिर के महन्त डा. वीर भद्र मिश्र उन में से एक हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिक डा. बिल ओसवाल्ड के साथ मिल कर डा. मिश्र इस योजना पर काम कर रहे हैं। डा. मिश्र ने संकट मोचन फाउन्देशन के नाम से धर्म निरपेक्ष एन. जी.ओ. संस्था बनाई है। इस फाउन्देशन के तहत उनहोंने 'स्वच्छ गंगा' आन्दोलन भी छेड़ रखा है जिसे भारत के अलावा अमेरिका, स्वीडेन, ब्रिटेन एवं आस्ट्रेलिया से भी समर्थन एवं सहयोग प्राप्त है। डा. मिश्र का नाम United Nations के Environmental Program's Global 500 में दर्ज है। Time पत्रिका ने Hero of the Planet का पुरस्कार भी दिया है। किसी श्रद्धालू ने पूछा -'डा. मिश्र what I can do for making Ganga clean?' उन्ही के शब्दों में -'It cannot be cleaned just by technology, just by setting up the right kind of infrastructure, there has to be an intermixing of culture, faith, science and technology. We have that kind of relation with Ganga.' उनहोंने आगे कहा -'This is not visionary. It is simply essential.' उनहोंने अंत में कहा-' To clean the river is a natural extension of a religious conviction.'
तो श्रद्धालुओं आपके पास जो है वही दें। धन, समय, तकनीक, और कुछ नहीं तो समुचित एवं सच्ची भावना तो दे ही सकते हैं। सच्ची लगन की बस एक बूंद।