अमृत लाल नगर
दुनिया
धर्मक्षेत्र है. पवित्र हृदय से बढकर और कोई प्रभुमूर्ति नहीं, सत्य ही अविनश्वर
धर्मग्रन्थ है. स्वार्थ बुद्धि की बलि ही सच्ची बलि है.
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इंसान
कमजोरियों का पुतला है इसलिए सिर्फ उसकी अच्छाइयों को ही देखना चाहिए. बुराइयां
पहले अपने में देखनी चाहिए.
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एक
अंग्रेजी कहावत के अनुसार ‘इतिहास में तारीखों के आलावा और सब कुछ गलत
होता है और उपन्यास में तरीखों के आलावा और सब कुछ सच’.
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भीष्म सहनी
किसी भी
बात के लिए अधिक उत्साह नहीं दिखाना चाहिए. बहुत उत्साह दिखाओ तो ऊपर बैठे
भाग्य-देवता को अच्छा नहीं लगता.
(मय्यादास कि माढी)
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अपने
दिल की मुराद को मुहँ पर लेन से मुराद पूरी नहीं होती, मुराद को “हवा” लग
जाती है.
(मय्यादास कि माढी)
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हजारी प्रसाद द्विवेदी
इतिहास साक्षी है कि
देखी सुनी बात को ज्यों-का-त्यों कह देना या मान लेना सत्य नहीं है. सत्य वह है
जिससे लोक का अत्यधिक कल्याण होता है. ऊपर से वह जैसा भी झूठ क्यों न दिखाई देता
हो, वही सत्य है.
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खुशवंत सिन्घ
बुराई
के बारे में सजग होना अच्छाई के परिवर्धन की एक अनिवार्य शर्त है. पहले तल्ले की
कच्ची दीवारों पर दूसरी मंजिल उठाने का कोई तुक नहीं. बेहतर इसी में है कि उसे
गिरा दिया जाय.
(ट्रेन टू पाकिस्तान)
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डॉ. कुसुम असल
बहुत से सच ऐसे होते हैं उनको छुपा लेने में
ही भलाई है ...... नहीं तो इनसान पर से इनसान का ही नहीं, रिश्तों कि खूबसूरती का
भरोसा भी खत्म हो जायगा, हमेशा के लिए.
(उसके होठों का चुप)
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नरेन्द्र कोहली
यदि
पत्नी अपनी इच्छा का तनिक भी विरोध होने पर घर छोड़ कर जाने को तैयार बैठी हो तो
कैसा दांपत्य जीवन होगा.
(महासमर)
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शिव प्रसाद सिंह
आजकल साले नारे भी खूब निकले हैं. गुंडे
गुंडागर्दी के खिलाफ, बदमाश बदमाशी के खिलाफ, चोर चोरी के खिलाफ और जुल्मी जुलुम
के खिलाफ गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हैं.
(अलग अलग वैतरणी)
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पार्टी
नहीं लड़ती जुल्म के खिलाफ, आदमी लड़ता है. आदमी अगर खुद स्वार्थी, बदमाश और लुच्चा
होगा तो वह राम की ओर से भी लड़े तो उन्हें भी रावण बना कर दम लेगा.
(अलग अलग वैतरणी)
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उपेन्द्र नाथ अश्क
मनुष्य का मन अथाह समुद्र है. इसके गर्भ में
क्या है, यह सतह देख कर नहीं जाना जा सकता.
(गिरती दीवारें)
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यह कपट!
यह ऊपर से उतना कटु मालूम नहीं होता, पर जो व्यक्ति इस कपट का शिकार बनता है, जब
उस पर इसकी यथार्थता खुलती है तो उससे जो झटका लगता है, छले जाने को जो खेद उससे
होता है, वह हृदय में घाव बना देता है और वह घाव समय पा कर नासूर बन जाता है और
कपटी के क्षमा मांग लेने पर भी, उससे बदला ले लेने पर भी, नहीं मिटता.
(गिरती दीवारें)
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यशपाल
जब मनुष्य आभाव के गड्डे
में होता है, उसे असमर्थता कि दीवारें बंदी बनाये रहते हैं. उसे सफलता का कोई मार्ग
दिखाई नहीं दे सकता. साधनों कि सीढ़ी पा जाने पर मनुष्य कि दृष्टि आभाव के गड्डे से
ऊपर उठ जाती है. उसे सफलता के राजमार्ग दिखाई देने लगते हैं, महत्वाकांक्षा के शिखरों
पर चढ़ने की रहें भी दिखाई देने लगती हैं.
(झूठा सच)
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