महाभारत में
एक प्रसंग है ‘यक्ष प्रश्न’ का। यह प्रसंग उस समय का है जब पांडव
जुए में हार कर वन में वास कर रहे थे। एक दिन पांडव चलते चलते थक जाते हैं और
उन्हे बहुत प्यास लगती है। युधिष्ठिर के कहने पर भाई जलाशय की खोज करते हैं। एक एक
कर चारों छोटे भाई उस जलाशय से पानी लाने जाते हैं लेकिन कोई भी लौट कर नहीं आता। अंत
में युधिष्ठिर खुद जाते हैं। युधिष्ठिर को तब यह ज्ञात होता है कि उस जलाशय की
रक्षा एक यक्ष कर रहा है, और उस यक्ष की चेतावनी और
प्रश्नों की अवहेलना करने के कारण चार
पांडव मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं।
युधिष्ठिर यक्ष के प्रश्नों को सुनता है, उनके जवाब
देता है और अपने सब भाइयों समेत सकुशल वापस लौट आता है। जीवन के कठिन प्रश्नों को
ही तब से ‘यक्ष प्रश्न’ कहा जाने लगा।
ऐसा ही एक
कठिन या यक्ष प्रश्न मेरे सामने भी है। अपने भी शायद कई जगह पढ़ा या सुना होगा। लोग
यह कहते हैं अगर गांधी होते तो वे -
ऐसा कहते? ऐसा करते? ऐसा लिखते? ऐसा होता?
बड़े धड़ल्ले
से इस कथन का प्रयोग करते हैं और फिर अपने मन की बात कह कर उसे गांधी समर्थित
कार्य बताते हैं। मुझे यह समझ नहीं आता कि
उनके इस वक्तव्य का आधार क्या है? क्या गांधी सचमुच वैसा ही करते
जैसा यह सज्जन बता रहे हैं?
लेकिन गांधी
ने खुद लिखा और कहा है कि किस परिस्थिति में वे कब क्या करेंगे यह वे खुद नहीं
जानते। यही नहीं ऊपर से एक सी दिखने वाली परिस्थिति में भी यह आवश्यक नहीं कि वे
वही करेंगे जो उन्होने पहले लिया। शाम के धुंधलके में छिप कर, शुभचिंतकों की सलाह को दरकिनार कर, पुलिस की सहायता
को ठुकरा कर सड़क पर निकल पड़ते हैं लेकिन उसी शाम पुलिस की सहायता से छिप कर, वेश बदल
कर भाग खड़े होते हैं। गांधी यह भी कहते हैं कि जिस बात पर आज वे कायम हैं कल भी
उसी पर कायम रहेंगे, आज जिसे सत्य समझ रहे हैं कल भी उसे वैसा
ही सत्य समझेंगे यह आवश्यक नहीं है। उनका तात्पर्य केवल इतनी ही था कि आज तक की जानकारी और अनुभव के कारण वे वैसा कर, लिख या समझ रहे हैं। वे उसे पकड़ कर नहीं बैठेंगे। अपने ज्ञान और अनुभव के
अनुसार उसे बदलने में संकोच नहीं करेंगे। एक पत्रकार के प्रश्न पर उन्होने यही कहा
कि अगर उन्होने दो विरोधी बातें कही हैं तो जो बात बाद में कही गई है उसे ही सही माना जाना चाहिए। अब ऐसी परिस्थिति में ये लोग कैसे जान लेते हैं
कि गांधी होते तो क्या करते? क्या गांधी उन्हे कह गए हैं? या ये गांधी के बराबर हो गए हैं?
इन सब ‘गांधी क्या करते’ पर विचार करते हैं तब बड़ी हंसी आती
हैं। गांधी के नाम पर सबने केवल अपने अपने मन की कही और नाम गांधी का दिया। गांधी
ने, किसी को करने नहीं कहा – उन्होने खुद किया, और जब भी करने को कहा भी तो पहले खुद करके देखा और जब उन्हे लगा यह संभव है
तभी करने के लिए कहा। लेकिन यहाँ सब दूसरे को करने के लिए कहने, दूसरे के कार्य में मीन मेख
निकालने या अपने कार्य को प्रमाणित करने के लिए ही कहते पाये जाते हैं। गांधी
के नाम पर फैलाये जाने वाले भ्रम में न रहे हें। उसकी सत्यता को देखें, समझें, पढ़ें फिर माने।
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