मेरी प्रिय
कहानियाँ
लेखक : अमरकान्त
प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्स
संस्करण : 2014
मूल्य
: 195 रुपए
पृष्ट
: 127
संकलन में लेखक
की 14 छोटी कहानियाँ हैं :
1। इंटरव्यू
2। गले की
जंजीर
3। दोपहर
का भोजन
4। जिंदगी
और जोंक
5। असमर्थ
हिलता हाथ
6। मौत का
नगर
7। घुड़सवार
8। फर्क
9। कुहासा
10। गगन
बिहारी
11। बउरैया
कोदो
12। तूफान
13। कबड्डी
14। एक धनी
व्यक्ति का बयान
सबसे पहले
तो यह बता दूँ कि अमरकान्त हिन्दी के उन साहित्यकारों में हैं जिन्हे भारतीय
साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से 2009 में नवाजा गया था।
वर्तमान
संग्रह में लेखक की कई विषयों पर लिखी गई रचनाएँ सम्मिलित हैं। आम जनता की
परेशानियों का अच्छा चित्र आँका है लेखक ने। इन घटनाओं को हो सकता है हमने नहीं
देखा हो, हमने नहीं जीया हो, लेकिन सुना जरूर होगा। कई बार
अनदेखा भी किया है। लेकिन इन घटनाओं के पीछे की सच्चाई और पीड़ा को पाठक तक पहुँचाने
में लेखक सफल रहा है। गरीब को चोर समझ कर पीट पीट कर मार डालना? भीख में मिली वस्तु को चोरी का समझ कर चोरी का इल्जाम लगा देना? क्या एक सभ्य समाज की निशानी है? भूखे पेट में कुछ
डालने के लिए खाना चोरी करना? क्या अपराध है? और अगर है तो किसका – उस बच्चे का या उस समाज का जिसमें वह रहता है? जिन्हों ने इंटरव्यू के लिए जूते
घिसे हैं उन्हे ही ‘इंटरव्यू’ की
सच्चाई का दर्द महसूस होता है। ‘गले की जंजीर’ बताती है कि जब हमें उपदेश मिलते हैं तब उपदेश देने वाले हमारे लिए बच
निकलने के लिए न कोई सुराख छोड़ते हैं न कोई दरार। कुछ भी ‘करें’ या ‘करते’ दोषी तो हम ही हैं।
‘दोपहर का भोजन’ के समय सिद्धेश्वरी
ने जो किया, कितने औरतें करती हैं? कौन
कहता है कि गाँव की औरतें अनपढ़ गंवार होती है? केवल कलह, निंदा और चुगली ही करती हैं? शहर की कितने औरतें सिद्धेश्वरी
जैसी समझदार होती है? यही नहीं ‘झूठ’ और ‘सच’ में क्या फर्क है ? इस पर भी सोचने को बाध्य करती
है। कैसे परिवार को जोड़ा, और किसी को भनक भी नहीं लगी, कोई सिद्धेश्वरी से सीखे। ‘ज़िंदगी और जोंक’ का ‘रजुया’ मर गया, समाज को भी मार गया। ऐसा क्यों
होता है कि जिस सुख से हम वंचित रहते हैं
उसे दूसरे को भी नहीं भोगने देते और ‘असमर्थ हिलता हाथ’ रह जाता है। इंसान ही इंसान का दुश्मन बन दूसरे के प्राण ले लेता है और
जान भी नहीं पाता कि उसी ने प्राण लिए हैं, ‘कुहासा’ छाया रह जाता है। कई बार अपने प्यार में
हम इतने अंधे हो जाते हैं कि अपने बच्चे का सुख-दुख समझ ही नहीं पाते। जब ‘तूफान’ आता है तब उसकी भनक लगती है। लेकिन धनी व्यक्ति के बयान में लेखक ने धनी बनने
का ही नहीं बल्कि सुखी रहने का राज भी बता दिया, ‘धैर्य, प्यार व समझधारी से पोषित बुद्धि ही वह पूंजी
है, जिसका निवेश करनेवाला व्यक्ति वास्तव में धनी है, इसलिए आप बिना परिणाम की परवाह किए अपना काम करते रहने में सफल हैं’।
आशा है, आप को संग्रह की कहानियाँ पसंद आएँगी।