शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

सूतांजली, फरवरी २०२०


सूतांजली फरवरी २०२० में ३ लेख हैं और एक निवेदन ।
१.  अर्थ-काम -> धर्म -> मोक्ष
प्राय: हम इन्हे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के क्रम में जानते और बोलते हैं। लेकिन आचार्य नवनीत ने इन्हे समझाने के लिए इनका यह क्रम बताया। अपने सारगर्भित वक्तृता में इनका अर्थ और महत्व बताया।

२. श्री अरविंद का दूसरा और तीसरा पागलपन
श्री अरविंद के तीन पगलपानों में से पहले पागलपन की चर्चा जनवरी में कर चुके हैं। यहाँ उनके शेष दो पगलपानों की चर्चा है जिनका उल्लेख उन्होने अपनी पत्नी को लिखे एक पत्र में किया था।

३. चलते चलते – इन्हे भी जानिए
यह खुशी की बात है कि कुछ समय से भारत सरकार की नजर उन छोटे लोगों पर पड़ रही है जिन्हों ने बड़े काम किए।  इससे उन्हे तो प्रोत्साहन मिलता ही है, साथ ही सकारात्मक कार्य के लिए प्रेरणा भी मिलती है। जिनके पास धन है वह बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन जिनके पास धन नहीं है वह भी सामर्थ्यवान है। इच्छाशक्ति और लगन ही इसके आवश्यक अंग हैं।

४. निवेदन
सूतांजली से जुड़ने और सहयोग के लिए निवेदन

पढ़ें http://sootanjali.blogspot.com पर



शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

रसप्रिया - फणीश्वर नाथ 'रेणु'


रसप्रिया  

लेखक            : फणीश्वर नाथ रेणु   
प्रकाशक         : अरु पब्लिकेशन्स   
संस्करण         : 2014
मूल्य             : 350 रुपए
पृष्ट               : 160
संकलन में लेखक की 14 छोटी कहानियाँ हैं :
1। बट बाबा
2। धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे
3। तीसरी कसम अर्थात मारे गए गुलफाम
4। ठेस
5। तौबे एकला चलो रे
6। आत्म-साक्षी
7। विकट संकट
8। विघटन के क्षण
9। अग्निखोर
10। भित्तिचित्र की मयूरी  
11। रसप्रिया

बिना किसी लाग-लपट के सीधे सीधे अपनी बात कही है लेखक ने, इन कहानियों में। समाज के निचले, उपेक्षित, शोषित वर्ग के अनुभवों, भोगे हुए यथार्थ और पीड़ाओं का चित्रण है। पाठकों को एक वर्ग को ऐसे तथ्य पढ़ने से परहेज है तो दूसरा वर्ग इसे ही असली साहित्य समझता है। आप कौन से वर्ग में हैं?

तीसरी कसम अर्थात मारे गए गुलफाम पर ही राजकपूर अभिनीत हिन्दी सिनेमा तीसरी कसम बनी और अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत हुई थी।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

मेरी प्रिय कहानियाँ - अमरकान्त


मेरी प्रिय कहानियाँ  

लेखक            : अमरकान्त  
प्रकाशक         : राजपाल एण्ड सन्स   
संस्करण         : 2014
मूल्य             : 195 रुपए
पृष्ट               : 127
संकलन में लेखक की 14 छोटी कहानियाँ हैं :
1। इंटरव्यू
2। गले की जंजीर
3। दोपहर का भोजन
4। जिंदगी और जोंक
5। असमर्थ हिलता हाथ
6। मौत का नगर
7। घुड़सवार
8। फर्क
9। कुहासा
10। गगन बिहारी  
11। बउरैया कोदो
12। तूफान
13। कबड्डी
14। एक धनी व्यक्ति का बयान

सबसे पहले तो यह बता दूँ कि अमरकान्त हिन्दी के उन साहित्यकारों में हैं जिन्हे भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से 2009 में नवाजा गया था।

वर्तमान संग्रह में लेखक की कई विषयों पर लिखी गई रचनाएँ सम्मिलित हैं। आम जनता की परेशानियों का अच्छा चित्र आँका है लेखक ने। इन घटनाओं को हो सकता है हमने नहीं देखा हो, हमने नहीं जीया हो, लेकिन सुना जरूर होगा। कई बार अनदेखा भी किया है। लेकिन इन घटनाओं के पीछे की सच्चाई और पीड़ा को पाठक तक पहुँचाने में लेखक सफल रहा है। गरीब को चोर समझ कर पीट पीट कर मार डालना? भीख में मिली वस्तु को चोरी का समझ कर चोरी का इल्जाम लगा देना? क्या एक सभ्य समाज की निशानी है? भूखे पेट में कुछ डालने के लिए खाना चोरी करना? क्या अपराध है? और अगर है तो किसका – उस बच्चे का या उस समाज का जिसमें वह रहता है?  जिन्हों ने इंटरव्यू के लिए जूते घिसे हैं उन्हे ही इंटरव्यू की सच्चाई का दर्द महसूस होता है। गले की जंजीर बताती है कि जब हमें उपदेश मिलते हैं तब उपदेश देने वाले हमारे लिए बच निकलने के लिए न कोई सुराख छोड़ते हैं न कोई दरार। कुछ भी करें या करते दोषी तो हम ही हैं। दोपहर का भोजन के समय सिद्धेश्वरी ने जो किया, कितने औरतें करती हैं? कौन कहता है कि गाँव की औरतें अनपढ़ गंवार होती है? केवल कलह, निंदा और चुगली ही करती हैं? शहर की कितने औरतें सिद्धेश्वरी जैसी समझदार होती है? यही नहीं झूठ  और सच में क्या फर्क है ? इस पर भी सोचने को बाध्य करती है। कैसे परिवार को जोड़ा, और किसी को भनक भी नहीं लगी, कोई सिद्धेश्वरी से सीखे। ज़िंदगी और जोंक का रजुया मर गया, समाज को भी मार गया।  ऐसा क्यों होता है कि  जिस सुख से हम वंचित रहते हैं उसे दूसरे को भी नहीं भोगने देते और असमर्थ हिलता हाथ रह जाता है। इंसान ही इंसान का दुश्मन बन दूसरे के प्राण ले लेता है और जान भी नहीं पाता कि उसी ने प्राण लिए हैं, कुहासा छाया रह जाता है। कई बार अपने प्यार में हम इतने अंधे हो जाते हैं कि अपने बच्चे का सुख-दुख समझ ही नहीं पाते। जब तूफान आता है तब उसकी भनक लगती है।  लेकिन धनी व्यक्ति के बयान में लेखक ने धनी बनने का ही नहीं बल्कि सुखी रहने का राज भी बता दिया, धैर्य, प्यार व समझधारी से पोषित बुद्धि ही वह पूंजी है, जिसका निवेश करनेवाला व्यक्ति वास्तव में धनी है, इसलिए आप बिना परिणाम की परवाह किए अपना काम करते रहने में सफल हैं   

आशा है, आप को संग्रह की कहानियाँ पसंद आएँगी।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

भाग्य-रेखा - भीष्म साहनी


भाग्य-रेखा
लेखक            : भीष्म साहनी
प्रकाशक         : राजकमल प्रकाशन
संस्करण         : 1953 1ला
                     1997 राजकमल का 1ला
                     2013 4था
मूल्य             : 195 रुपए
पृष्ट               : 124

संकलन में लेखक की 14 छोटी कहानियाँ हैं :
1। जोत
2। अशांत रुहें
3। शिष्टाचार
4। अनोखी हड्डी
5। तमगे
6। क्रिकेट मैच
7। मुर्गी की कीमत
8। नीली आँखें
9। ऊब
10। गंगो का जाया
11। भाग्य-रेखा
12। घर-बेघर
13। खून के छींटे
14। घर की इज्जत

पहली कहानी जोत जहां रूढ़िवाद और आधुनिकता के मध्य गाँव के किसान की कहानी है तो अंतिम कहानी घर की इज्जत इस रूढ़िवाद सोच का शालीनता से विरोध की घटना है। जानकू मेहनत करता है लेकिन उसका श्रेय देवता को देता है वहीं सुनन्दा बिना किसी प्रत्यक्ष संघर्ष के शालीनता से विरोध कर श्वसुर की उपस्थिती में सार्वजनिक नाटक में मुख्य भूमिका निभाती है। गाँव गंवाई के गंवार हेतू का शिष्टाचार देख कर श्रीमान, स्तब्ध और हैरान उस उजड्ड, गँवार के मुंह की ओर ताकने लगेअनोखी हड्डी सुझाता है कि सही तरीके से उपदेश देने पर उसका असर भी होता है और सामर्थ्यवान भी अनुकरण करते हैं। ऊब देश की शिक्षा के ऊबाऊपन की चर्चा करता है तो गरीबी पर कटाक्ष भी। शेष कहानियाँ भी समयानुकुल समाज का बिम्ब प्रस्तुत करती हैं।

इस पुस्तक के अब तक पाँच संस्कारण पाठकों के पास पहुँच चुके हैं। यह अपने आप में इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। संकलन की सभी कहानियाँ पठनीय हैं और यह चरितार्थ करती है कि साहित्य समाज का दर्पण है। मुझे विश्वास है आप को संग्रह की कहानियाँ पसंद आएँगी।