प्रश्न : (1)
तनाव, दबाव और यातना - हर इंसान को इस
समस्या का सामना करना पड़ता है। इनसे कैसे बचें?
(2) विवाह
करके योग की तरफ चलते हुए मंजिल तक पहुंचना या फिर बिना विवाह किये योग की तरफ
चलना; कौन सा तरीका सबसे अच्छा है?
श्रद्धेय श्री सद्गुरु जी का उत्तर : आप तनाव और दबाव की समस्या को सार्वजनिक और सार्वभौमिक क्यों मान रहे हैं? आप तनाव और दबाव में हैं।
क्या आपने अपनी पत्नी और बच्चों के नाम दबाव, तनाव और यातना रखे हैं? पत्नी और दो बच्चे और उनके नाम दबाव, तनाव और यातना, क्यों? यही तो! मैं नहीं चाहता कि आप योग के रास्ते पर चलें। आप जिस भी राह पर चलें अपने साथ योग को लेकर चलें। योग उस रास्ते को खूबसूरत और आसान बना देगा। आप चाहे उत्तर की ओर जाएँ या दक्षिण की ओर। अगर अंधेरा होता है तब आप टॉर्च लेकर जाते हैं। उत्तर की ओर जाने वाले टॉर्च लेकर चलते हैं और दक्षिण की ओर जाने वाले अंधेरे के साथ चलते हैं; क्या ऐसा होता है? नहीं।
आप शादी करते हैं, अपनी जरूरतों की वजह से। आप अपनी पत्नी के साथ पैदा नहीं हुए थे। हुए थे क्या? नहीं। आप इस तरह पैदा हुए थे, एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में। चूंकि आपकी कुछ जरूरतें हैं; शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक शायद आर्थिक भी हो सकती हैं। इस प्रकार कई जरूरतें हो सकती हैं। आम तौर पर शादी को एक ऐसा पैकेज माना जाता है जो इन सभी जरूरतों को पूरा करता है। शारीरिक जरूरतें, मानसिक जरूरतें, भावनात्मक जरूरतें, सामाजिक जरूरतें और कभी कभार आर्थिक जरूरतें भी। तो यह एक व्यापक पैकेज है। जब आप शादी करते हैं तब ये सारी समस्याएँ एक साथ सुलझ जाती हैं। कभी कभार आपकी कुछ जरूरतों को पूरा करने से इंकार भी कर दिया जाता है। इसलिए आप दवाब, तनाव और यातना महसूस करते हैं। मैं आपको समझाना चाहता हूँ, आपने अपनी भलाई के लिए शादी की थी। किसी और के लिए कोई बलिदान नहीं किया था! आपने, अपनी जरूरतों और अपनी भलाई के लिए ही शादी की थी। आपको जिंदगी भर यह याद रखना चाहिए। आपने शादी करके एक दूसरे इंसान को अपने साथ बांध लिया है; अपनी जरूरतों के कारण। आपने ऐसा दूसरे इंसान के लिए नहीं किया है। है कि नहीं? सच यही है न! यह याद रखिए, अगर आप यह याद रखेंगे तो आप आभारी होकर जीवन जियेंगे। अपनी पांचों जरूरतें न भी सही, कम से कम मेरी दो जरूरतों को तुमने पूरा कर दिया इसके लिए बहुत धन्यवाद। है न? सभी पांचों जरूरतों को, हो सकता है उन्होने ठीक तरह से पूरा नहीं किया, लेकिन कम से कम दो या तीन तो आपके पति या पत्नी पूरा करते / करती हैं। है न? उन्होने किया की नहीं किया? अगर उन्होने कुछ भी पूरा नहीं किया होता तब मुझे नहीं लगता कि आप अब भी उनके साथ होते। है कि नहीं? वे कुछ जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। हो सकता है कुछ जरूरतों को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आपके साथ भी यही है। आप भी दूसरे व्यक्ति की हर जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। कुछ को आप भी पूरा कर रहे हैं, कुछ को नहीं। ऐसा है कि नहीं? तो यह दबाव, तनाव और यातना इसीलिए बन गया है। अभी तक आपने उसे चाहे जैसा भी बना दिया हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आप चाहें तो तीन दिनों में, चाहे आपकी परिस्थिति कितनी ही बुरी क्यों न हो, तीन दिनों में आप उसे शांति पूर्ण अवस्था में ला सकते हैं। अगर प्यार नहीं, अगर आनंद नहीं, तो कम से कम एक शांतिपूर्ण स्थिति तो आप तीन दिनों के अंदर ला सकते हैं, अगर आप इसके लिए सौ फीसदी इच्छुक हों तो। है कि नहीं? आप कम से कम चुप तो हो ही सकते हैं। साधारण सी बात है, चाहे कुछ भी हो जाये, चुप। शांति छा जाएगी और हो सकता है कि उन्हे यह बात पसंद भी आ जाये!
अकेले चलना फायदेमंद है या लोगों के साथ चलना? अफ्रीका में एक कहावत है; वो कहते हैं कि अगर आप तेजी से चलना चाहते हैं तब आप अकेले चलिये, लेकिन अगर आप लम्बे समय के लिए चलना चाहते हैं तब आप लोगों के साथ चलिये। अगर आप लम्बा सफर कर रहे हैं, तो साथ बेहतर है। अगर आप छोटी दूरी तय कर रहे हैं, तब आपको अकेले जाना सबसे बढ़िया है। है न? .....
गौतम ने दूसरी बात कही थी, जब किसी ने उनसे यही सवाल पूछा। तब वे बोले, किसी मूर्ख के साथ चलने से अकेले चलना बेहतर है। क्योंकि आपको देख कर उन्हे साफ हो गया कि और कौन आपके साथ शादी करेगा। तो यह गौतम के काम करने का तरीका था। वे हमेशा लोगों को किसी का साथ लेने के लिए मना करते थे। उनका कहना था ये जीवन एक छोटा सा सफर है। आपको साथ किसलिए चाहिये? जब आप इस शरीर को छोड़ेंगे, तब वह एक लम्बा सफर है, वहाँ मैं रहूँगा। यह उनकी पेशकश है। लेकिन आगर आपको लगता है कि जीवन लम्बा है इसलिए आपको साथ की आवश्यकता है, यह आपकी धारणा है, और अगर आप ऐसा मानते हैं तब आपको साथ की जरूरत है। लेकिन आप इस साथ को कैसे निभाते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है।
तब, आप योग के रास्ते पर मत चलिये, आप अपने साथ योग को लेकर चलिये। अगर आप योग को अपने साथ लेकर चलते हैं तो योग आपके रास्ते को रौशन कर देगा। चाहे आपने कोई भी रास्ता चुना हो; आपने अपना रास्ता अपनी जरूरतों के कारण चुना है। ..... ..... मुद्दा यह नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं, मुद्दा यह है कि आप उसे कैसे कर रहे हैं। आप क्या करते हैं यह आपकी जरूरतों से तय होता है लेकिन उसे कैसे करते हैं यह आपके जीवन की प्रकृति तय करती है।
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