गुरु के द्वारा निर्दिष्ट साधन ही परिपक्व और फलप्रद हो सकता है। पाँच-छ: मनुष्य हैं। उन सब को एक ही रोग है, उसके लिये जुलाब लेना आवश्यक है। वे पंसारी की दुकान पर जाकर पूछते हैं कि 'भाई! जुलाब के लिये क्या लेना चाहिये?' वह कहता है कि नमकीन आँवला बहुत अच्छा रहेगा। दूसरी दुकान पर जाकर पूछते हैं तो वह कहता है कि हर्रे अच्छी रहेगी। तीसरा दुकानदार कहता है कि नौसादर अच्छा रहेगा। चौथा कहता है कि विलायती नमक अच्छा रहेगा । झण्डू की दुकान पर पूछने से वह कहता है कि अश्वगन्धा ले लो, वायु कुपित हो गया है।
ऐसी अवस्था में वे निश्चय नहीं कर पाते
कि कौन-सा जुलाब लें और उनको निराशा हो जाती है। इतने में एक चतुर मनुष्य कहता है, 'भाई! उदास
क्यों होते हो? चतुरलाल वैद्य के यहाँ चलो और वे जैसा कहें,
वैसा करो।' वैद्यराज प्रत्येक की प्रकृति की
जाँच करके किसी को हर्रे, किसी को नौसादर तथा किसी को नमकीन
आँवला, किसी को विलायती नमक का नुस्खा बताते हैं और उससे
प्रत्येक को लाभ होता है।
इसी प्रकार हम सब लोग एक ही रोग से
पीड़ित हैं। व्याधि महाभयंकर है, उसका नाम है भव-रोग। निदान तो ठीक है, परंतु चिकित्सा में भूल होने से मृत्यु निश्चित है। यहाँ मृत्यु का अर्थ
एक बार मरना नहीं है, बल्कि अनन्त मृत्यु के चक्कर में भटकना
है। 'मृत्योः स मृत्युमाप्नोति।' अतएव
सद्गुरुरूपी सद्वैद्य के पास जाना चाहिये और उनकी बतलायी हुई औषधि का सेवन तब तक
करना चाहिये, जबतक व्याधि निर्मूल न हो जाये। इसमें असावधानी
करने से रोग दूर नहीं हो सकता।
भारत और पाकिस्तान एक साथ आजाद हुए। लेकिन आज इतने वर्षों बाद भारतीय गूगल्स
माइक्रोसॉफ़्ट, पेप्सिको, जैगुआर, लैंड रोवर आदि अनेक अंतर्राष्ट्रीय
संस्थानों के प्रमुख हैं जबकि पाकिस्तान तालिबन, अल-केदा, जम्मात उ दावा, हिजबल मुजाहिदीन आदि का जन्मदाता और
पनाहगार है। भारत चाँद और मंगल तक पहुँच रहा है जबकि पाकिस्तान भारत में प्रवेश
करने की कोशिश में लगा है। दोनों के उद्देश्य एक ही हैं,
लेकिन दोनों ने अलग-अलग साधन अपनाए, स्वतन्त्रता प्राप्ति के
भी और उन्नति के भी, और दोनों का परिणाम भी अलग-अलग है।
विश्व
स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, "उच्च आय वाले देश में
गहन देखभाल इकाइयों में लगभग 30% रोगी कम से कम एक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े
संक्रमण से प्रभावित होते हैं"। ये संक्रमण अक्सर एंटीबायोटिक दवाओं के
अनुचित या अधिक उपयोग के कारण होते हैं। 20वीं सदी में शोधकर्ताओं ने
एंटीबायोटिक्स की खोज की थी।
हमें
कभी-कभी यह सोचने की आवश्यकता होती है कि क्या हमें एक विशेष किस्म की अनुसंधान पद्धति
को विकसित करना चाहिए। (द वीक , 30 जून 2019)
क्या कारण है कि
नए-नए अनुसन्धानों,
खोजों, दावों के बावजूद प्रायः हर रोग अविरल गति से बढ़ रहे
हैं? यही नहीं बल्कि नए-नए रोग भी ईजाद हो रहे हैं? कहीं हमारे साधन में बड़ी त्रुटि तो नहीं? हमें अपने
तरीकों को बदलने की आवश्यकता तो नहीं?
केवल लक्ष्य का महान या पवित्र होना
यथेष्ट नहीं होता,
लक्ष्य को पाने का साधन भी सटीक होना आवश्यक है। सटीक साधन के अभाव में लक्ष्य
प्राप्त होने पर भी उसका फल तिरोहित हो जाता है। अतः जितना महत्व लक्ष्य का है उतना
ही उसे पाने के साधन का, मार्ग का भी है। अल्पज्ञानी का
ध्यान केवल लक्ष्य पर ही केन्द्रित रहता है लेकिन विद्वजन लक्ष्य के साथ साधन की
सटीकता का भी पूरा ध्यान रखते हैं।
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