सुबह उठा तो बिस्तर पर ही पड़े-पड़े पूरे दिन का जायजा लिया। आज तो बाहर जाना है, एक परिचित के विवाह में! कपड़े तो होंगे, फिर भी एक बार देख लूँ। अलमारी खोली और एक नजर घुमाई। हूँ..... सब है लेकिन मोजा और एक नई टाई और ठीक मिल जाए तो एक स्वेटर लेनी पड़ेगी। विचार किया, इधर-उधर भटकने के बजाय मॉल में ही चलता हूँ तीनों एक ही जगह पर मिल जायेगी, सुविधा से सब कार्य फटा-फट हो जायेगा। तैयार होकर निकल पड़ा।
एक
स्टोर में घुसा। मैंने 9000 रुपये के मूल्य टैग
के साथ एक स्वेटर देखा। स्वेटर के बगल में 10000 रुपये की
जींस की एक जोड़ी थी। मोज़े थे, 8000 रुपये के! और आश्चर्यजनक 16,000 की टाई। मैं पसीने-पसीने हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या है?
मैं
एक सेल्स मैन (विक्रेता) की तलाश करने लगा। घड़ी विभाग में मुझे एक दिखा। वह एक ग्राहक
को घड़ी दिखा रहा था, 225 रुपये में रोलेक्स
की घड़ी। मुझे वहीं एक शीशे के शो केस में 195 रुपये में एक 4 कैरेट हीरे की अंगूठी भी दिखी। मैं हैरान भी था,
विस्मित भी। मन चिड़-चिड़ा भी रहा था। आखिर झल्ला कर मैंने सेल्समैन से पूछा,
"रोलेक्स की घड़ी 225 रुपये में कैसे बिक
सकती है? और मोजे की यह एक सस्ती जोड़ी 8000 रुपये में! यह
क्या हो रहा है?” सेल्समैन बेचारा खुद भी परेशान था और भ्रमित
भी। झिझकते हुए उसने कहा कि लगता है कि कोई स्टोर में आया है और उसने सब वस्तुओं
के प्राइस टैग को उलट-पुलट कर दिया है।
उसने आगे कहा, “सर, यह तो कोई खास बात नहीं है, आश्चर्य चकित करने वाली
बात तो यह है कि ग्राहक इन्हीं कीमतों पर शॉपिंग भी कर रहे हैं। वे सस्ती चीजों को अनाप-सनाप दामों
पर खरीद रहे हैं और अनमोल वस्तुएं पानी के
भाव भी उन्हें महंगी नजर आ रही हैं। वे उधर झांक भी नहीं रहे हैं। लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे
उन्होंने अपनी समझ खो दी है। प्रतीत हो रहा है कि वे नहीं जानते कि वास्तव
में क्या मूल्यवान है और क्या नहीं। क्या इन्हें कभी समझ आएगी? मुझे वास्तव में अफ़सोस हो रहा है, लोगों को सस्ती चीज़ों
के लिए इतनी कीमत देते देखकर। और उससे ज्यादा इस बात पर कि अनमोल वस्तुओं को कोई
छू भी नहीं रहा है।”
मैं चौंका और विचार मग्न हो गया। लगा, वह कह तो ठीक ही रहा है लेकिन अभी मुझे
न तो घड़ी चाहिए और न ही अंगूठी। तब क्या करूँ? बुझे मन से
मैं भी मोजे और टाई की लिखी कीमत चुका कर वापस आ गया।
लेकिन
शांति से नहीं बैठ सका। तब से यही सोच रहा हूँ ...
क्या हमारा
जीवन ऐसा ही नहीं है? क्या हमारे जीवन में भी कोई घुस गया है और उसने हर चीज का मूल्य
अदल-बदल कर दिया है। प्रतिस्पर्धा, उपाधी, पद, मान, सम्मान,
प्रसिद्धि, पदोन्नति, दिखावा, धन, शक्ति आदि साधारण चीजों को बहुमूल्य बना दिया है। और इन्हें हम लाइन लगा कर मुँह मांगे
दामों पर खरीदते रहते हैं।
..और खुशी, परिवार, रिश्ते,
शांति, संतोष, प्रेम,
ज्ञान, दया, दोस्ती जैसी महंगी चीजों के मूल्यों पर भारी छूट दे... उन्हें कौड़ी के भाव
कर दिया है! फिर भी हम इनकी तरफ से बे-खबर हैं। शायद
हम सब इस सपने को जी रहे हैं.. कि महंगी चीजें
ही अच्छी हैं! सस्ते में मिलने वाली चीजें बेकार हैं। महंगा रोये एक बार, सस्ता रोये बार-बार? क्या हम इस मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर देंगे और
समय रहते ही जीवन
के सही मूल्य को पहचान जाएंगे। ऐसे हालातों पर
ही शायद संत कबीर ने लिखा होगा :
रात
गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा
जनम
अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
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