सरलता
सरलता मानव की स्वाभाविक
प्रवृत्ति है। सरलता-सहजता हमें अपना स्वाभाविक जीवन जीने के लिए ही प्रेरित करती
है। जैसे-जैसे हम संसार से ग्रहण करने लगते हैं हमारी यह सहजता लुप्त होने लगती है, दूसरों की सरलता देख हम दांतों तले
अंगुली दबा लेते हैं, और सोचने लगते हैं कैसे हैं ये इतने
सरल! काश! दुनिया ऐसी ही सरल होती! हम यह भूल जाते हैं कि
अगर दुनिया को सरल बनाना है तो शुरुआत अपने से ही करनी होगी। अगर हम सब सरल होते
तो, कैसी होती ये दुनिया? अपनी भाग-दौड़
की जिंदगी में थोड़ा ठहर कर नज़र घुमायें तो आपको दिख जाएंगे ऐसे लोग, और मन होगा कि बैठें रहें इनकी शीतल छाया में, कुछ
पल ही सही हम भी सरल हो लें, इनके साथ।
योगेन्द्र
यादव को मिले ऐसे लोग अपनी एक यात्रा में और अंकित कर दी सफ़ेद पन्नों पर एक दास्तां। आप भी आनंद लीजिये इस सरलता का, और अगर आनंद आये तो कभी-कभार ऐसा ही
आनंद दूसरों में भी बाँट कर देखिये कि आनंद किस में ज्यादा है – देने में या लेने
में? तो पढ़िये योगेन्द्र की दास्तां उन्हीं के शब्दों में
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... भीतर कुछ दूर चलने के
बाद सड़क से थोड़ा हटकर पहाड़ियों के नीचे
छोटी-मोटी दुकानें और गुमटियां हैं जो निम्न आय वर्ग के लोगों की रोज़ी-रोटी से
जुड़ी हैं। हम चाय के साथ कुछ खाने-पीने के लिए जिस दुकान पर रुके वह एक छोटा-सा
घर था जहां पर्यटकों के लिए भोजन की भी व्यवस्था थी। सामने सड़क तक फैली खुली
ज़मीन पर कुछ खाटें भी रखी थीं, जो इस घर को किसी ढाबे-सा स्वरूप भी देती
थीं। घर में पति-पत्नी और बच्चों समेत पूरा एक युवा परिवार रहता था। ... (पत्नी)
की बातों में एक अनगढ़ सहजता थी, और उसके हाव-भाव और व्यवहार
में प्रकृत सौंदर्य के कोमल स्पर्श-सा कुछ लरजता रहता... और मुझे वह किसी कहानी की
जीती- जागती किरदार-सी लगती।
हमारे दिलों में उन लोगों के लिए प्यार और सम्मान होना चाहिए जो एक
अजनबी मुसाफिर के साथ भी बातचीत के क्रम में अपना पूरा संसार, अपने विचार और अपनी सोच की तमाम सहज
अनगढ़ता बेहिचक सामने रख देते हैं। इसके अपने खतरे भी हो सकते हैं। खतरे तो भोलेपन और
सहजता में अंतर्निहित ही हैं। लेकिन यह उनका भोलापन ही है कि ऐसे लोग इन खतरों के
बारे में सोचते भी नहीं और प्रकृति भी तो अपनी सहजता और भोलेपन में ही जीती है
उसने भी इन खतरों के बारे में कब सोचा!
मैंने जब पूछा- ‘आपको अजनबियों - से इस तरह बात करते हुए डर नहीं लगता?'
तो उसने कहा- 'आप अजनबी कहां और फिर डर कैसा!
रोज ही कितने अनजान मुसाफिरों से बात होती है। दूर से ही देखकर बता सकती हूं कौन-कैसा
है? ... आधी रात को भी सामने सड़क पर कोई गाड़ी रुकती है और
लोग आकर खाट पर बैठ जाते हैं तो उनके लिए
उसी समय खाने-पीने, और अगर रुकना चाहें तो यहीं खाट पर या
भीतर बरामदे में सोने की व्यवस्था कर देती हूं।
'एक बार की बात
है, कोई बारह बजे रात को एक परिवार गाड़ी से उतरा, मियां-बीबी और एक बच्चा, शायद एक साल का भी नहीं, मेरी छुटकी जितना बड़ा, बच्चा रोए जा रहा था,
चुप होने का नाम नहीं। बताया कि एक घंटे से रो-रो कर बेहाल है।
हिचकियां बंधी जा रहीं थीं। मैंने कहा बच्चा मुझे दो। मैं बच्चे को सीधे अंदर
बरामदे में लेकर गयी... और दो मिनट बाद लेकर बाहर आ गयी, बच्चा
बिल्कुल शांत और चंगा मेरी गोद में खेल रहा था। बीबी की आंखें चमक उठीं? लेकिन उस चमक में संदेह और आश्चर्य के मिले-जुले भाव थे। पूछा ‘कैसे चुप करा दिया’? मैंने कहा, ‘मैं आपसे चुप कराने के पैसे तो मांग नहीं रही’। जब
आये थे तो उनके चेहरे पर बारह बज रहे थे, अब चेहरे पर पूरी
राहत थी। पूछा ‘चाय पिला सकती हो’? मैंने
कहा... भला आप लोगों को चाय क्यों नहीं पिला सकती। मियां-बीबी आश्चर्य में एक
दूसरे का मुंह ताकने लगे। जाते समय पांच सौ का नोट थमाने लगे। मैंने कहा बीस रुपए
होते हैं चाय के, खुल्ला दे दो। कहा,
रख लो खुल्ले नहीं हैं। मैंने कहा नहीं रख सकती। कोई मां बच्चे से दूध पिलाने के
पैसे नहीं लेती और आप वही देना चाहते हो न!
'एक और बात बताऊं
आपको... जाते-जाते उन दोनों के चेहरे पर जो भाव, मुस्कुराने
की कोशिश में जो संकोच, खुशी और कृतज्ञता के मिले-जुले भाव उभर
आये थे न उन्हें मैं यहां आने वाले और भी बहुत सारे मुसाफिरों के चेहरे पर कई-कई
रूपों में देख चुकी हूं। बहुत सुख है इस भाव में, किसी
अजनबी सैलानी के थके-बुझे चेहरे को जगा देने में। कुछ पल के लिए किसी
दाता को राजी खुशी याचक जैसी भूमिका में देखने का सुख। इस सुख में हमारे जीवन की
छोटी-मोटी दुश्वारियां और संघर्ष पता नहीं कहां बिला जाते हैं। ये सब बातें मेरे
मरद की समझ के भी बाहर है। कहता है इतनी
बदहाली में भी तुम कैसे खुश रह लेती हो। अब उसे कैसे समझाएं कि चाहो तो तुम भी रह
सकते हो।..... मैंने बस पूछने के लिए पूछ दिया- 'कहां हैं वो, दिखे नहीं ?'
और वह शुरू हो गई? 'होगा कहीं, बही-खाता
लेकर बैठा होगा हिसाब-किताब करने, पाई-पाई का हिसाब रखता है।
मैं पूछती हूं क्या फायदा है? अपनी मेहनत है, अपना पैसा है, अपना कारोबार है, तो फिर हिसाब किसे देना है? … कई बार हुआ है कि लोग
किसी न किसी बहाने खुश होकर अधिक पैसे देकर जाने लगे हैं। लेकिन भरसक मेरी कोशिश
रही कि जितना बनता है उतना ही लूं और हर बार उसकी एक ही रट कि इस तरह तो मुझसे यह
व्यापार नहीं चलने वाला... कि आगे से किसी के साथ लेन-देन हो तो उसे बुला लिया
करूं। मैं सोचती हूँ कैसे बुला लूं, ...अगर बुला भी लूँ तो
कभी-कभी किसी के चेहरे पर वो नैसर्गिक भाव कहां से देख पाऊंगी जो मुझे बहुत दिनों
तक ज़िंदा रखता है। ... वह रहा हिसाब-किताब के साथ चलने वाला आदमी और मैं रही अपने
भीतर उठती तरंगों के साथ तालमेल बैठा कर चलाने वाली .....’
आपके जीवन में भी ऐसे क्षण आए
होंगे, ऐसे लोग आए
होंगे जिन्होंने आपको झकझोर दिया होगा और यदा-कदा आपके होठों पर उन्हें याद कर
मुस्कान आ जाती होगी। क्या कहा? – आपको नहीं मालूम, आपको ऐसे लोग नहीं मिले, ऐसे क्षण नहीं आए? ऐसा तो हो ही नहीं सकता। हाँ, आपके आँखों के सामने वे लोग आए, उनकी बातें आपके
कानों में भी पड़ीं, लेकिन दिख कर भी नहीं दिखा, सुन कर भी नहीं सुना क्योंकि देखने और सुनने का काम न आँख करते हैं न
कान। वे तो सिर्फ द्वार हैं। इनके पीछे छिपे “आप” उन्हें देखते और सुनते हैं।
लेकिन आप कहीं और व्यस्त थे, आप के पास उन्हें देखने-सुनने
का समय नहीं था। आप इसके प्रति संवेदनशील नहीं थे। अपनी संवेदना को थोड़ा दुरुस्त
कीजिये, फिर महसूस कीजिये। रोज-रोज ऐसे क्षण आने लगेंगे, ऐसे लोगों से मुलाक़ात होने लगेगी। जीवन सुखमय होने लगेगा।
ज्ञान तो दे दिया लेकिन अब संवेदनशीलता
बढ़ेगी कैसे, यह सरलता आएगी
कैसे?
व्याख्यान न देकर बहुत थोड़े
शब्दों में कहूँ तो :
1. अपनी गति थोड़ी धीमी करें, ‘सुनने’ और ‘देखने’ का समय दें, कैसे –
I.
जो देखा और सुना उसे समझने का प्रयत्न करें,
II.
निष्कर्ष निकालने या प्रत्युत्तर, जवाब देने की हड़बड़ी न करें,
III.
सामने वाले के दृष्टिकोण को जानें।
2. प्रारम्भ घर या पड़ोस के बच्चों
से करें। वे बहुत सरल, सहज और
संवेदनशील होते हैं। आपको बहुत कुछ सीखा सकते हैं।
बस यहाँ से प्रारम्भ करें। हाँ हर समय, हर रोज समय नहीं निकाला जा सकता
लेकिन दिन में एक बार तो कर ही सकते हैं। वहीं से प्रारम्भ करें। वह भी नहीं तो
कोई बात नहीं, दिन के अंतराल बढ़ा दें,
लेकिन सप्ताह में कम-से-कम एक बार जरूर। अगर आपको फर्क महसूस होता है तो अपने
अनुभव टिप्पणी, कोममेंट्स, में लिखें, दूसरों को
प्रोत्साहित करें।
(नवनीत)
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