शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

इंसानियत के सात दिन

                                                               देना ही पाना है  


 
टाइम्स ऑफ इंडिया, कोलकाता प्रकाशन, 16 मई 2023। एक विशेष और महत्वपूर्ण खबर छपी। न न न न...., आप गलत सोच रहे हैं, यह न मोदी के बारे में है न बीजेपी के बारे में, न गांधी परिवार के बारे में न विपक्ष के बारे में, न खिलाड़ी के बारे में न फिल्मी हस्ती के बारे में, न अरबपतियों के बारे में न विश्व की बड़ी हस्तियों के बारे में। बल्कि यह खबर है पूना की एक सॉफ्टवेर कंपनी “Icertis” के बारे में। कैसे इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों को बताया कि वे सिर्फ न तो कर्मचारी है, न मालिक, न मानव बल्कि इंसान हैं। वे क्या, किसे, कैसे कुछ दे सकते हैं? कैसे इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों को इसकी प्रेरणा दी, जानकारी दी। इंसानियत की दुनिया से रूबरू होने का मौका दिया।

          लेकिन इसके पहले जानिए एक छोटी सी घटना :

          एक धनाड्य महिला अपनी जिंदगी से ऊब गयी थी। उसे लगने लगा कि उसका पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। सज-धज कर अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली डॉ साहब मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन  अर्थहीन है, मेरी खुशियाँ जैसे मर चुकी हैं, क्या आप मेरी खुशियाँ ढूंढने में मदद करेंगे? एक बारगी मनोचिकित्सक मौन हो गया, लेकिन फिर उसने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला मैं तो यह नहीं बता सकता कि आपकी जिंदगी में खुशियाँ कैसे आयेगी लेकिन यह औरत तुम्हें बतायेगी कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। आप उसे ध्यान से सुनें और विचार करें क्या आपकी खुशी भी लौट कर आ सकती है?

          वह वृद्ध औरत बताने लगी - मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके ३ महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी। मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था। मैं दिन रात स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीब सोचने लगी थी। तब एक दिन एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया। जब मैं काम से घर आ रही थी, बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।

          उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे इतनी खुशी मिल सकती है तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी खुशी मिले। इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी के लिए, जो कि बीमार था, कुछ खाने का बना कर ले गई। वह बहुत खुश हुआ और मुझे भी खुशी मिली। फिर मैं हर दिन कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिसमें दूसरों को खुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे खुशी मिलती थी।

          आज मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को खुशी देकर।  यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी। लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।

          तब, अब बताता हूँ टाइम्स ऑफ इंडिया की उस खबर के बारे में जिसकी मैंने चर्चा की थी। इस कंपनी ने एक विशेष अभियान प्रारम्भ किया है अपने कर्मचारियों के लिए। अभियान का नाम है “इंसानियत के 7 दिन” (7 Days for Humanity)। इस अभियान के तहत कंपनी का कोई भी कर्मचारी एक वर्ष में 7 दिन की सवैतनिक छुट्टी (paid holiday) ले सकता है। इन सात दिनों में उसे अपने मन-मुताबिक किसी भी प्रकार की स्वयंसेवा (volunteering) करनी होगी। यही नहीं इस कार्य में वे जितना खर्च करेंगे कंपनी भी बराबर की धन राशि की सहायता करती है।  

          मित्रों हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं। तो आइये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।

          रोहन सोमन, कंपनी के सहयोगी निर्देशक यह मानते हैं कि समाज को वापस देने का हर अवसर - बड़ा हो या छोटा - "हमें मनुष्य के रूप में हमारे उद्देश्य की याद दिलाता है। मैं आइसर्टिस का हिस्सा बनकर खुश हूं, जो अक्सर हमें व्यवसाय से पहले स्वयं, परिवार और समुदाय की देखभाल करने की हमारी जिम्मेदारी के चार चक्रों की याद दिलाता है।” वे आगे कहते हैं कि “द सोसाइटी फॉर डोर स्टेप स्कूल” (DSS) के साथ काम करने के क्षण अविस्मरणीय हैं। अपने समुदाय को वापस देने का अनुभव और स्कूली बच्चों की आंखों में खुशी देखना बेश-कीमती है।"

          मित्रों यह बहुत महत्वपूर्ण है अतः मैं फिर से दोहरा रहा हूँ हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं तो आइये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।     

          मैं फिर कहता हूँ – देना ही पाना है।

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