किसे कहेंगे महान लक्ष्य? क्या अकूत संपत्ति का मालिक होना महानता है? देश-विदेश में कारोबार का होना महानता है। ऐश्वर्य-वैभव का होना महानता है? कैलिफोर्निया की बे-एरिया में कंपनी का मुख्यालय होना महानता है। हजारों इंजीनियर-टेकनिशियनों को रोजगार देना महानता है। महानता क्या है? कोई ऊंचा पद हासिल करना, कोई बड़ा पुरस्कार प्राप्त करना, आज की तकनीकी दुनिया में करोड़ों लाइक बटोरना-फ़ौलोअर्स का होना? – क्या है महानता लेना या देना! मैं या हम। सब-कुछ अपनी मुट्ठी में होते हुए भी मुट्ठी को खुली रखना ही महानता है। सब कुछ स्वयं करते हुए भी ‘करनहार’ को ही करने वाला मानना महानता है। मैं नहीं तू ही महानता है।
किसी की कुल सम्पति अगर 18 हजार करोड़ रूपये की हो
तो 300 करोड़ रूपये
के
प्राइवेट जेट विमान खरीदने पर ऑडिटर भी एतराज नहीं करेगा, और जब अथाह पैसा हो तो फिर मुश्किल
ही क्या है? यूँ भी, लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती है तो ऐसे फैसले किसी को ख़र्चीले
नहीं
लगते। शायद इसलिए एक खरबपति के लिए जेट विमान खरीदना ऐसा ही है जैसे
किसी मैनेजर के लिए मारुति कार खरीदना। लेकिन जोहो कारपोरेशन
(Zoho Corporation) के चेयरमैन श्रीधर पर लक्ष्मी के साथ-साथ सरस्वती भी मेहरबान थीं।
इसलिए उनके इरादे
औरों
से बिलकुल अलग थे। उनका अगला लक्ष्य प्राइवेट जेट खरीदना होना चाहिए था।
लेकिन प्राइवेट
जेट खरीदना तो दूर उन्होंने अपनी कम्पनी के बोर्ड के निर्देशकों
से
कहा कि वे अब कैलिफोर्निया (अमेरिका) से जोहो कारपोरेशन
का मुख्यालय कहीं और ले जाना चाहते हैं। कहाँ?
श्रीधर के इस विचार से
कम्पनी के अधिकारी हतप्रभ थे क्यूंकि सॉफ्टवेरी
के लिये
कैलिफोर्निया
की
बे-एरिया
से मुफीद जगह दुनिया में और कोई है ही नहीं। गूगल, एप्पल, फेसबुक, ट्विटर या सिस्को
सब-के-सब
इस इलाके में बसे, फले-फूले। पर श्रीधर
तो कोई
बड़ा
अप्रत्याशित फैसला लेने जा रहे थे। वे कैलिफोर्निया से शिफ्ट होकर सीएटल या हूस्टन
नहीं जा रहे थे। वे अमेरिका से लगभग 13000 किलोमीटर दूर चेन्नई वापस आना चाहते थे।
उन्होंने बोर्ड मीटिंग में कहा कि अगर डेल, सिस्को, एप्पल
या माइक्रोसॉट अपने दफ्तर और रिसर्च सेंटर भारत में स्थापित कर सकते हैं तो जोहो कारपोरेशन
को स्वदेश लौटने पर परहेज क्यों है?
श्रीधर के तर्क
और प्रश्नों के आगे बोर्ड में मौन छा गया। फैसला
हो चुका था। आई आई टी मद्रास के इंजीनियर श्रीधर वापस
मद्रास जाने का संकल्प ले चुके थे। उन्होंने कम्पनी के नए मुख्यालय को तमिलनाडु के
एक गाँव में स्थापित करने का
फैसला ले लिया था और
एलान के मुताबिक, अक्टूबर 2019 में श्रीधर ने टेंकसी जिले
के मथलामपराई गाँव में जोहो कारपोरेशन का हेडक्वार्टर शुरू
कर दिया।
स्वदेश क्यों लौटना चाहते थे श्रीधर?
श्रीधर
अमेरिका की किसी एजेंसी या बैंक या स्टॉक एक्सचेन्ज के दबाव
के कारण स्वदेश नहीं लौटे। उनपर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी नहीं
था। वे कोई नया व्यवसाय भी नहीं शुरू कर रहे थे। वे किसी नकारात्मक कारण नहीं एक सकारात्मक
विचार लेकर वतन
लौटे।
उन्होंने कई वर्ष पहले संकल्प लिया था कि अगर जोहो ने बिजनेस
में कामयाबी पायी तो वे मुनाफे का बड़ा
हिस्सा गाँव के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने पर खर्च करेंगे। इसी
इरादे से उन्होंने सबसे पहले मथलामपराई गाँव में बच्चों के लिए निःशुल्क
आधुनिक स्कूल खोले। फोर्ब्स मैगजीन में दिए एक इंटरव्यू में श्रीधर
बताते हैं कि टेक्नोलॉजी को अगर ग्रामीण इलाकों से जोड़ा जाए तो गाँव से पलायन रोका
जा सकता है। गाँव में प्रतिभा है, काम करने की इच्छा है। इसीलिए
मैं भी बच्चों की क्लास में जाता हूँ, उन्हें पढ़ाता भी हूँ। हम न सिर्फ दूरियां मिटा
रहे हैं, न सिर्फ पिछड़ापन दूर कर रहे हैं, बल्कि शहर से बेहतर डेलीवरी
गाँव से देने जा रहे है... प्रोडक्ट चाहे सॉफ्टवेयर ही क्यों न हो।
श्रीधर बेहद सहज और सादगी पसंद
इंसान हैं। वे लुंगी और बुशर्ट में ही अक्सर आपको दिखेंगे। गाँव और तहसील में आने जाने
के लिए वे साईकिल पर ही चल निकलते हैं। उनकी बातचीत से, हाव-भाव से, ये आभास नहीं होता
कि श्रीधर एक खरबपति सॉफ्टवेटर उद्योगपति हैं जिन्होंने 9 हजार से ज्यादा लोगों को
रोजगार दिया है जिसमें अधिकाँश इंजीनियर है। उनकी कम्पनी के ऑपरेशन
अमेरिका से लेकर जापान और सिंगापुर तक फैले हैं जहाँ 9,300 टेक-कर्मियों को रोजगार
मिला है। श्रीधर का कहना है कि आने वाले वर्षों में वे करीब 8 हजार टेक रोजगार भारत
के गाँवों में उपलब्ध कराएंगे और ग्लोबल सर्विस को देश के ग्रामीण इलाकों
में स्थानांतरित
करेंगे।
शिक्षा के साथ गाँवों में वे आधुनिक अस्पताल, सीवर सिस्टम, पीने का पानी, सिंचाई,
बाजार और स्किल सेंटर स्थापित कर रहे हैं। सरकार ने 2021 में उन्हें
पद्मश्री से नवाजा है।
महान लक्ष्य का कोई एक निश्चित सूत्र
नहीं है। जो बात पन्नों में लिखी जाती है विद्वान जन उसे कुछ पंक्तियों में बयाँ
कर देते हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय, हिन्दी
विभाग के आचार्य स्व. विष्णुकान्त जी शास्त्री की ये पंक्तियाँ देखें :
बड़ा काम करना है मुझको,
मैंने पूछा मन से।
बड़ा लक्ष्य हो बड़ी तपस्या
बड़ा हृदय मृदुवाणी।
किन्तु
अहम छोटा हो जिससे
सहज
मिले सहयोगी।
दोष
हमारा श्रेय राम का
यह प्रवृत्ति कल्याणी।
और
यही है महानता, सब
कुछ करने की क्षमता होने पर भी यह स्वीकार करना कि सब दोष हमारे हैं सब उपलब्धि
राम की है।
(इन पंक्तियों को मुझ
तक प्रेषित करने का श्रेय जाता है हमारे एक सुधि पाठक / सब्सक्राइबर श्री श्री गोपालजी डागा को जिन्हें यह हठात मिली अपनी पत्नी, सुधा भाभी के संग्रह
में। उनका अतिशय आभार।)
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