हमने अपनी जगह बदली कर ली है। नयी जगह का लिंक है
https://raghuovanshi.blogspot.com/2024/04/blog-post_19.html
यू ट्यूब का लिंक :
आपको नयी जगह कैसी लगी बताएं, विशेष कर अगर पसंद न आई हो या कोई असुविधा जो तो जरूर से बतायेँ।
कुछ समय तक हम अपनी पोस्टिंग यहाँ भी करेंगे, लेकिन अनुरोध है कि नये लिंक पर पढ़ें।
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(I am OK, you are OK) मेरे अनुभव
किसी समय पॉण्डिचेरी के नाम से विख्यात स्थान का नाम अब पुडुचेरी
हो गया है। लोग संक्षिप्त में इसे पौंडी भी कहते हैं। हम इस पचड़े में न पड़ कर इसे
पुडुचेरी ही कहेंगे। इस स्थान को विश्व के मान चित्र में स्थान दिलाने का श्रेय
श्रीअरविंद, श्रीमाँ और इनकी ही प्रेरेणा से बने और बसे
औरोविल को जाता है।
श्री अरविंद आश्रम, पुडुचेरी एक
चाहरदीवारी में समाया हुआ नहीं है। इसके अलग-अलग विभाग शहर
के कई हिस्सों में फैले हैं। औरोविल तो लगभग 14 कि.मी. की दूरी पर है। इन विभागों
में एक है ‘सब्दा’, जी हाँ ‘SABDA’। इसे सब्द या शब्द कहने या समझने
की भूल मत कीजियेगा। SABDA यानी Shree Arvind
Book Distribution Agency। शायद किसी समय इस
विभाग से सिर्फ श्री अरविंद एवं श्री माँ से संबन्धित पुस्तकों का ही विक्रय /
वितरण हुआ करता होगा लेकिन आज यहाँ से इसके अलावा आश्रम तथा आश्रम से जुड़े हुए
कुटीर तथा हस्त शिल्प उद्योग की वस्तुओं का भी विक्रय होता है। ऐसे स्टोर पुडुचेरी
के अलावा आश्रम की शाखाओं तथा अनेक केन्द्रों में भी हैं। इनके अनेक उत्पादों में
एक है ‘सुगंधित तेल’ (एसन्स ऑइल)। इस
स्टोर में यह तेल अलग-अलग अनेक खुशबू में
उपलब्ध है।
एक दिन एक महिला सब्दा के किसी
स्टोर में आईं, उन्हें यही सुगंधित तेल लेना था। महिला, जहां इसकी शीशियाँ सजी थीं, वहाँ पहुंची, एक सरसरी नगाह से उन्हें देखा और फिर अपने पसंद की खुशबू का तेल खोजना
शुरू किया। सब शीशियाँ पैकिंग में सील की हुई थीं। उन्हीं शीशियों के सामने बिना
सील की हुई शीशियाँ भी रखी थीं। उन पर रौलर लगे थे ताकि तेल को अपने हाथ पर लगा कर
खुशबू की परख की जा सके। महिला ने कई शीशियों की खुशबू को परखा, उन्हें एक खुशबू पसंद आई। महिला उस शीशी को लेकर स्टोर के एक कर्मचारी, प्रशांत के पास पहुंची और हाथ की शीशी दिखा कर कहा,
‘मुझे इसकी एक शीशी चाहिये, लेकिन ये
रोलर वाली नहीं चाहिये सपाट मुंह
वाली चाहिये जिससे बूंदे टपकाई जा सकें।’
प्रशांत इस
स्टोर में एक स्वयंसेवक के रूप से कई वर्षों से अपनी सेवा प्रदान कर रहे थे, एक प्रसन्नचित, कर्तव्यनिष्ठ, हंसमुख सेवक। कभी कोई तकरार होती मुसकुराते हुए,
अपने खास अंदाज में कहते ‘आई एएम ओके,
यू आर ओके’, और तकरार समाप्त हो जाती। प्रशांत ने मेज की
दराज से एक शीशी निकाली जिसका मुंह सपाट था और उस महिला को दिखा कर पूछा, ‘क्या आपको ऐसी शीशी चाहिये?’
‘हाँ, हाँ ऐसी ही
चाहिये।’
‘आपने जहां से यह रोलर वाली शीशी उठाई है
वहीं उसके पीछे रखी सीलबंद शीशी ले लीजिये’, प्रशांत ने सलाह
दी।
महिला असमंजस में पड़ गई,
‘नहीं, मुझे वे रोलर वाली नहीं सपाट
मुंह वाली शीशी चाहिये।’
‘जी हाँ, वहाँ वैसी ही
शीशियाँ हैं, यह तो केवल नमूने (सैम्पेल) के लिये है।’
महिला खिन्न होने लगी,
‘आप भी अजीब हैं, मैं कह रही हूँ कि
मुझे यह नमूने वाली नहीं चाहिये और आप मुझे बार-बार वहीं से लेने कह रहे हैं।’
‘बहनजी मैं आप को कह रहा हूँ कि आपके हाथ की
शीशी रोलर वाली नमूने की हैं लेकिन दूसरी सील की हुई शीशियाँ में रोलर लगे हुए
नहीं हैं।’
‘अभी तो आप ने कहा कि ये नमूने की शीशियाँ
हैं, मुझे ये नमूने वाली नहीं चाहिये’,
महिल ने फिर से दोहराया।
“@#$%^ ......”
“...... _&%#.....”
दोनों एक दूसरे के समझाते रहे।
दोनों समझाने में लगे थे, समझने का प्रयत्न नहीं कर रहे थे। नतीजा, उनके बीच तकरार बढ़
गई। प्रशांत थक हार कर महिला की उपेक्षा
करता हुआ अन्य कागजों के पन्ने पलटने लगा। महिला को यह अपना अपमान महसूस हुआ। अब
तक दोनों खीज और झुंझलाहट से भर चुके थे। आखिर प्रशांत ने कहा, ‘देखिये मैडम, मैं आपको हर
तरह से समझा कर हार चुका हूँ, मेरे पास अब कहने को कुछ नहीं
है, आप अगर नहीं समझना चाहती हैं तो आप की जैसी इच्छा हो
कीजिये।’ लेकिन महिला तुनक गई, ‘आप समझ ही नहीं रहे हैं उल्टे मुझे दोष दे रहे हैं कि मैं नहीं समझ रही हूँ, और तो और
मेरा अपमान कर रहे हैं।’
यह तो आश्रम की शांति और
नीरवता थी जिस कारण दोनों ने अपनी आवाज को भरसक धीमा ही रखा, लेकिन एक अन्य
कर्मचारी, सुबीर, परिस्थिति की नाजुकता को समझ कर वहाँ आ पहुंचा। धीरे से मैडम से कहा, आप
मेरे साथ आइये मैं आपको देता हूँ। सुबीर महिला को उसी तेल के सेल्फ के सामने ले
गया। सामने लगी शीशी को उठाते हुए बताया कि इन रोलर वाली शीशियों में तेल के सैम्प्ल्स रखे हैं ताकि
ग्राहक इनकी महक का परीक्षण कर सकें, ये बेचने के लिये नहीं
हैं और इनके पीछे जो ये जो पैक और सील किये हुए हैं इनमें यही तेल हैं लेकिन इनकी शीशी का मुंह सपाट है, इनमें रोल्लेर्स नहीं लगे हुए हैं, इनसे
बूंद टपकाई जा सकती है।’
‘ओह, अच्छा, बस इतनी
सी बात है। समझाना तो आता नहीं और बहस करते हैं’, महिला ने
प्रशांत को घूरते हुए कहा और आगे बढ़ गई।
प्रशांत कुछ कहने को उद्यत हुआ तभी सुबीर उन दोनों के बीच आ
कर प्रशांत की ओर मुसकुराते हुए कहा,
‘आई एएम ओके, यू आर ओके।’ प्रशांत के ओठों पर भी मुस्कुराहट आ गई, महिला
बिलिंग सेक्शन की तरफ चली गई।
बात सामान्य सी ही थी बस समझ
का फेर था। कहने के पहले ध्यान से सुनिये कि दूसरा क्या कहा रहा है, तब प्रश्न कीजिये। अगर सामने वाला समझ नहीं रहा है तो फिर से समझाने के पहले यह
समझिये कि उसके समझने में कहाँ भूल हो रही है। अनेक मनमुटाव, कलह, झगड़े और-तो-और युद्ध का कारण भी
यही समझ का फेर होता है। इससे बचिये।
अगर, ‘आई एएम ओके यू आर ओके’ पसंद नहीं है तो दिल को हलकी सी थपकी देते हुए ‘ऑल
इज़ वेल’ भी कह सकते हैं।
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