जीवन के मझदार में साथी
मत फेंको पतवार
लड़ना हो दुश्वार मगर तुम
कभी न मानो हार,
जिसने यह संसार बनाया
वही है खेवन हार
जोर लगा कर नाव चलाओ
होगा बेड़ापार,
साथी मत फेंको पतवार
जीवन में संघर्ष बहुत है
संघर्ष से ही उत्कर्ष
बिना संघर्ष न निखरे जीवन
यह जीवन निष्कर्ष,
संघर्ष से मत घबराओ, धिरज
की दरकार
नाव का चप्प्पू चालू रखो
होगा बेड़ापार.
साथी मत फेंको पतवार
यह दुनिया है बहुरंगी,
यहाँ भांति भांति के लोग
संभल संभल कर चलना साथी
फिसलन का बहुयोग,
फिर भी कभी लगे चोट और
छा जाये अंधकार
भावों में आवेश न आये
रखो सम व्यवहार,
साथी मत फेंको पतवार
अंतर के सागर में साथी डुबकी
गहन लगाओ
गहरे गहरे पैठ तुम रत्न
बटोर कर लाओ,
तब भीतर में जले दीप, ले
निराकार आकार
तब आनंद का स्त्रो़त
बहेगा, मिलेगा जीवन सार,
साथी मत फेंको पतवार
तभी तो कहता-
जीवन के मझदार में साथी मत फेंको
पतवार
जोर लगा कर नाव चलाओ होगा
बेड़ापार,
साथी मत फेंको पतवार.
बनेचंद मालू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें