नियति
जो हम हैं
वो हम होना नहीं चाहते
और जो हम नहीं हैं
वो होना चाहते हैं।
तुम्हें कैसे समझाऊँ मेरे दोस्त !
की इस होने-न-होने के बीच
जिंदगी का सबसे सुनहरा
दौर गुजर जाता है
- प्रताप सहगल
~~~~~
घर से निकलता हूँ तो
घर शुरू होता है
घर लौटता
हूँ
तो घर
छूटता है
एक घर पेड़ पर
एक घर आसमान पर
एक घर मेरे
पास
एक घर
तुम्हारे पास
चलूँ तो घर
बैठूँ तो घर
रुकूँ तो
घर
देखूँ
तो घर
अद्भुत
!
सिर्फ
घर
में घर नहीं।
- गौतम चैटर्जी
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