हर विद्यार्थी ढूँढता है ऐसे अध्यापक
अच्छे
लगते हैं वे अध्यापक जिन्हें अपनी क्लास की पहली बेंच से लेकर आखिरी बेंच तक के
बच्चों का नाम पता होता है। जो उन बच्चों से भी उत्तर उगलवा लेते हैं जिन्हें
उत्तर पता होता है लेकिन वे क्लास में बोलने से परहेज करते हैं। हाँ, उन अध्यापकों को थोड़ा अतिरिक्त सम्मान करने का मन होता है जो परीक्षा
कक्ष में हड़बड़ी में गिरी पेन चुपचाप रख
देते हैं बच्चों की टेबल पर। दोस्त की तरह लगते हैं वे अध्यापक जो उदास चेहरा देख
बिना किसी लाग लपेट के पूछ लेते हैं बच्चों की परेशानी। अक्सर वह अध्यापक हो जाते हैं
बेहद प्रिय जो कॉपी में बड़ा सा लाल गोला बनाने की जगह लिख देते हैं सही शब्द या पंक्ति।
खेल लेते है बच्चों के साथ थोड़ी देर बैडमिंटन। बरबस आकर्षित कर लेते हैं वह
अध्यापक जो बच्चों के साथ पी लेते हैं चाय, देश दुनिया पर कर
लेते हैं खुल कर बहस। ऐसे अध्यापक बेहद अच्छे लगते हैं जिनका साथ महसूस करा देता
है दोस्त, गार्डियन, शिक्षक, भाई, बहन जैसा रिश्ता।
हर
विद्यार्थी ढूँढता है ऐसे अध्यापक। कहे-अनकहे, जाने-अनजाने
भी वह पा लेना चाहता है ऐसे अध्यापक का स्नेह जो उसकी जीत में ही नहीं हार में भी खड़ा हो सके उसके साथ। जब काँपे
उसके पैर तो खुद ब खुद कंधे पर आ जाए उसका हाथ। ऐसा शिक्षक खुद में पूरा विध्यालय
होता है। उसे सहेज लेता है विद्यार्थी मानस में शाश्वत प्रेरणा की तरह।
वागार्थ, मार्च २०१८, पृ ११०
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