शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

लीजिये! फिर आ गया पंद्रह अगस्त

हाँ जी साहब! फिर आ गया। हर साल ही आता है। कम से कम एक छुट्टी तो मिलती है। इस साल तो इतनी छुट्टियाँ मिल चुकी हैं कि अब उसकी भी प्रतीक्षा नहीं रही। कुछ सिर फिरे लोग फिर भी देश-प्रेम के गीत, जोश से भरने वाले गानों को ज़ोर से बजाएँगे। मुहल्ले के कुछ लोग कार्यक्रम करने के नाम पर चंदा जमा कर गुलछर्रे उड़ायेंगे। बच्चे जोश भरे गीत गुनगुनाएँगे। टीवी पर वैसी ही फिल्में देखनी पड़ेगी, वैसे ही गाने सुनने पड़ेंगे। खबरों में भी यही छाया रहेगा। कौन से राज्य में पंद्रह अगस्त कैसे मनाया गया, प्रधान मंत्री ने लाल किले से क्या बोला, वगैरह वगैरह। कोविद-19 के चलते हो सकता है शायद ऐसा कुछ न हो या कुछ कम हो। लेकिन यह दिन बस एक, केवल एक दिन के लिए, न उसके पहले न उसके बाद। सब भूल कर यथावत हो जाएगा। देश गया........

हम यह भूल जाते हैं कि आजादी वर्ष में केवल एक दिन के लिए नहीं आई है। एक समय था लोगों के सर पर जुनून उठता था, पुरानी बातें ताजा हो जाती थीं। सीना चौड़ा हो जाता था। आजादी ऐसे ही नहीं आई थी। बहुतों ने बहुत कुछ दिया था, खोया था। किसी का सर्वस्व स्वाहा हो गया, तो किसी की जान गई थी। कोई ऐसा घर न था जिसने किसी न किसी प्रकार का योग दान न दिया हो, आजादी का दिन देखने के लिए। परिवार का परिवार स्वाहा हो गया। जब तक ऐसे लोग थे, जिन्होने आजादी में बलिदान दिया था, आजादी का अर्थ समझ आता था, उसका मूल्य समझते थे। ये वे लोग थे जिन्होने कहा यह मत पूछो कि देश ने तुम्हारे लिए क्या किया, कहो कि तुमने देश के लिए क्या किया

लेकिन हमें तो आजादी बैठे बैठाये मिली, बिना हाथ पैर हिलाये, बिना कुछ दिये, जन्म से ही। हम तो उनमें हैं जो पूछते हैं, देश ने हमारे लिए क्या किया’? हम तो उनमें हैं जो पूछते हैं सूरज से तुम क्यों जलते रहते हो, हम पूछते हैं फूल से तुम क्यों सुगंध देती हो, हम पूछते हैं धरती से तुम क्यों अन्न उपजाती हो, हम पूछते हैं मेघ से तुम क्यों बरसते हो? बच्चों के जोश की आग से भी सीखने के बदले हम अपनी बातों और व्यवहार से उनमें पनप रही देश भक्ति की आग को बुझा देते हैं। उनसे प्रेरणा लेने के बजाय उन्हें भी निराश कर देते हैं। राष्ट्रीय गान पर खड़े होने में बड़ा कष्ट महसूस होता है लेकिन उत्तेजक या फिल्मी धुन पर तुरंत खड़े हो कर शरीर के हर अंग को तोड़-मरोड़ कर,  लटके – झटके देने में कोई कष्ट नहीं होता।

ऐसे समय में अभयनगर का उदाहरण जानने योग्य है। यह छोटा सा गाँव उसी देश में है जहां सिनेमा हाल में राष्ट्रगान बजने पर खड़े होने के आदेश का विरोध होता है और उन विरोधियों का  राजनीतिक दल और गैर सरकारी जनहित संस्थाएं संवैधानिक मौलिक अधिकार के नाम पर समर्थन करती हैं। उसी देश में यह गाँव हैं, जहां कुछ लोगों को  ‘.................जय बोलने से भावनात्मक या धार्मिक ठेस पहुँचती है। इतना ही नहीं,  स्वार्थवश अनेक लोग संविधान की दुहाई दे कर उनका साथ देते हैं। यह उसी देश में है जहां देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं और उससे ज्यादा लोग इसे उचित ठहराते हुए तर्क देते हैं। जी हाँ, यह गाँव, अभायनगर,  कोलकाता से मात्र 158 किमी दूर, नदिया जिले में है। इस गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय है। इस विद्यालय में रोज 10.50 प्रात: एक घंटी बजती है। यह कोई साधारण घंटी नहीं है। इस घंटी के बजते ही पूरा गाँव 1 मिनट के लिए थम जाता है। गाँव में सब लोग बुत बन जाते हैं। गाँव के हर घर के लोग, सड़क पर चल रहे राहगीर, साइकिल या मोटर साइकिल सवार, बाजार-दुकान में,  सब अपनी अपनी जगह पर रुक कर खड़े हो जाते हैं। इसे अंजाम दिया है विद्यालय के प्रधानाध्यापक सफीकुल इस्लाम ने; उद्देश्य है बच्चों और गाँववासियों में राष्ट्रीय चेतना का विकास करना। 10.55 पर विद्यालय के बच्चे एक गीत गाते हैं। विद्यालय की इमारत पर लगे लाउड स्पीकर से पूरे गाँव में बच्चों द्वारा गाया जाने वाला यह गीत सुनाई पड़ता है। यह गीत और कुछ नहीं राष्ट्र गीत होता है।

             

    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपने सुझाव (suggestions) दें, आपको कैसा लगा और क्यों, नीचे दिये गये एक टिप्पणी भेजें पर क्लिक करके। आप अँग्रेजी में भी लिख सकते हैं।


2 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१५-०८ -२०२०) को 'लहर-लहर लहराता झण्डा' (चर्चा अंक-३७९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

मन की वीणा ने कहा…

जानकारी युक्त, प्रेरणा दायक पोस्ट।