(मैं चिन्मय मिशन की ‘चिन्मय विभूति’ में प्रथम बार 2018 जनवरी में तीन सप्ताह व्यापी “गीता ज्ञान यज्ञ” और फिर 2019 में तीन सप्ताह की “संपूर्ण रामचरित मानस” शिविर में गया था। यह यात्रा विवरण उसी समय लिखा गया था, लेकिन कम्प्युटर की अतल गहराइयों में न जाने कहाँ लुप्त हो गया था। अचानक एक दिन प्रकट हुआ तो मामूली हेर-फेर के साथ आपके सामने है)
भारत
के व्यापारिक एवं औद्योगिक शहरों में एक जाना पहचाना नाम है पूना या पुणे का। पूना
से लगभग ४५ कि.मी. पश्चिम की तरफ बढ़ें तो एक छोटा सा गाँव है कोलवान। भारत के
अधिकतम गाँवों की ही तरह कोलवान भी एक अनजाना नाम ही है। लेकिन इस गाँव में प्रवेश
करने के ठीक पहले है एक विभूति, जी हाँ ‘चिन्मय
विभूति’। सत्य ही चिन्मय मिशन का यह मुख्यालय विभूति ही है। चिन्मय
मिशन का नाम देख कर अगर आप सोच रहे हैं कि आश्रम होगा, तो आप
गलत हैं। यह मुख्यालय भी नहीं है।
दरअसल यह विज़न सेंटर (Vision Centre) है जहाँ भविष्य के निर्माण के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। ब्रह्मलीन
स्वामी चिन्मयानंद के उद्देश्यों, संकल्पों, सिद्धांतों को समझने और समझाने की शिक्षा
दी जाती है, ताकि मिशन के पदाधिकारी, कार्यकर्ता, सेवक, सेविकाएं, साधक को यह
पता हो कि उन्हें क्या करना है और कैसे? नए-नए केन्द्रों की
स्थापना के साथ-साथ ऐसे स्वयं सेवकों की, कार्यकर्ताओं की माँग
बढ़ रही है और प्रशिक्षित लोगों के अभाव में ये केंद्र अपने उत्तरदायित्व का सही
निर्वाह नहीं कर पाते हैं। इस केन्द्र की स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए
स्वामी तेजोमयानन्द जी कहते हैं, “हम चाहते हैं कि लोग यहाँ आएँ, प्रेरणा प्राप्त करें,
दूर-दृष्टि प्राप्त करें, प्रशिक्षण प्राप्त करें, और फिर वापस जाएँ और जहाँ भी
जाएँ उस स्थान को इस ज्ञान-ज्योति से प्रज्ज्वलित करें।” प्रशिक्षण के इस कार्य को सुचारु रूप से करने के लिए आवश्यक अत्याधुनिक यंत्रों एवं
साधनों से सुसज्जित छोटे-बड़े सभागार भी हैं, भोजनालय, लौंड्री, आवश्यक वस्तुओं की दुकान, डॉक्टर, चिन्मय मिशन की वस्तुओं की दुकान और
पुस्तकों के लिए चिन्मय वाणी के नाम से विक्रय केंद्र, स्वामी
चिन्मयानन्द पर विशाल औडियो के साथ चित्रों का केंद्र, मंदिर
आदि भी हैं। बच्चों, उनके अभिभावकों,
आम जनता के लिए भी वर्ष भर अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षण तथा शिविर का आयोजन होता
है। इसी परिसर में “चिन्मय नाद बिन्दु”, एक आवासीय प्रशिक्षण संस्थान है जहां भारतीय
संगीत-नृत्य की शिक्षा दी जाती है। यहाँ का दृश्य किसी आश्रम का नहीं बल्कि एक
रिज़ॉर्ट का सा या खुला विश्व-विद्यालय का ही है।
सहयाद्रि पर्वत शृंखला ने इस आश्रम को
तीन तरफ से घेर रखा है। ऐसे लगता है जैसे सहयाद्रि ने अपनी अंजली में भर रखा हो, या शिव लिंग की चँदेरी के मध्य आश्रम शिव लिंग स्वरूप में गढ़ा गया हो। एक
पहाड़ी की चोटियों पर एक साथ दृष्टिपात करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि हनुमान शयन
मुद्रा में विश्राम कर रहे हैं। प्रात: और संध्या आश्रम के अंतिम छोर पर बने गणेश
मंदिर से सूर्योदय और सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य देख आँखें हरी हो जाती हैं। इन्हीं
पहाड़ियों के पीछे से ही रोज सुबह सूर्यदेव आश्रम में प्रवेश करते हैं और प्रत्येक
शाम उल्टी दिशा में उसी सहयाद्रि पहाड़ी के पीछे प्रस्थान करते हैं। दूर-दूर तक जहाँ
तक नजर जाती है खेत ही खेत और उनके मध्य में कहीं-कहीं छोटे-छोटे गाँव-मकान-झोपड़ी ऐसे लगते हैं जैसे खेतों में गाँव की ही खेती की
गई हो।
प्रमुख द्वार से अंदर प्रवेश करते ही तुरंत अपने आप ध्यान आकर्षित हो जाता है और रीड़ की हड्डी एकदम सीधी हो जाती है। तुरंत अनुभव होता है कि किसी विशेष स्थल में प्रवेश कर रहे हैं। कान, आँख और दिमाग अपने आप चौकन्ने हो जाते हैं, सब कुछ भरपूर ग्रहण करने के लिए। मन प्रफुल्लित हो जाता है और एक सात्विक भावना समा जाती है। सामने दूर तक जाती चौड़ी सड़क दीख पड़ती है। दोनों तरफ छोटे-छोटे पौधों की क्यारियाँ जिन पर फूल लहरा रहे हैं। इन्हीं के मध्य दाहिने तरफ है ‘मारुति’ मंदिर। स्वच्छ एवं बड़ा परिसर। चमकता संगमरमर का फर्श और ठीक सामने वीरासन में, गदा लिए अभय मुद्रा में विराजमान हैं मारुति नन्दन हनुमान। सुबह शाम पूजन, अर्चना और वैदिक आरती। विशेष पूजा, अनुष्ठान, पाठ या होम की भी समुचित व्यवस्था है।
इसके विपरीत बाईं तरफ है कार्यालय का परिसर, नाम है ‘स्वागतम’। प्रवेश द्वार के बाहर ही है प्रहरी के रूप में विशालकाय पीपल का वृक्ष, जैसे सब आने जाने वालों को नजर भर देख रहा हो और उन्हें आशीर्वाद भी प्रदान कर रहा हो। जैसे कि कह रहा हो कि मैं जिस प्रकार हर समय हरा-भरा रहता हूँ, वैसे ही यह स्थान भी हंसमुख बना रहता है। जैसे यहाँ पक्षी निरंतर आते रहते हैं वैसे ही यहाँ भक्तों का आवागमन लगा रहता है। जैसे मेरे नीचे बैठने वाले को सुकून मिलता है, ठंडी बयार मिलती है वैसे ही अतिथियों को ज्ञान एवं आराम मिलता है। वहीं स्वागत के लिए है रंग बिरंगी कुमुदनी और श्वेत जवाकुसुम। स्वागतम के प्रवेश द्वार से ही दिखेगा विशालकाय चिन्मय मिशन का प्रतीक चिन्ह। मैं इस प्रतीक को समझ नहीं पाया। पता लगा यह मलयालम का ‘ॐ’ है तथा ब्रह्मलीन स्वामी चिन्मयानन्दजी के हस्ताक्षर का पहला अक्षर भी। उसके पीछे शीशे के बड़े बड़े बंद दरवाजों से झाँक रहा है ‘स्वानुभूति’, दाहिने हाथ है चिन्मय साहित्य का भंडार “चिन्मय वाणी”, और बाईं तरफ चिन्मय वस्त्रादी, पूजा एवं सजावट की वस्तुएँ। सब वस्तुएँ उत्कृष्ट कोटि की तथा बड़ी सावधानी एवं सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाई हुई। इस सब को जोड़ता विशाल स्वच्छ प्रांगण। स्वामीजी के गुरु तपोवन महर्षि की आदमक़द तस्वीर आदि। इस सब के बाद अंत में है कार्यालय। प्रवेश करने पर कार्यालय का आभास तो देता है लेकिन वहाँ कार्यालय की ‘दुर्गंध’ नहीं, खुशबू है, स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण फ़र्निचर। कर्मचारी मिलनसार, हंसमुख, तत्पर और सहायक। ऐसा प्रतीत नहीं होता कि हम किसी कार्यालय में आए हों, बल्कि प्रवेश किया है सहायता कक्ष में जहाँ सब सहायता को तत्पर।
वापस आता हूँ ‘स्वानुभूति’ पर। इसकी व्याख्या और वर्णन करना मेरे
बस की बात नहीं। एक के बाद एक अनेक उद्दरण, हिन्दी एवं अँग्रेजी
में, साहित्य, चिंतन, अध्यात्म, देश एवं
परदेश हर जगह से अनेक उक्तियाँ। स्वयं पढ़ें और स्व-अनुभूति करें। हरेक के
लिए अलग-अलग संदेश, अलग-अलग अर्थ,
अलग-अलग अनुभव, अलग-अलग अनुभूति। अगर पढ़ते हुए, समझते हुए
आगे बढ़ना है तब एक दिन में पूरा नहीं कर सकते।
इसके बाद एक-एक कर चिन्मय दर्शन का
कार्यालय, ‘चिन्मय दर्शन’, चिन्मय संगीत
विद्यालय तथा आधुनिक विशाल सभागार। अर्ध-गोलाकार सभागार आधुनिक यंत्र, ध्वनि-प्रकाश, विशाल मंच,
१००० से ज्यादा दर्शक-श्रोताओं की बैठने की व्यवस्था। कुर्सी में ही लगी मुड़ने
वाली टेबल ताकि श्रोता आवश्यकता पड़ने पर कुर्सी के हैंडल से उसे निकाल कर
सुविधापूर्वक लिख सकें और वापस उसे यथा स्थान लगा सकें। सभागृह का नाम है सुधर्मा
। सभागृह के सम्मुख है बड़ी सी जगह और उसके आगे खुला वातायन। मौसम के अनुसार उस
खुली जगह में भी अनुष्ठान / कार्यक्रम किए जा सकते हैं। सभागृह को पार कर हम पहुँचते हैं मिशन के स्वामी के ठहरने का
स्थान। उसके सम्मुख विशाल भोजन कक्ष, नाम है अन्नाश्री, साथ ही रसोई घर। रसोई घर आधुनिक संसाधनों से सम्पन्न तथा स्वच्छ। मन करता
है खड़े खड़े देखते रहें। भोजन कक्ष में लगभग ५०० व्यक्ति एक साथ बैठ कर भोजन कर
सकते हैं। चरण पादुका अंदर नहीं ले जा सकते। हाथ धोने के लिए स्वच्छ, सुंदर और बड़ी व्यवस्था, ऐसी कि कभी पंक्ति में खड़ा
न होना पड़े। पीने के लिए फ़िल्टर किया हुआ पीने का पानी। सर्दी के मौसम में गरम
पानी भी टंकी में उपलब्ध, और व्यवस्था ऐसी की कभी खाली नहीं।
स्वच्छ धो-पोंछ कर साफ किए स्टील की थाली, कटोरी, चम्मच तथा गिलास। बर्तन सफाई की मशीनें लगी हैं जिसे कर्मचारी संभालते
हैं। कार्य इतनी सुविधा एवं द्रुत गति से चलता है कि कभी भी ज्यादा इंतजार नहीं
करना पड़ता है। अनुशासित श्रद्धालु, भोजन के बाद टेबल ऐसी छोड़
कर जाते हैं कि उसे फिर से साफ करने की आवश्यकता नहीं। जूठे बर्तन उठा कर ऐसे रखे
जाते हैं कि किसी प्रकार की न कोई गंदगी न दुर्गंध। सुकून मिलता है यहाँ बैठ कर
भोजन करने से। ईंट-सीमेंट की दीवार न हो कर बड़े-बड़े शीशे लगे होने से दूर तक निगाहें
जाती हैं और प्रकृति के दर्शन होते हैं। इसी भोजनालय के नीचे है रसोई का भंडार घर, बाहर से पता ही नहीं चलता, पूरा का पूरा भू-तल
में।
इस सब के बाद प्रारम्भ होती है आवासीय
भवन, जिनके नाम भी हैं कौसल्या, सुजाता आदि। इन्हीं के
मध्य है अंजनी, आवासीय प्रबंधन का कार्यालय, डॉक्टर का चैम्बर, नाम है चिन्मय धन्वंन्तरी। आवासीय
भवन एक के बाद एक कई हैं। इन सब के बाद है बंगले, जिन में सब
सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन बंगलों का निर्माण श्रद्धालुओं ने करवाया है। जब वे आते
हैं तब ठहरते हैं अन्यथा दूसरे यात्री भी ठहर सकते हैं। आश्रम का अंत होता है एक
छोटी सी पहाड़ी से। इसी पहाड़ी पर स्थित हैं विघ्नहर्ता विनायक का मंदिर। यहाँ जलती
रहती है अखंड ज्योति। सुबह शाम वैदिक आरती। मंदिर प्रांगण के नीचे ध्यान कक्ष। मंदिर
प्रांगण से पूरे आश्रम के साथ-साथ दूर तक फैली प्रकृति का विहंगम दृश्य जी भर कर
देखिये।
इस केंद्र की स्थापना और गतिविधियों की
परिकल्पना स्वामी तेजोमयानंद जी की है। इसका निर्माण भी मिशन के ही कार्यकर्ता, साधकों, भक्तों ने ही की है।
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आपने भी कहीं कोई यादगार यात्रा की है और
दूसरों को बताना चाहते हैं तो हमें भेजें। आप चाहें तो उसका औडियो भी बना कर भेज
सकते हैं। हम उसे यहाँ, आपके नाम के साथ प्रकाशित
करेंगे।
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