शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

क्या हासिल होगा, सरल होने से?

 क्या हासिल होगा,

       सरल होने से?

सरल होकर तुम

                    आनंद हो जाओगे...

 जीवन क्या है? एक जटिल पहेली या एक सरल सफर! हम इस प्रश्न से रोज किसी न किसी रूप से जूझते रहते हैं। आज लोग जीवन की आपाधापी में बेचैन दिखते हैं, पर सच तो यह है कि जीवन बहुत ही सरल है। जिसका जीवन जितना सरल उसकी आंतरिक शक्ति उतनी ही बड़ी। एक पौधे में से कलि निकलकर देखते-ही-देखते फूल बन जाती है। यह गुलाब की आंतरिक शक्ति है कि वह कभी साबित नहीं करना चाहता कि वह गेंदे से बेहतर है, और गेंदा कभी नहीं कहता कि उसका रंग गुलाब से सुंदर है। वे जो हैं वही हैं, न कम न ज्यादा, सहज सरल, उन्हें किसी को कुछ साबित नहीं करना। उनकी आंतरिक शक्ति उन्हें पूर्णता का एहसास कराती है।

          कुछ भी करने के पहले हम विचार करते हैं – क्यों करूँ? क्या हासिल होगा यह करने से? जैसे, क्या होगा सत्य कहने से, क्या हासिल होगा ईमानदार होने से, क्या मिलेगा सरल होने से ....... क्या उपयोगिता का केवल एक ही पैमाना है – धन? उस धन की क्या उपयोगिता जो कलह पैदा कर दे! क्या उससे गरीबी की उपयोगिता ज्यादा मूल्यवान नहीं जो सुलह करा दे? क्या आनंद ही अंतिम उपयोगिता नहीं है? तब हम क्यों आनंद को छोड़ धन के पीछे भागते फिरते हैं। इस भ्रम को क्यों पालते हैं कि धन से ही आनंद प्राप्त होगा? हाँ, धन चाहिए, लेकिन क्या केवल धन? क्या सब धनी आनंद में हैं? सरल होने में तो कोई धन भी नहीं लगता। फिर, आनंद के लिए धन क्यों चाहिए? क्या सरल-आनंद को अपने कभी भोगा है? एक बार तो इस आनंद में डुबकी लगा कर देखिये।  

          एक समय की बात है सुकरात और डायोजिनीज की मुलाकात हुई। सुकरात साधारण कपड़े पहनते थे। डायोजिनीज या तो नंगा रहता था या चीथड़े लपेटे रहता। डायोजिनीज ने सुकरात से कहा, 'मैंने तो सुना था कि तुम ज्ञानी और सरल हो, पर देख रहा हूँ कि तुमने बड़े सुंदर कपड़े पहन रखे हैं। सुकरात हंसे और बोले कि 'शायद ऐसा ही हो। डायोजिनीज बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सुकरात के शिष्य प्लेटो से व्यंग्य में कहा कि स्वयं तुम्हारे गुरु ने स्वीकार किया है कि वे सरल और त्यागी बिल्कुल नहीं हैं। प्लेटो ने उत्तर दिया, उन्होंने ज्ञान और त्याग, सरलता और साधुता का कोई बाना नहीं पहन रखा है, न ही तुम्हारी तरह वे त्याग का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें अपने त्याग और ज्ञान पर अहंकार नहीं है, किंतु तुमने तो अपने नंगे शरीर को पोस्टर बना रखा है। इस नंगेपन में कोई सरलता नहीं है। प्रयत्न करके नंगा होना-सरलता कैसे होगी? सरल वह होता है, जो अनायास हो और भान भी न हो। धर्म और तप का प्रदर्शन भी अहंकार है।

          तोलस्तोय कहते हैं, 'जहाँ सरलता और अच्छाई और सत्य के लिए स्थान नहीं है, वहाँ महानता हो ही नहीं सकती।' सरलता हर समय प्रस्तुत रहती है, पर इंसान जीवन को जटिल बनाने में जुट जाता है। संसार का हर जीव कर्म के अनुसार फल के इस नियम में बंधा जीवन जी रहा है। पर इंसान ने इस सरल नियम से किनारा कर लिया है। लोग सोचते हैं कि ऐसी क्या युक्ति निकाली जाए कि आम के पेड़ में कटहल उग आए। वे यह नहीं सोचते कि अगर हम आम खाना चाहते हैं, तो आम लगा लें और कटहल की चाह में कटहल। पर नहीं, यह सरल मार्ग हमें नजर नहीं आता। और जब जटिलता के मार्ग पर चलकर हमें सरलता के दर्शन नहीं होते हैं तो हम कहते हैं, अगर जटिल मार्ग पर चलकर हमें मंजिल नहीं मिली तो सरलता पर चलकर तो हम गर्त में ही चले गए होते। आज यह प्रश्न बहुत ही जरूरी बन गया है कि आखिर क्यों कोई व्यक्ति जटिल हो जाता है?

          न्यूटन का, वर्षों की मेहनत नष्ट करने वाली बिल्ली से यह कहना, ‘तुम्हें पता नहीं प्यारी बिल्ली कि तुमने यह क्या किया। यह न्यूटन की आंतरिक शक्ति से निकली हुई बात है और यह आंतरिक शक्ति उनकी सरलता से निकलती है। ऐसा नहीं हुआ होगा कि उन्हें अपनी वर्षों की मेहनत के नष्ट होने से कोई कष्ट नहीं हुआ हो। पर उन्हें अपने द्वारा किए गए कार्य, उसके महत्व का किसी भी प्रकार से अहंकार नहीं था। यह उनके मन की शक्ति से निकली हुई बात थी। यह उनकी आंतरिक शक्ति ही थी, जिसके चलते वे नए सिरे से उस कार्य को कर सके।


          कुछ ऐसा ही वाकिया है थॉमस एडीसन का। 67 वर्ष की उम्र में एक दिन एक विस्फोट के साथ उनके  कारखाने में आग लग गई। अथक प्रयासों के बावजूद भी, तेजी से फैलते केमिकल के चलते कारखाने को नहीं बचाया जा सका और पूरा कारखाना जल कर राख हो गया। एडिसन के साथ उनका लड़का भी था। उन्होंने उसे कहा जाओ अपनी माँ को बुला कर लाओ, उसने अपनी जंदगी में कभी राख का इतना बड़ा ढेर नहीं देखा होगा। उनकी पत्नी जब अर्धमूर्छित अवस्था में वहाँ पहुंची तो उन्होंने कहा दुःखी मत होओ, अच्छा हुआ मेरी सब गलतियाँ जल कर राख हो गईं। अब मैं फिर नए सिरे से प्रारम्भ करूंगा। उन्हें यह शक्ति कहाँ से मिली? यह उनकी आंतरिक शक्ति ही थी, हर चीज को सरलता से लेने का उनका स्वभाव था जिससे उन्हें इतनी ऊर्जा मिली।  

लाओत्से  भी कहते हैं, "महान उपलब्धियों की नींव में सरलता होती है।"          

    सात्रे को नोबेल पुरस्कार की घोषणा हुई तो उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से उसे लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'मैं नोबेल लेकर कोई इंस्टीट्यूशन नहीं बनना चाहता, क्योंकि अगर मैं इंस्टीट्यूशन बन गया तो मैं जो भी कहूंगा लोग सच मानेंगे और कोई भी व्यक्ति हमेशा सच नहीं होता। वे अपने ज्ञान, जीवन की सीमाओं को स्वीकार करते हैं यही है, जो उन्हें आनंद से भर देती है। यह बात स्वीकारना कि मैं भी अपूर्ण हूँ, मुझसे भी गलतियां हो सकती हैं, संसार में मुझसे भी अच्छे भले लोग हैं, सरलता के मार्ग पर रखा पहला और निर्णायक कदम है। जैसे ही हम यह मानना शुरू कर देते हैं कि संसार बहुत बड़ा है, विविध है, मैं इसकी विविधता का एक अंश मात्र हूँ, हम सरल हो उठते हैं। विलियम जेम्स का कहना है, 'बुद्धिमान होने का एक मात्र रास्ता है, सरल हो जाओ

          दूसरों की उन्नति प्रगति को देखकर उनके प्रति ईर्ष्याभाव रखना तुम्हारे जीवन की उन्नति के मार्ग में बाधा है, पर अपनी गलतियों, बुराइयों से बचकर अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर संघर्ष करना, आगे बढ़ना उन्नति का सबसे सहज और सरल मार्ग है। यही सरलता तुम्हारी आंतरिक शक्ति को बढ़ाएगी और आंतरिक शक्ति, जीवन को बेहतर मार्ग पर ले जाएगी।

          जीवन एक ही नियम से चलता है, वह है कि जो बोओगे वही पाओगे। गीता में जब श्री कृष्ण कह रहे हैं कि 'तुम कर्म करो फल की चिंता मत करो’, तो वे इस बात को पुष्ट कर रहे होते हैं कि कर्म के बाद फल आपको मिलना तय है - उतना ही निश्चित जितना सूर्य का पूर्व से उदित होना। वे स्पष्ट कह रहे हैं कि फल निश्चित है, पर आजकल लोगों की आंतरिक शक्ति इतनी कमजोर हो गई दिखती है कि वे इस बात को इस तरह से ले रहे हैं, 'फल मिले न मिले तू कर्म करता चल', जो कि एक सरल बात को जटिल कर देता है।


          जब विवेकानंद कहते हैं कि 'आप जैसा सोचते हो वैसे ही बन जाते हो, तो वे भी इसी सिद्धांत की बात कर रहे हैं कि जीवन में जो भी करोगे जीवन वैसा ही हो जाएगा। इसलिए अगर सरलता चाहते हो, तो सरल हो जाओ। और जैसे ही आप सरल हो जाओगे वैसे ही आपकी आंतरिक शक्ति मजबूत हो जाएगी। आप स्वयं आनंद का श्रोत हो जाओगे।



         गौतम बुद्ध ने भी कहा है चलते, खड़े होते, बैठते या सोते हुए जो मन को शांत और सरल रख सकता है वह शांति का सुख प्राप्त कर लेता है।

(अरुण लाल, अहा जिंदगी, नवम्बर, 2017 के लेख पर आधारित)

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