दीपावली के शुभ अवसर पर सबों को बधाइयाँ
और
दीपोत्सव के वंदन
दीपों की जगमगाहट के साथ जीवन को मिठास से भर देने की परम्परा का नाम ही दीपावली है। रौशनी के इस महापर्व की तैयारी भी शुरू हो चुकी है तो क्यों न इस बार रौशनी के पर्व की शुरुआत घर का अँधेरा मिटाने के अलावा मन का अँधेरा दूर करने से ही की जाये? इस बार उपहार के बहाने खुशियाँ बाँटी जायें? क्यों न इस बार मुँह के साथ जिंदगी को भी मीठा कर दें? क्यों न इस बार दीपों की जगमगाहट की तरह नई सोच को जीवन से जोड़ दिया जाए ताकि खुशियों को बाँटने की परंपरा जीवन में त्यौहार की तरह बस जाए।
सवाल कई हैं और उनके जवाब भी
हमारे पास हैं, हमारे खुद के पास, क्योंकि जब तक हम जिंदगी में कुछ सकारात्मक नहीं करेंगे,
तब तक जीवन का अँधेरा सदा के लिए दूर करना मुश्किल है। हम
इससे जीत नहीं सकते, इसलिए इस बार एक नई शुरुआत करते हैं,
अँधेरे को हमेशा के लिए दूर करने की। घर की सफाई यदि हमने
कर ली मगर कूड़ा मुहल्ले के किसी चौराहे पर फेंक आये, तो उससे तो परेशानी कई गुना बढ़ जाती है।
हमें सोचना चाहिए कि इससे वहाँ रहने वाले लोगों को परेशानी होती है। इसलिए कचरे का
सही तरीके से प्रबंधन करना सीखें।
यदि हमारे शहर मुहल्ले में
कूड़े का निस्तारण सही ढंग से नहीं हो रहा है तो इसकी शिकायत स्थानीय प्रशासन से
करें और खुद भी सोचें कि कचरे का प्रबंधन कैसे हो? इस बार कोशिश करें कि गंदगी घरों से ही नहीं, बल्कि सड़कों व शहरों से भी दूर हो। एक
स्वच्छ माहौल तैयार हो और खुशियों के आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो।
हर बार की तरह कोई कोना रोशनी
से न बचने पाए, यह तो जरूर
सोचा होगा। इस बार हमें यह भी सोचना चाहिए कि कहीं कोई कूड़ा-कचरा गंदगी को न बढ़ा
रहा हो, साथ ही कोई हृदय अँधेरे से भरा न रहे यह भी हमें सोचना चाहिए। इस बार रोशनी की
जगमगाहट को हृदय से जोड़े रखिए, ताकि जीवन भर यह जगमगाहट हर
कोने के साथ हर हृदय तक पहुँचे। सभी व्यक्तियों के साथ मुक्त हृदय से मिलिए। हृदय
खोलकर मिलिए। मिठाइयाँ तो हर साल बँटती हैं, इस बार से
खुशियों को बाँटने की परंपरा को और ज्यादा मजबूत और सशक्त बनाइए। सगे-संबंधी
रिश्तेदारों और आस-पास के लोगों के बीच खुशियाँ इतनी बाँटी जाएँ कि घर से बाहर तक
खुशियों का माहौल इस बार लंबे वक्त के लिए ठहर जाए। इस बार खुशियों को बाँटने में
कोई कंजूसी नहीं हो, यह सोचकर हम दीपावली का त्योहार मनाएँ।
मिठास जबान पर हो तो मन
अच्छा हो जाता है और दिलों में हो, तो जिंदगी खूबसूरत। तो क्यों न इस बार जिंदगी को मीठा कर दिया जाए - प्रेम की
बोली से, मनचाही कुछ बातों से, दुःख-सुख बाँटने के कुछ अच्छे लम्हों से, क्योंकि यह
मिठास ऐसा धागा है जो जीवन में न सिर्फ मिठास ही बोलेगा,
बल्कि दिलों को भी जोड़े रखेगा। नई शुरुआत जीवन की उन
उलझनों को कहीं पीछे छोड़कर हो, जो लंबे समय से रुकी हुई है। नई शुरुआत उन रिश्तों की भी
होनी चाहिए, जिन पर उदासी का रंग चढ़ गया है, ताकि एक नई उम्मीद के साथ फिर से जिया जा सके।
हालांकि भारतीय दीपावली एकता
के रंगों से जगमग होती रही है। इस सिलसिले को बनाए रखने के लिए और घर के माहौल के
साथ पूरे परिवेश को खुशियों से भरने के लिए इसमें प्रेम की मिठास को घोलते रहना
जरूरी है,
ताकि विविधताओं से भरे इस देश में दीवाली हमेशा मनती रहे 'एकता की दीपावली ।' कोई अकेला न रह
जाए,
इसलिए पास-पड़ोस के लोगों से मिलते रहने का बहाना ढूंढ़िए।
घर की सजावट के लिए प्राकृतिक फूलों के बंदनवार, शुभ दीपावली, कंदील आदि बनाएं। इससे दीपावली पर हमारा घर प्राकृतिक एवं
सकारात्मक ऊर्जा और खुशबू से महक उठेगा।
इसके साथ ही हम ये भी सोचें
कि सबसे बढ़कर अगर कोई उपहार है तो वह है जरूरत में काम आने वाली चीज। इसलिए इस
बार उन घरों में भी झाँकिए, जहाँ रौशनी तो है मगर जरूरतें भी मौजूद हैं। हो सकता है
हमारा कोई उपहार उन जरूरतों को पूरा करे। मिठाइयाँ तो सभी बाँटते हैं,
इस बार जरूरतमंदों की जरूरत के मुताबिक उपहार बाँटिए। फिर
इसकी जरूरत चाहे हमारे अपने घर के बुजुर्गों को हो, छोटों को या फिर आस-पास के माहौल में किसी को क्यों न हो,
इस बार एक दीया जिंदगी की नई
शुरुआत के नाम हमें जलाना ही चाहिए।
(‘मधुसंचय’ पर आधारित)
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2 टिप्पणियां:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-10-22} को "वीरों के नाम का दिया"(चर्चा अंक-4589) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-10-22} को "वीरों के नाम का दिया"(चर्चा अंक-4589) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
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