यूनानी दार्शनिक सुकरात से उनकी जान-पहचान का व्यक्ति एक दिन उनसे मिलने आया। वह सुकरात से कुछ कहने के लिए बड़ा उद्विग्न था। उसने छूटते ही सुकरात से कहा: "क्या बताऊं! आपके उस दोस्त के बारे में मैंने क्या सुना?"
उसकी बात पूरी होने के पहले ही सुकरात बीच में बोल पड़े “जरा ठहरो! तुम कुछ
कहो,
इससे पहले मैं तुम्हारी और तुम्हारी बात की जांच तो कर
लूं!" दोस्त सुकरात को देखता रह गया, उसे सुकरात की बात समझ नहीं आई। खैर,
सुकरात ने अपनी बात जारी रखी। "इससे पहले कि तुम इस दोस्त के बारे में कुछ बताओ,
मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि
तुम जो कहने जा रहे हो वह सत्य है?"
हकलाते हुए रुक-रुक कर दोस्त ने कहा, "नहीं......., ऐसा तो मैं नहीं कह सकता! दरअसल मैंने ये सारी बातें किसी
से सुनी हैं और चाहता हूं कि आपको भी बताऊँ।"
“वो तो ठीक है", सुकरात ने कहा, “ जिस बात की सच्चाई का तुम्हें भरोसा नहीं है वह बात तुम
मुझसे बांटना चाहते हो तो बताओ, जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वह
कुछ अच्छी, शुभ बात है?
"नहीं, बल्कि बात तो इसकी उलटी..."
सुकरात ने उसकी बात काटते हुए पूछा, “अच्छा तो बात यह है कि तुम मुझे ऐसी बुरी बात बताने जा रहे
हो जिसके बारे में तुम यह भी नहीं जानते कि वह सत्य है या नहीं,
तो मुझे यह बताओ कि जो तुम मुझे बताना चाहते हो क्या वह
मेरे लिए उपयोगी है?”
सामने वाला आदमी थोड़ी परेशानी से बोला, “हां, नहीं... नहीं, कुछ खास उपयोगी तो नहीं..."
"अच्छा तो अब सुनो," सुकरात ने अपनी बात पूरी की, "तुम मुझे जो बात बताना चाहते हो वह न सत्य है,
न अच्छी है और न उपयोगी ही है,
तो उसे सुनने और उसे सुनाने में क्या लाभ?...
हम वक्त क्यों जाया करें! आओ, मेरे साथ काम करो!"
सुकरात अपने काम में उसे आदमी को जोड़ कर व्यस्त हो गए। यह कथा संसार भर में 'सुकरात का त्रिविध परीक्षण' नाम से प्रचलित हुई। और सभी इसे अपनी-अपनी तरह से सुनाते
हैं। लेकिन इस त्रिविध परीक्षण का सार तो हर कहीं एक ही है : जो व्यर्थ है
उसे कहने सुनने में समय व्यर्थ न करो।
(अगला कोई
किस्सा कहने-सुनने, व्हाट्सएप्प किसी को भेजने के पहले इस ‘त्रिविध परीक्षण’ को दुबारा पढ़ें और उसका त्रिविध
परीक्षण करें। दूसरों की बात कहने के बजाय अपनी बात, अपना
अनुभव साझा कीजिये। कबीर को याद कीजिये:
“सार-सार
को गही रहे, थोथा देई उड़ाय”
तोड़ने की
बात ‘उड़ा’ दीजिये, जोड़ने की बात ‘रख’ लीजिये। सत्य
को रख लीजिये अफवाह को उड़ा दीजिये। अफवाहों को फैलाना बंद कीजिये। किसी की लिखी /
पढ़ी / सुनी बात अच्छी लगे तो उसके साथ अपने विचार, अपने
अनुभव भी जोड़ कर भेजिये। इससे आपका ही फायदा होगा क्योंकि:
1। जो
अच्छी बात आप आगे भेज रहे हैं, उसे पहले खुद को समझना होगा, उस पर मनन करना होगा, अपने अनुभव जोड़ने होंगे, और
2। इस
प्रकार छान कर भेजी हुए बात को पढ़ने वाला, सुनने वाला ज्यादा
महत्व देगा।)
~~~~~~~~~~~~
क्या
आपको हमारे पोस्ट पसंद आ रहे हैं, क्या आप चाहते
हैं दूसरों को भी इसे पढ़ना / जानना चाहिए!
तो
इसे लाइक करें, सबस्क्राइब करें, और दूसरों से शेयर करें।
आपकी
एक टिक – एक टिप्पणी दूसरों को
पढ़ने
के लिए प्रेरित करती है।
~~~~~~~~~~~~
यूट्यूब का संपर्क सूत्र à
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें