क्या आप जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं? क्या आप सामान्य जीवन से संतुष्ट हैं? यदि आप में पूर्णता प्राप्त करने की इच्छा है, तो भगवदगीता
में सफलता का सूत्र है। हर किसी का बौद्धिक स्तर (IQ) उच्च नहीं होता। हर कोई अत्यंत प्रतिभाशाली नहीं होता। लेकिन हर एक व्यक्ति
अत्यधिक प्रेरित हो सकता है। ध्यान बाहरी विषयों से हटाकर आंतरिक विजय की ओर करना
होगा। तब, आपको मन की शक्ति का पता चलता है। मन
पर विजय प्राप्त करना ही संसार पर विजय प्राप्त करना है।
उत्कृष्टता
के लिए शांत मन की आवश्यकता होती है। जब मन शांत होता है, तो बुद्धि तीव्र होती है, एकाग्रता होती है और कार्य शानदार
होते हैं। जब मन अशांत होता है तो आप अपने ज्ञान तक नहीं पहुंच पाते, अपनी आंतरिक शक्ति तक नहीं पहुँच पाते, सोच भटक जाती है और कार्य दोषपूर्ण
हो जाते हैं।
हम सभी
मानसिक अशांति से पीड़ित हैं। मन को क्या परेशान करता है? हमारे स्वयं के, अपने खुद के विचार। जब स्वयं के
विचार रास्ते में आते हैं तो एक गायक के स्वर गड़बड़ा जाते हैं, नौकरी पाने का इच्छुक व्यक्ति
साक्षात्कार में तब असफल हो जाता है जब उस पर नौकरी पाने का जुनून सवार हो जाता है, एक बावर्ची (शेफ) जब अपने
मेहमानों को प्रभावित करना चाहता है तो गल्तियां करता है, एक परीक्षार्थी में जब असफल होने
का भय समा जाता है तो उसके उत्तर गलत हो जाते हैं, एक कलाकार जब प्रशंसा पाने के लिए
रचना करता है तब उसकी रचना श्रेष्ठ नहीं बनती है। इन सब में एक समानता है – आपकी
अपनी इच्छा ही बाधा है, लक्ष्य उच्च नहीं है, लक्ष्य में दोष है। जब अकबर ने
तानसेन से पूछा,
“तुम्हारे गायन में वह कशिश क्यों नहीं है जो तुम्हारे गुरु हरिदास के गायन में है?” तानसेन ने यही कहा था कि ‘मैं आपके लिए गाता हूँ और मेरे
गुरु ब्रह्म के लिए गाते हैं’। एक उत्कृष्ट निर्माण के लिए लक्ष्य का महान
होना अनिवार्य है।
विशिष्टता
कुछ चुनिंदा लोगों का विशेषाधिकार नहीं है। सबसे प्रतिभाशाली से लेकर सबसे कम
संपन्न तक, हर
कोई इसके बारे में जानता है। इसके लिए बस आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं से परे एक
दृष्टिकोण और एक उच्च लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। इच्छा ही आपके
और सफलता के बीच सबसे बड़ी बाधा है। इच्छा से मुक्त हो जाने पर आप पूर्णता की
परिधि में पहुंच जाओगे।
जीवन
का नियम है कि आपको वह मिलता है जिसके आप हकदार हैं, न कि वह जो आप चाहते हैं। इसलिए ‘इच्छा’ को अलग रखें और अपनी ‘योग्यता’ पर ध्यान केंद्रित करें। योग्यता हासिल करने के लिए काम करें, अपने कौशल को निखारें, अपने कार्य को बेहतर ढंग से करने का
प्रयास करें,
अपने व्यापार को और सुचारु बनाएँ, अपनी कला को और सजाएँ। हड़पने से परोसने की ओर, मुनाफाखोरी से सेवा की ओर, लेने से देने की ओर बदलाव करें।
प्रकृति की शक्तियां आपके सामने झुक जाएंगी, आपका सहयोग करने लगेंगी। प्रकृति
का चक्र देने के सिद्धान्त पर ही टिका हुआ है। सागर अपना जल मेघ को, मेघ वर्षा को, वर्षा पर्वतों को, पर्वत नदियों को, और फिर नदी वही जल वापस सागर को
दे देती है।
आप अपने
आप को दुर्भाग्यशाली समझते हैं या भाग्यशाली? यदि आप अपने को दुर्भाग्यशाली समझते हैं तब आप कुछ
ऐसी चीज़ें पाने के लिए काम कर रहे हैं जो आपके पास नहीं हैं? तो फिर आप उत्साहहीन हैं। आप केवल अपने काम की
गतिविधियों से गुजरते हैं। इससे असफलता और हताशा पैदा होती है।
इसके
विपरीत क्या आप उस प्रचुर मात्र में मिले उपहार से अवगत हैं जो आपको मिला है? तब आप आभारी हो जाते है। जब आप लोगों को देना, उन्हें योगदान देना और उनका मूल्य बढ़ाना चाहते हैं
तब आप रचनात्मक, प्रेरित और सफल बनते हैं। प्रचुरता
- भौतिक संपत्तियों से असंबद्ध मन की एक स्थिति है। हो सकता है कि आपके पास कुछ भी
न हो और आप धन्य महसूस करें। और इसके विपरीत सबसे अमीर व्यक्ति भी वंचित महसूस कर
सकता है,
दुर्भाग्यशाली महसूस करता है।
अपने
जुनून, प्रतिभा, उपहार को पहचानें।
उस क्षेत्र में एक उच्च आदर्श स्थापित करें। काम, सेवा और त्याग की भावना से, एक बड़े लक्ष्य के लिए करें। स्वार्थी
कार्य सामान्यता की ओर ले जाता है। सभी सफल लोगों ने एक महान उद्देश्य के लिए काम
किया। डॉन ब्रैडमैन ने स्वार्थ के लिए क्रिकेट नहीं खेला। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान
संगीत के प्रति समर्पित थे। आइंस्टीन केवल भौतिकी के बारे में सोचते थे। शास्त्रीय
गायक और नृत्यांगनाएँ ईश्वर को आराध्य मान कर कला का प्रदर्शन करती थीं।
जब
आपका ध्यान संसार से ‘परे’ की ओर चला जाता है, तो आप निःस्वार्थ कर्म करते हैं। आप न तो स्वार्थी
लक्ष्य के लिए काम करते हैं और न ही निःस्वार्थ लक्ष्य के लिए। आप जानते हैं कि
आपकी प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त उपहार है। आप इसे परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिये
अर्पित करें। फिर, पूर्णता आप में सहजता से प्रवाहित
होती है। एथलीट एरिक लिडेल, (फ्लाइंग
स्कॉट्स-मैन), अपराजेय था और उसने ओलंपिक रिकॉर्ड
बनाए। वह कहता था: "भगवान ने मुझे दौड़ने के लिए बनाया है, और मैं भगवान के लिए दौड़ूंगा।" इसी आदर्श वाक्य
के साथ उन्होंने ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते।
आप
कितने भी प्रतिभाशाली क्यों न हों, आप अकेले सफलता हासिल नहीं कर सकते। आपको मजबूत दल (टीम) बनाने की जरूरत है। अपने
दल के सदस्यों के साथ एकाकार महसूस करें। उन्हें भागीदार के रूप में देखें, विरोधियों के रूप में नहीं। वे आपके सहयोगी हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। जब आपको सफलता मिले तो उनसे दूर न
हों। याद रखें, यह क्षणिक और अस्थायी है। यह किसी
दिन चला जाएगा। अपने परिश्रम का फल भोगें, लेकिन उस पर निर्भर न रहें। आंतरिक भंडार का
निर्माण करें जो विपत्ति के समय आपके साथ खड़ा रहेगा। जब चीजें आती-जाती
रहती हैं, जैसा कि उन्हें होना चाहिए, तो आप टूटेंगे नहीं, आपका दिल डूबेगा नहीं। जैसा कि
ओलिवर वेंडेल होम्स ने कहा:
“For him, in vain the envious
season roll,
Who bears eternal summer in his
soul”
जिसकी आत्मा में वसंत का वास हो, उसे दूसरे मौसम कष्ट नहीं दे सकते।
आत्मा से ईर्ष्या का त्याग कर
प्रेम की अग्नि प्रज्वलित करें।
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