खुशहाल, शांति, सुखी और भाईचारे की जिंदगी के लिए हमें
चाहिए आपसी समानता। क्योंकि समानता हमें जोड़ती है, हमें
जिंदगी देती है। आपने कभी रक्त दान किया या लिया है? रक्त, आँख, किडनी, हृदय या और कोई
अंग दान देना या लेना हो तो फिर चाहिए वही समानता। लेने और देने वाले में अनगिनत
असमानताएं हो सकती हैं। उम्र अलग हो, जाति अलग हो, धर्म अलग हो, भाषा वेश-भूषा अलग हो, विचार देश चमड़ी अलग हो, लिंग अलग हो, सब कुछ अलग होने के बावजूद कुछ, केवल कुछ चीजें
समान हो तो जीवन दान दिया और लिया जा सकता है। समानता जीवन देती है और पृथकता मृत्यु।
एक जोड़ता है दूसरा तोड़ता है।
आपने
बहुत बार सुना होगा और उतनी ही बार पढ़ा भी होगा, हिन्दू और मुस्लिम साथ
साथ रहते थे। एक दूसरे की खुशियों और गमों को साथ साथ बांटते थे। पूरा परिवार साथ
रहता था। एक दूसरे के खुशी और गम में शरीक होते थे। हमारा ध्यान आपसी समानता में
था। हम चर्चा करते थे हममें क्या एक जैसा है, और यह हमें जोड़
देती थी क्योकि यह चर्चा हमें साथ रहने के कारण बता देती थी।
हम
क्यों जोड़ने की बात नहीं करते? हम क्यों समानता की
बात नहीं करते? इस तथ्य को हम जानते हैं फिर भी बात करते हैं
केवल भेद की। बात करते हैं हममें अलग अलग क्या है? हममें
फर्क क्या है? नए और पुराने में, पूरब
और पश्चिम में, नर और नारी में,
हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई में क्या क्या फर्क हैं। बड़े बड़े
शोध ग्रंथ लिखे जा रहे हैं यह बताने कि इनमें फर्क क्या क्या हैं। क्या इनमें समानता
कुछ भी नही है? शोध करें तो पता चलेगा कि समानता ज्यादा हैं।
मूल भाव एक जैसे ही हैं। तब फिर हम क्यों अलगाव की बात करते हैं, समानता की नहीं? आइए तोड़ को छोड़, जोड़ की बात करें। हम बात करें हमारी समानता की। अलग होने के जितने कारण हैं उनसे ज्यादा कारण
साथ रहने के हैं। कारण, साथ रहने का खोजें अलग होने का नहीं।
तोड़ने के लिए विभेद की बात करते हैं और जोड़ने के लिए समानता की। विश्व में प्रचलित
धर्मों में भेद कितने हैं इस पर तो बहुत चर्चा होती है लेकिन उनमें समानता कितनी
है, इस पर चर्चा करें।
तोड़ें नहीं, जोड़ें।
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