सूतांजली ०१/१० मई, २०१८
४
लाख - करोड़ - अरब की गलीच जिंदगी
अभी
कुछ समय पहले मासिक पत्रिका अहा!जिंदगी में ऋतु रिचा की लिखी कहानी ‘गलीच जिंदगी’ पढ़ी। कहानी कोई खास नहीं है लेकिन लिखी
बड़ी प्रभावोत्पेदक ढंग से है और इसलिए प्रभावित करती है।
कहानी
तो बस इतनी ही है कि एक बच्चा अपनी सौतेली माँ के व्यवहार से तंग आकर घर छोड़ कर
भाग जाता है और शनै: शनै: एक भिखारी बन जाता है। रोज सुबह सुबह उठ कर नियत जगह पर
जाकर बैठना और भीख मांगना। दिन भर झींकन,
चिड़चिड़ाना, झुञ्झुंलाना और कोसना। मन में तमन्ना कि कुछ
रुपये जमा हों तो कुछ अच्छा पहने और खाये। नहीं तो वही चिथड़े पहनना और जूठन खाना।
बस ऐसे ही अचानक एक दिन भीख मांगते मांगते वहीं लुढ़क गया और फिर कभी नहीं उठा।
पुलिस आई, लाश को ठिकाने लगाई और उसके झोंपड़े की साफई की।
वहाँ जमीन में दबी एक थैली मिली, बहुत भारी। खुचरे रुपयों और
रेजगारी से भरी। थाने ले जाकर गिना गया तो पूरे ४ लाख रुपए निकले।
पहले
पढ़ी या सुनी हुई है न! ‘थैली मिली’ पढ़ते ही पूरी बात
भी शायद समझ गए होंगे। कोई आश्चर्य की बात नहीं है, कुछ नया
भी नहीं। बहुत हुआ तो एक बड़ा सा नि:स्वाश, और शायद एक गाली
भी, ये ४ लाख का कंगाली!!!
लेकिन
ठहरें, जरा नजर उठा कर अपने समाज को देखें, आड़ोस – पड़ोस को देखें, गाँव-कस्बा- शहर पर नजर
डालें। क्या आपको ४ लाख ही नहीं ४ करोड़ और ४ अरब के दरिद्र दिखाई पड़ रहे हैं? अकूत धन, लेकिन फिर भी सुबह उठने से रात देर सोने
तक दोनों हाथों से बटोरने में लगे लोग दिखे? दिन भर झींकन, चिड़चिड़ाना, झुञ्झुंलाना,
कोसना और सोचना कि कुछ रुपए हाथ आ जाए तो .......... करूँ। यूं ही सोचते, कहते, करते अचानक एक दिन लुढ़क जाना। दिखे ऐसे लोग? कहीं आप भी तो उनमें एक नहीं?
खुल कर मुस्कुराएं,
प्रसन्न रहें, आशीर्वाद दें, मुक्त
हस्त बांटे और उन्मुक्त हो कर जीयें। और फिर जीयें ४ लाख में ४ खरब की खुशहाल
जिंदगी।
हाँ, है मुझ में दम
गांधीजी
की पुण्य तिथि पर गांधी शांति प्रतिष्ठान में २०१४ में आयोजित एक सभा को सम्बोधित
करते हुए श्री गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा था, “आज
कोई यह नहीं क़हता कि भाई मुझ से गलती हुई है। मैं अपनी गलती कुबूल कर रहा हूँ। आगे
मैं अपने आप को सुधारने की कोशिश करूंगा। .... आज हर राजनीतिक हैसियत, राजनीतिक दल और साथ ही वे भी जो अपने को सामाजिक आंदोलन का कर्ता धर्ता
मानते हैं – ये सब ‘हिमालय जैसी भूलें’
कर रहे हैं, पर इनमें से एक भी अपनी गलती मानने को तैयार
नहीं”। उन्होने आगे कहा, “गाँधी में चार चीजें ऐसी थीं, जो उन्हे एकदम अनूठा बनाती थीं: उन्हे मृत्यु का भय नहीं था, पराजय का भय नहीं था, कहीं कोई उन्हे मूर्ख नहीं
मान ले - इसका उन्हे डर नहीं था और चौथी बात, सबसे महत्वपूर्ण
यह कि उन्हें अपनी गलती स्वीकार करने से डर नहीं था। आज इन चारों बातों को
अगर हम मापदंड के तौर पर लें और पूछें कि
कौन है जो इस मापदंड पर खरा उतरता है तो
बहुत कम लोग मिलेंगे। इसी में हमारी सबसे
बड़ी कमजोरी है”।
मनुष्य
से गलती होना स्वाभाविक है। लेकिन अपनी गलती को स्वीकार न करना, अपराध है। यह मानव को पशु तुल्य बनाती है। मुझे याद है, हमें यही शिक्षा
दी जाती थी कि जीवन में गलतियाँ होंगी, लेकिन अपनी गलती को
स्वीकार करो और उसके लिए दिल से क्षमा मांगो । लेकिन आज हर जगह घर हो या विद्यालय, प्रबंधन संस्थान हो या व्यापार जगत, राजनीति या
सामाजिक क्षेत्र ठीक इसकी उल्टी शिक्षा दी जाती है – कभी अपनी गलती स्वीकार मत
करो। इसी का यह परिणाम है कि पहले जिसे गलती समझी जाती थी अब वही व्यवस्था बन
गई है। बड़े ठसक के साथ हम नियम, कायदे, कानून का उल्लंघन करते हैं और कभी यह मानने को भी तैयार नहीं होते कि ‘हाँ, हमसे गलती हुई है’, क्षमा
मांगना तो बहुत दूर की बात है। बल्कि इतना और जोड़ देंगे कि ‘कौन
अपनी गलती मानता है?’ पहले “वे” माने तब मैं सोचूँ। अब उनसे
पूछें कि यह “वे” कौन कौन हैं? कौन बताएगा? उस ‘वे’ ने गलती मानी या नहीं, इसका निर्णय कौन करेगा?
लेकिन, निराश मत होइए! जिस नई पीढ़ी को हम कोसते रहते हैं,
जिनसे हम कोई आशा नहीं रखते, उसी पीढ़ी ने बीड़ा उठाया है इस
शिक्षा को फिर से पटरी पर लाने का और उदाहरण प्रस्तुत करने का। हम और कुछ नहीं तो
कम से कम इन नौजवान बच्चों के हिम्मत की दाद तो दे ही सकते हैं। यह तो कह ही सकते
हैं “मेरे बच्चों रखना इसे संभाल के”।
क्रिकेट
जगत में आस्ट्रेलिया का अपना एक स्थान है।
इसी आस्ट्रेलिया के जाने माने खिलाड़ी और कप्तान स्टीव स्मिथ ने स्वीकार
किया, ‘हाँ, मैंने गलती की और इसका मुझे दुख
है’। अपनी भूल के लिए उन्होने माफी मांगी। पत्रकार सम्मेलन में स्मिथ कामनोबल बढ़ाने के लिए उसके पिता पीटर उसके साथ खड़े थे। भारतीय क्रिकेटर कपिल देव ने
टेलीग्राफ में प्रकाशित कपिल देव का साक्षात्कार |
टिप्पणी की, “मेरा आदर उनके प्रति
ज्यादा है जो अपनी गलती को स्वीकार करते हैं”। स्टीव
स्मिथ २८ वर्ष का युवा है।
टेलीग्राफ |
सन्मार्ग |
इस
कड़ी में एक भारतीय भी है। राजनीति से जुड़े,
दिल्ली के मुख्य मंत्री, अरविंद केजरीवाल। अपनी गलत
बयानी और अशोभनीय टिप्पणियों के कारण हर समय
विवादों में घिरे रहे, मानहानि के मुकदमे लड़ते रहे
लेकिन आखिर उन्हे भी समझ आई कि लड़ना नहीं बल्कि गलतियों के लिए माफी मांगना ही
असली विजय है। और फिर लिखित में अपनी गलती को स्वीकारा और माफी मांग ली।
नतीजा – मानहानि के मुकदमे हटा लिए गए। उनका कद छोटा होने के बजाय बढ़ गया। और
स्वत: ही अपनी जबान पर काबू भी पा लिया। ४९ वर्षीय अरविंद को भले ही युवा न समझें
लेकिन बुजुर्ग के श्रेणी में तो हरगिज नहीं आते।
२०, ३० और ४० के लोगों ने अपनी भूल सुधारने की कोशिश की और गलती स्वीकार की।
आवश्यक है औरों को आगे बढ़ कर कहने की, “हाँ, मुझ से गलती हुई, मुखे दुख है, मैं माफी मांगता हूँ आगे से ध्यान
रखूँगा कि मुझसे कोई भूल न हो”। अगर गलती की है तो उस पर
अड़े रहने के बजाय उसे सुधारें, भूल स्वीकार करें, सही दिशा की तरफ मुड़ें, लोगों को नई राह दिखाएँ।
हम युवाओं के प्रति अपनी सोच में परिवर्तन करें।
हम और उदाहरण पेश करें, गोपाल कृष्ण गांधी को बता दें कि हम कमजोर नहीं हैं। महात्मा की
तरह निडर बनें। है आप में दम? स्टीव स्मिथ, मार्क जुकेरबर्ग और अरविंद केजरीवाल ने तो कहा, “हाँ, है मुझ में दम”।
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