पक्षियों
की दुनिया (ब्लैक टाउन, सिडनी) सुबह की हर्बल चाय के साथ
ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, जर्मनी, इंग्लैंड
जहां भी गया काले कौवे दिखे। लेकिन उन सब देशों के कौवे हमारे भारत से अलग लगे। आकृति
वही, रंग वही, मिलती जुलती आवाज लेकिन
आकार बड़ा, ज्यादा गहरा काला रंग, आवाज
में थोड़ी भिन्नता, आंखे वैसी ही गोल लेकिन रंग अलग। यहाँ
सिडनी में जब ब्लैकटाउन निगम द्वारा बुजुर्गों के लिए आयोजित पर्व ‘सुबह की चाय, पक्षियों के संग’ के दौरान पता चला कि ये कौए नहीं हैं।
ब्लैक टाउन
सिडनी का एक बड़ा उपनगर है। ऊंचे भवन, मॉल, रेल्वे स्टेशन, बस अड्डा,
दौड़ती बसें। रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से सटा हुआ है ब्लैक टाउन शो ग्राउंड। हमारे
साथ पक्षी प्रेमी एक गाइड भी थे। उन्हों ने इतनी अच्छी तरह से दिखाया और समझाया कि हम
कल्पना भी नहीं कर सकते। भारत में भी अनेक जंगलों में हमें पक्षियों को दिखाया गया
लेकिन न उनकी बातें समझ आईं, न ढंग से पक्षी दिखे और न ही
आनंद आया। लेकिन इनका दिखाने का ढंग ही निराला था। पूरा विस्तृत मैदान, घनी हरी घास, पेड़-पौधे और छोटे छोटे तलब, समुचित रख रखाव कि शहर के बीच इस उद्यान में इतने पक्षी दिखेंगे सोच नहीं
पाये। ये पिंजड़ों में नहीं थे, खुले गगन में थे। यहाँ पता
चला कि पक्षियों को आँख से नहीं कान से देखने की कोशिश करनी होगी। आँख से बाद में
पहले कानों से पहचानना होगा। जी हाँ, उनकी आवाज से ही पता
चलता है कि वे कहाँ हैं और कौनसी हैं। कई पक्षी एक जैसे होते हैं लेकिन उनकी पहचान
उनकी अलग प्रवृत्ति से होती है।
हम वापस
आते हैं, विदेशी ‘कौवे’ पर। ये हैं, रैवेन (Raven)। ये कौवे नहीं है। हृष्ट-पूष्ट, बड़े बड़े, डरावने से।
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रैवेन |
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विली वागटाइल |
लेकिन इनकी जान के पीछे पड़ी
रहती हैं एक छोटी सी चिड़ियों का समूह। विली वागटाइल (willie wagtail), तीखी आवाज के साथ रैवेन को न उड़ने देती हैं न बैठने। हल्ला मचा मचा कर
भगाती रहती हैं, पीछा करती रहती हैं। हमने एक ऑस्ट्रेलियन नर कोयल को मादा
कोयल के नखरे निकालते भी देखा। नर पीछे पीछे चल रहा था और मादा इतराती उसी गति से
आगे बढ़ती रहती थी। अगर नर रुका तो मादा भी रुक जाती थी, दूरी
बराबर रख रही थी। हमने स्वांफेन (swamphen) भी देखा। खास बात
थी इसका बैंगनी
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स्वांफेन |
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नर और मादा ऑस्ट्रेलियन कोयल |
रंग का गला। साधारणतया काले या नीले गली की दिखाई पड़ती हैं। इनके अलावा और भी अनेक
पक्षी दिखे, जिनके बारे में गाइड ने विस्तार से बताया। हमें
इन रंग बिरंगी पक्षियों का एक रंगीन ब्रौचर भी दिया गया था। लॉन्ग रेंज दूरबीन का
कैमरा न होने के कारण फोटो नहीं ले पाये। उसने एक और बात बताई – पक्षियों को, अगर झुंड में न हों और दूरबीन से देखने का अभ्यास न हो तो खुली आँखों से
हो देखें। जब तक दूरबीन फोकस करेंगे, पता चला पक्षी गायब।
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मगपिए लार्क |
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पीली और गुलाबी कोकाटू |
पक्षी
भ्रमण के बाद हमें 10 अलग अलग प्रकार की हर्बल चाय चखाई गई। ये हमारे सामने वहीं
बनाई गईं और बनाने की विधि भी बताई गई।
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हर्बल चाय बनाने की विधि |
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हर्बल चाय के कुछ नमूने
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उन्होने यह भी बताया कि व्यावसायिक संसार
ने इन चायों का एक बहुत बड़ा बाजार तैयार कर लिया है और पैसे कमा रहे हैं। लेकिन
असली पेड़-पौधों से खुद बनाना चाहिए। असली स्वाद और स्वास्थ्यप्रद यही होती हैं।
इन्हे बनाना और उगाना आसान भी है और
किफ़ायती भी। विश्व के एक विकसित और आधुनिक
देश में ऐसी बात सुनकर लगा पूरे विश्व की एक ही अवस्था है। इससे छुटकारा पाने का
रास्ता भी नहीं दिखाता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम प्रयत्न छोड़ दें। कवीन्द्र
रवीन्द्र कि पंक्तियाँ याद आईं -
जोदि
तोर डाक शुने केउ ना आशे
तौबे
एकला चौले रे
(यदि
तुम्हारी आवाज सुन कर कोई ना आए, तब अकेले ही चलो)
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर
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