ज़ुबान
पाइथागोरस अपने समय के बहुत बड़े विद्वान थे। एक बार शिष्यों को पढ़ाते समय उन्होने कहा, “देखो, कुदरत ने जानवरों को ज़ुबान नहीं दी, ये अपने दुख: दर्द को जाहिर नहीं कर सकते। इन पर जो मुसीबतें आती हैं, वे ज़्यादातर इनकी बेजुबानी के कारण ही आती हैं”।
“लेकिन मनुष्य तो ज़ुबान रखता है, फिर उस पर मुसीबतें क्यों आती हैं”? एक शिष्य ने प्रश्न किया।
पाइथागोरस
बोले, “जिस तरह जानवर अधिकांश मुसीबतें अपनी बेजुबानी के कारण उठाता है, उसी तरह मनुष्य ज़्यादातर मुसीबतें अपनी जुबानी की वजह से झेलता है”।
- विनोबा
(अग्निशिखा, अक्तूबर,2019)
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नेताओं का
प्रशिक्षण
(नवजात जी का सम्बंध श्री अरविंद आश्रम, पांडिचेरी से रहा। यह उनके लिखे एक लेख का अंश है)
........ यहाँ
मैं यह बतला देना चाहूँगा कि हम एक बड़ा कार्यक्रम शुरू करना चाहते हैं। देश में
आध्यात्मिक शिक्षा और समाज-सेवा के लिए बहुत से केंद्र होंगे। लोगों को पता होना
चाहिए कि आध्यात्मिक शिक्षा क्या है – यह तो केवल एक हिस्सा है। लेकिन जैसे जैसे
व्यक्ति चेतना में विकसित होता जाये उसे यह सीखना चाहिए कि उस आध्यात्मिक शिक्षा
को वह सारे जीवन में कैसे चरितार्थ करें। गृह-विज्ञान के लिए एक विभाग होना होगा, अध्यापकों के प्रशिक्षण का एक विभाग होगा, नेताओं
के प्रशिक्षण का विभाग होगा क्योंकि राजनीति को भी बदलना चाहिये। आज
हमारे देश पर नब्बे प्रतिशत नेता अज्ञान में शासन करते हैं और अधिकतर धन उन्हीं के
हाथ में हो तो देश कभी प्रगति नहीं करेगा।
यह लज्जा की बात है, हमारे जैसे महान देश में इस प्रकार की मूर्खता सह ली जाती है और सबसे अधिक दोष है उन
लोगों का है जिनका श्री अरविंद के साथ सम्बन्ध है क्योंकि हम ऐसे लोग हैं जो ठीक
मार्ग अपना सकते हैं और हमें अपनाना भी चाहिए। हम किसी को दोष नहीं दे सकते। हमारे
अन्दर अतिमानसिक अवतरण के लिए सतत अभीप्सा होनी चाहिए। अतिमानसिक अवतरण के सिवा और
कोई चीज परिवर्तन नहीं ला सकती। लड़ाइयाँ लड़ने और जीतने से परिवर्तन नहीं आने वाला।
एक अति चेतना ही परिवर्तन ला सकती है। ............
- नवजातजी
(अग्निशिखा, अक्तूबर 2019)
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विकास, प्रगति और सफलता (Growth, Progress and
Success)
सामान्यत: हमलोगों में इन तीन शब्दों, विकास-प्रगति-सफलता, में एक भ्रम है, गलतफहमी है। जैसे जैसे हमारे व्यापार की बिक्री बढ़ने लगती है, 50 करोड़ से 100 करोड़, 100 करोड़ से 500 करोड़ दुनिया कहने लगती है कि हमें सफलता मिल रही है। हमें भी इस बात की गलतफहमी होने लगती है कि हम सफल हो रहे हैं। क्यों ऐसा है कि नहीं? हाँ या नहीं? नहीं ..... नहीं...... नहीं। विकास, प्रगति और सफलता में बहुत बड़ा फर्क है, जिसे समझने की दरकार है। जब हमारे व्यापार की बिक्री बढ़ती है 50 करोड़ से 100 करोड़, 100 करोड़ से 500 करोड़ यह हमारा सिर्फ विकास (growth) है। यह हमारी सफलता नहीं है। हमारी भौतिक संपत्ति में बढ़ोतरी हमारे विकास का मापदंड है। अगर यह विकास नीतिगत (ethics) यानि इसकी प्राप्ति अनुशासन से, ईमानदारी से, नियमों के पालन आदि के साथ हुआ है तब यह हमारी प्रगति (progress) है। नीति के साथ विकास हमारी प्रगति है। और इस प्रगति में मानवता, नैतिकता और आध्यात्मिकता का तड़का लगने पर मिलती है सफलता (success)।
यह हमारे लिये बहुत मत्वपूर्ण है अत: मैं एक बार फिर कहना चाहूँगा, अगर हमारे व्यापार की बिक्री में बढ़ोतरी होती है तब यह हमारी सफलता नहीं है। यह हमारा विकास है। जब यह प्रगति नीतिगत होती है तब यह विकास कहलाता है। और जब इस विकास में मानवता, नैतिकता और आध्यात्मिकता का समावेश होता है तब होती है सफलता। यह समझना बहुत ही आसान है। अपने बैंक में हजारों करोड़ रुपये होने के बाद भी हमें आंतरिक प्रसन्नता नहीं मिलती क्योंकि हमें सफलता नहीं मिली। सफलता वह अवस्था है जिसमें स्थायित्व, प्रसन्नता और शांति तीनों खुद-ब-खुद प्राप्त हो जाती है। सफलता में हमारा विकास और प्रगति दोनों छिपे हुवे हैं। अब इस पर विचार कर आप अपने नए लक्ष्य खुद निर्धारित कीजिये की आप को क्या चाहिए? आप को केवल विकास (ग्रोथ) चाहिए, या प्रगति (प्रोग्रैस) चाहिए या सफलता (सक्सेस) चाहिए।
(इंटरनेट
/ व्हाट्सएप से प्राप्त)
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7 टिप्पणियां:
बेहद शानदार लेख।
टिप्प्णी के लिये आभार
चर्चा में सम्मिलित करने के लिये आभार
शानदार लेख।
लाजवाब लेख संकलन बहुत शानदार।
टिप्प्णी के लिये आभार
आभार
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