शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

संस्कार

 प्रिय ......,

इतना स्नेह भरा पत्र पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। तुम दोनों ने याद किया, यही मेरी पूंजी है। दोनों के स्वर्णिम भविष्य के लिए हम सब की मंगल कामनाएँ।

 यह सच है कि स्मृतियाँ मीठी होती हैं। यह भी सच है कि ये मेरे वर्तमान को खाती हैं। ध्यान  रखना, जो कुछ भी करो, उसमें स्वयं को उपस्थित अनुभव करके करना। खाने की टेबल पर अनेक विचार दिमाग में चलते रहें और हमें पता नहीं चले कि खाना किसने खाया, हम तो वहाँ थे ही नहीं।

 आने वाले समय में तुम मानव शरीर का निर्माण भी करोगी। इसमें भी न मरने वाली आत्मा आकर रहने लगेगी। यह तुम्हारा दायित्व है कि तुम उस आत्मा को शरीर के साथ एकाकार कर दो। तभी उसके जन्म-जन्मांतर के अनुभव शरीर में प्रकट हो सकेंगे। वह महापुरुष बन सकेगा। उसके बिना केवल स्थूल शरीर का भोग करके चला जाएगा। तुम उसे जो चाहे बना सकती हो। अभिमन्यु की  तरह सीखकर, तैयार होकर, संस्कार पाकर ही बाहर आना चाहिए। माँ की फिर से विश्व में पूजा होने लगेगी। कहानियाँ, लोरियाँ सुनना, मीठी बातों से उसमें मिठास भर देना, ताकि बाँट सके।

 प्रसन्नता की बात है कि विशाल के विचार और उसका व्यवसाय तुम्हारे अनुकूल है। शुरुआत अच्छी है। आगे पति-पत्नी के रूप में तो तुम्हारा संकल्प ही काम आयेगा। इसे कमजोर मत पड़ने देना। नहीं तो केवल स्त्री-पुरुष रह जाओगे। दिल के बजाय दिमाग से व्यवहार करने लगोगे। यह गलती कभी मत करना। जीवन का मिठास दिल में होता है, दिमाग में नहीं।

 तुमलोग जब भी आओ, स्वागत है। तुम्हारे भाई-बहन-भाभियाँ सब तुमसे मिलकर प्रसन्न होंगे। सब कुशल है। आनंद से रहना। विशाल हृदय को मेरा स्नेह। ........

   (श्री गुलाब कोठारी की स्पंदन से)

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