सूतांजली के अक्तूबर अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-
इस अंक में तीन विषय, एक लघु कहानी और धारावाहिक ‘कारावास की कहानी –
श्री अरविंद की जुबानी’ की दसवीं किश्त है।
१। क्या गाँधी से दूर रहा
जा सकता है? मैंने
पढ़ा
किसी
भी वाद-विवाद का कोई अंत नहीं होता। अत: जब कभी कहीं कोई गाँधी की आलोचना करता, मेरे पास चुप रहने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता। मैं जानता हूँ कि वह
गाँधी के बारे में नहीं जानता। सोनाली के लेख को पढ़ने से संतोष हुआ, ऐसा सोचने वाला मैं अकेला नहीं हूँ, और भी हैं।
किसी की आलोचना करनी है, जरूर कीजिये लेकिन उसे जानने के बाद, समझने के बाद, पढ़ने का बाद। आधे-अधूरे ज्ञान से
नहीं, सुनी-सुनाई बातों से नहीं।
२। मैंने शायरी को देखा है मेरे अनुभव
आपने शायरी सुनी होगी, आपने
शायरी पढ़ी भी होगी, हो सकता है अपने शायरी लिखी भी हो। लेकिन
जनाब, क्या अपने कभी शायरी देखी भी है?
हाँ, मैंने देखी है।
३। सज्जनता लघु कहानी - जो सिखाती
है जीना
आज अचानक सज्जनता का यह पाठ पढ़ा कर तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार
किया भाई। युद्ध के इस नारकीय दलदल में फँसे
हुए मुझको हाथ देकर उबरने की कीमत तो नहीं चुका पाऊँगा, लेकिन...
४। मेरी नहीं सबकी
माँ
मैंने पढ़ा
सुख-आनंद
सर्व में है स्व मेन नहीं। माँ यह अच्छी तरह से समझती है। तभी तो...
जब प्रकृति का न्याय होता है तब न धन, न धर्म, न पद,
न ज्ञान काम आता है। काम आता है सिर्फ कर्म।
५।
कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी – धारावाहिक
धारावाहिक की दसवीं किश्त
पढ़ने
के लिए ब्लॉग का संपर्क सूत्र (लिंक) (ब्लॉग में
इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है): ->
https://sootanjali.blogspot.com/2021/10/2021.html
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