वे चमकदार दिखाई
देते हैं
कल्पना चावला! अखबारों की सुर्खियां बटोरती भारतीय मूल की इस अमेरिकन महिला की स्पेस सूट में तस्वीर आपके चेहरे के सामने घूम गई होगी। कल्पना चावला वह पहली भारतीय महिला है जिसने अंतरिक्ष की यात्रा की थी। लेकिन, दरअसल हम उनके निजी जीवन के बारे में ज्यादा नहीं जानते। एक बार कल्पना के पिता उनसे मिलने ह्यूस्टन, अमेरिका गए। कल्पना ने कहा, ‘आप बैठो मैं आपके लिए खाना लगाती हूँ’। यह कहकर कल्पना बर्तन धोने लगीं। पिता ने कहा, ‘बर्तन क्यों धो रही हो? बाद में धो लेना’। कल्पना ने कहा, ‘घर में हम दो लोग हैं और हमारे पास बर्तन भी बस दो लोगों के लिए है’। कल्पना के घर में सामान के नाम पर जरूरत की चीजें भर हुआ करती थीं। अमेरिका की सबसे सस्ती कारों में से एक, उनके पास थी।
एक बार कल्पना के पिता ह्यूस्टन में उसके
साथ थे। वे कल्पना के घर वापस आने का इंतजार कर रहे थे। कल्पना देरी से आईं तो
पिता ने देरी का कारण पूछा। कल्पना ने पिता को बताया कि वह ऑफिस से सीधा मोची की
दुकान पर चली गई थी। उसे अपने जूते ठीक करवाने थे। पिता जानते थे कि अमेरिका में
मोची मिलना आसान नहीं है और यहाँ चीजों की मरम्मत करवाने से सस्ता है नई चीजें
खरीद लेना। अतः उन्होंने कल्पना से पूछा, ‘मोची की दुकान
कहाँ है?’ कल्पना ने बताया घर से क़रीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। ‘कितने पैसे लिए?’ पूछने पर कल्पना ने बताया कि 12 डॉलर, जबकि नए जूते 10 डॉलर में आ जाते हैं। पिता हैरान थे,
कल्पना ने पिता से कहा ‘एक नई जोड़ी
जूते खरीदने का मतलब है पहला, और एक जानवर की हत्या
और दूसरा अगर हम नई जोड़ी ख़रीद लेंगे, तो मोची को काम कौन
देगा’? पिता ने कहा कि अगर वाक़ई किसी की मदद करना
चाहती हो तो कुछ पैसे दान में दे देती। तुम दोनों पति-पत्नी इतनी मुश्किल से पैसा
कमाते हो। कल्पना ने बताया ‘जितना कमाते हैं, उससे जिंदगी आसानी से चल रही है’।
हालांकि एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक के पास
देखा जाए तो पैसों की कमी नहीं हो सकती, लेकिन उनके पास अकाउंट में पैसे बहुत
कम रहते थे। ऐसा नहीं था कि उनके पास पैसे नहीं थे, बल्कि
वे हर साल अपने खर्च पर गाँव के दो बच्चों को अमेरिका लाती थीं, उन्हें लाने-ले जाने से लेकर अपने घर ठहराने तक। दुनिया के बारे में
उन्हें जागरूक करती थीं। बच्चों की यात्रा 15 दिन की होती थी
और उन्हीं बच्चों का चुनाव होता था, जो विज्ञान (साइंस) में
सबसे अच्छे होते और इस क्षेत्र (फील्ड) में आगे जाने की जिनकी दिलचस्पी होती। साल 2003
में 41 वर्ष की उम्र में अंतरिक्ष से लौटते
हुए उनकी मौत तक उनके पिता भी कल्पना की इस जिंदगी और सोच के बारे में नहीं जानते
थे। जाहिर है कि दुनिया भी नहीं जानती थी कि इतनी बड़ी वैज्ञानिक इतनी साधारण
जिंदगी जीती हैं। वे चाहतीं तो घर में
सामान का ढेर लग सकता था, लेकिन घर में उन्होंने दो लोगों के
बर्तनों से ज्यादा बर्तनों की जरूरत भी नहीं समझीं। वे चाहतीं तो एक नहीं 10
जोड़ी जूते ख़रीद सकती थीं, लेकिन उन्होंने
मोची के पास जाना चुना। कल्पना चावला की यही सरलता उन्हें और भी ख़ूबसूरत बनाती है,
उपलब्धियाँ हासिल करना बड़ी बात होती है, लेकिन उससे भी बड़ी बात है उन उपलब्धियों के साथ भी सरल बने रहना। होना तो यह था कि चीजें, सुविधाएं और पैसा हमारी
जिंदगी को सरल बनाता, लेकिन हुआ यह कि हमने अपने जीवन की
सरलता को खो दिया।
सैली राइड, अमेरिकन अन्तरिक्ष यात्री (एस्ट्रोनॉट)
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1 टिप्पणी:
व्हाट्स एप पर नवीन बैरोलिया की प्रतिक्रिया
���� सोच सरल तो जिन्दगी जीना भी सरल Socha ������������
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