निरंतर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाना बड़ा आनंददायक होता है। लेकिन इसके
लिए अथक परिश्रम और प्रयास ही नहीं बल्कि बड़ी सूझ-बूझ और समझदारी का हुनर भी
आवश्यक होता है। मंजिल तक ले जाने वाला हमारा हर प्रयास महत्वपूर्ण होता है। केवल प्रयास ही नहीं बल्कि विश्राम, धैर्य आदि का भी महत्वपूर्ण योगदान होता
है। इन तथ्यों को सही ढंग से समझना और उन पर अमल करना जरूरी होता है। एक गलत कदम, हमें मंजिल से कोसों दूर ले जाता है। आज के इस आधुनिक युग में इस विषय पर
बोलने वाले और लिखने वालों को भी कमी नहीं है। अपनी समझ,
सहूलियत, संसाधन और ऊर्जा के अनुसार ही उन्हें अपनाना चाहिए।
यह आवश्यक नहीं कि किसी की सफलता का राज आपके लिए भी कारगर साबित होगा। अतः अपना
संतुलन रखते हुए ही निर्णय लेना उचित है। इस यात्रा के कुछ कम चर्चित अंग इस
प्रकार हैं:
1.
लक्ष्य की स्पष्टता - मंजिल तक पहुँचने के लिए हर व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है,
श्रम करना पड़ता है। ये सार्थक तब माने जाते है,
जब इनसे हमें मनोवांछित परिणाम मिलते हैं या लक्ष्य हासिल
होता है। बहुधा हमें अपने लक्ष्य के बारे में स्पष्टता नहीं होती। अतः कई बार
मंजिल पर पहुंच कर भी लक्ष्य-भेदने से चूक जाते हैं लक्ष्य-भेदन का आनंद नहीं ले
पाते। मार्ग और मंजिल को हम बहुधा एक ही मान बैठते हैं, ये दोनों अलग-अलग हैं। धन कमाना मार्ग भी
हो सकता है मंजिल भी। लेकिन अगर यह मंजिल है और धन का माप निश्चित नहीं है तब यह
जीवन पर्यंत मार्ग ही बना रहता है मंजिल कभी नहीं। अतः कितना धन चाहिए, यह स्पष्ट होना चाहिए। धन क्यों चाहिए – तब धन मंजिल नहीं मार्ग ही है, और इस ‘क्यों’ में आपकी मंजिल
छिपी है। धन चाहिए, रहने के लिए बंगले के लिए। कहाँ, कितना बड़ा। इसका एक मानसिक चित्र बनाइये और धन का अनुमान कीजिये। उतना धन
मिल जाने पर लक्ष्य-भेदन कीजिये, बंगला खरीदिए और इसका जश्न
मनाइए। अन्यथा कब मंजिल मार्ग में परिवर्तित हो गई पता ही नहीं चला। मार्ग पर चलने
में इतने व्यस्त हो गए कि हमें मंजिल का ध्यान ही नहीं रहा और उसे पार कर गए।
लक्ष्य-भेदन के बाद, उसका आनंद लीजिये और एक नई मंजिल तय कर
फिर से चल पड़िये।
2.
विश्राम – जी हाँ। अथक
प्रयास ही नहीं विश्राम की भी सफलता के मार्ग में बड़ी भूमिका है। इसकी चर्चा कहीं
नहीं मिलती और प्रायः लोग इसे नज़र अंदाज़ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार मंजिल के
नजदीक पहुँच कर हाथ में आई हुई सफलता भी छूट जाती है। विश्राम न समय की बरबादी है
न लक्ष्य से भटकाव। बल्कि पाँवों को भलीभाँति जमा कर आगे बढ़ने का कारगर सूत्र है।
मार्ग में ईंधन के लिए रुकना आवश्यक है, अन्यथा मंजिल के करीब पहुँच कर भी, ईंधन
की कमी के कारण, व्यक्ति लक्ष्य से वंचित रह जाता है। लक्ष्य
तक पहुँचने के लिए जितना महत्व प्रयास व श्रम का है,
उतना ही महत्व विश्राम का भी है। विश्राम करने से हमें थकान
से राहत मिलती है और आगे बढ़ने के लिए मानसिक और शारीरिक ऊर्जा भी मिलती है। अति
उत्साह और लालच का परिणाम नुकसानदायक व हानिकारक हो सकता है। इसलिए मंजिल तक
पहुँचने के लिए उत्साह तो बनाए रखना चाहिए, लेकिन अति-उत्साह में अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहिए।
विश्राम के अभाव में अंतिम क्षणों में धैर्य छूटने लगता है, एकाग्रता भंग हो जाती है, ध्यान भटक जाता है, सांस टूट जाती है और हम गलती कर
बैठते हैं, ।
3.
हर कदम महत्वपूर्ण – वर्ष में 12 महीने होते हैं और छः ऋतुएँ। क्या कोई बता सकता है कि कौन-सा महीना
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है?
अगर एक भी महीना बाद दे दें तो क्या वर्ष पूरा होगा? कौन-सी
ऋतु खास है? सब ऋतुओं की अपनी अहमियत है, सब का अपना रंग है, किसी एक के न रहने से संतुलन
बिगड़ जाएगा। इसी प्रकार जीवन में चलते हुए हर कार्य का अपना महत्व है, किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा न समझें। जिस तरह एक-एक ईंट को
कुशलतापूर्वक रखकर और जोड़कर ही किसी श्रेष्ठ भवन का निर्माण किया जाता है,
एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही किसी भवन की ऊपरी मंजिल तक पहुँचा जा
सकता है- उसी तरह हमारे द्वारा किए जाने वाले छोटे-छोटे कार्यों द्वारा ही हम जीवन
की बड़ी मंजिल को बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। छोटे-छोटे कार्यों की
उपेक्षा करके अपनी महत्वाकांक्षाओं को सार्थक करने का स्वप्न देखना बहुत बड़ी भूल
है। छोटी-छोटी सफलताएँ प्राप्त करते हुए
चलने से जीवन में बड़ी सफलताएँ स्वतः प्राप्त होती हैं। महात्मा बुद्ध के
अनुसार-'आपके
सामने जो कार्य हैं, उन्हें पूरे उत्साह एवं पूरी शक्ति के
साथ करें। छोटा समझकर किसी कार्य की उपेक्षा न करें।' हमारा प्रत्येक कदम लक्ष्य की प्राप्ति का सूचक है,
इसलिए छोटे-छोटे कदमों की अवहेलना न करते हुए उन्हीं कदमों
को आत्मसात करना चाहिए और स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।
4.
एक कदम पीछे – फूटबॉल का
खेल हो या क्रिकेट,
दंगल हो या कुश्ती, टैनिस हो या बैडमिंटन, हर जगह देखा होगा कि खिलाड़ी और कैप्टन अपनी रणनीति बदलते रहते हैं। कभी
हमलावर, एटैकिंग, खेल खेलते हैं तो कभी
रक्षात्मक, डिफ़ेन्स। इसमें न कोई बुराई है, न शर्मिंदगी और न ही अपमान का अनुभव। बल्कि युद्ध के मैदान में भी
सेनापति अनेक बार पीछे लौट कर फिर से आक्रमण करता है। जब जीवन के अनेक स्थानों पर ‘एक कदम पीछे’ की नीति सफलता पूर्वक अपनाते हैं तब अन्य
अनेक जगहों पर एक कदम पीछे लेने से हम क्यों घबराते हैं, क्यों
अपमानित अनुभव करते हैं, क्यों शर्मिंदगी अनुभव करते हैं? सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ते समय कई बार ऐसे संयोग बनते हैं जहां एक कदम
पीछे लेने में कोई हर्ज नहीं बल्कि चोटी तक पहुँचने के लिए आवश्यक भी होता है। ऐसी
अवस्थाओं में बढ़ाए हुए कदम को वापस खींचने में कोई हर्ज नहीं होता क्योंकि उस बढ़ाये
हुए कदम में ही अंतिम सफलता की कुंजी होती है।
5.
लगातार प्रयास – लक्ष्य भेदने में असफल होने से निराश नहीं होना चाहिए। किए गए पूरे प्रयास को निरर्थक
नहीं मानना चाहिए। प्रयास व श्रम - मनोवांछित परिणाम न मिलने पर भले ही निरर्थक
प्रतीत हों, फिर भी इनका महत्व होता है; क्योंकि इनके कारण हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं,
इनसे हमें अनुभव की प्राप्ति होती हैं,
इनके कारण हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
दुनिया में
कोई भी कार्य एकाएक पूरा नहीं होता, लगातार प्रयास करने पर, निरंतर जुटे रहने पर, श्रम का सम्पुट जोड़ने पर कार्य पूरा होता है। जैसे कोई भी
मकान एकाएक नहीं बन जाता है। पहले मकान का नक्शा बनाया जाता है,
फिर नींव खोदी जाती है, मकान बनाने के लिए आवश्यक सामग्री जुटाई जाती है,
फिर योजनानुसार धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार होता है। यदि
हमारे दस छोटे प्रयासों में से पाँच प्रयास असफल होकर हमें हतोत्साहित करते हैं,
तो वे पाँच प्रयास जो सफल कदम हो गए हैं,
हमें उत्साहित भी करते हैं।
एक छोटा
बालक जब चलना सीखता है, तो पहले वह घुटनों के बल चलता है,
फिर किसी वस्तु का सहारा लेकर धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़े
होने का प्रयास करता है, फिर डगमगाते कदमों से आगे बढ़ता है। खड़े होकर चलने के इस
प्रयास में बच्चा कई बार गिरता है, उसे चोट लगती है, वह रोता भी है, लेकिन हार नहीं मानता। बार-बार प्रयास करता है और एक दिन वह
अपने प्रयास में सफल होता है। फिर वह न केवल चलता है,
बल्कि दौड़ता भी है।
6.
अध्यात्म को अपनायें – जी हाँ, यह आपको बड़ा
अजीब लग रहा होगा, शायद इसे सिरे से खारिज कर दें। लेकिन
ठहरिये, उपरोक्त पांचों में सबसे महत्वपूर्ण यही है। इसे
पहले नंबर पर न रख कर यहाँ केवल इसलिये रखा हूँ क्योंकि अनेकों के मन में अध्यात्म
के प्रति विरोध रहता है, इसे स्वीकार नहीं करते। लेकिन याद रखें
जब बार-बार लगातार असफल हो रहे हों, निराश जो रहे हों, किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हों, दुविधा में हों, कोई रास्ता न सूझ रहा हो तब यही सबसे बड़ा मित्र, सहायक
और मार्ग दर्शक होता है। इसकी क्षमता अपरिमित है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह
कैसे काम करता है, कोई नहीं जानता। इसकी सहायता कब, कहाँ, कैसे प्राप्त होगी यह भी कोई नहीं जानता। यह
इतने चुपके से काम करता है कि हमें इसका भान तक नहीं होता,
और यह अपना काम कर के निकल जाता है। इसे नजरंदाज मत कीजिये। आध्यात्मिक जीवन शैली
में विश्वास रखिये। याद रखिए प्रत्येक रविवार को चर्च में जाना या मंदिर जाना या
मस्जिद जाना या गुरुद्वारा जाना न धर्म है, न धार्मिकता न
अध्यात्म। इसके बजाय, मेरी समझ से जीवन के प्रति समादरपूर्ण
दृष्टि का होना ही धार्मिक या आध्यात्मिक होना है।
कहने का तात्पर्य है कि जिन
रास्तों पर हमें चलने का अभ्यास नहीं है, उन रास्तों में से आगे बढ़ने पर पहले हमारे कदम लड़खड़ाते
हैं,
धीरे-धीरे ही जब हम उन राहों पर चलना सीख जाते हैं,
तब ही हम दौड़ पाते हैं। मंजिल तक पहुँच सकते हैं।
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