कहते हैं न, प्यार में हारने वाला ही जीतता है। हम हर जगह ‘जीत’ खोजते हैं लेकिन फूल की दुकान पर ‘हार’ खोजते हैं! बच्चों के साथ जीतने में आनंद नहीं आता, उनसे तो हारने में ही आनंद आता है। जीवन में अनेक क्षण ऐसे आते हैं जहाँ जीतने से हारने का मोल ज्यादा होता है, हारने का आनंद जीतने से ज्यादा होता है।
चार्ल्स बुकोवस्की कहते हैं
कि बौद्धिक लोग आसान चीजों को मुश्किल तरीकों से कहते हैं। वहीं कलाकार मुश्किल चीजों
को बड़ी आसानी से बयाँ कर देते हैं। जर्मन-अमेरिकन कवि बुकोवस्की की इसी बात को
पंजाबी के लेखक राम सरूप अणखी की कहानी के जरिए समझा जा सकता है। ग्रेजुएशन के
दौरान कोर्स की किताब में पढ़ी यह कहानी एक शख्स गुरविंदर की है। 40
साल का यह व्यक्ति गुरविंदर सिंह साइकिल पर शहर से गाँव जा
रहा है। थोड़ा रास्ता तय करने के बाद उसकी नजर एक लड़के पर पड़ती है। लड़के की हाल
ही में शादी हुई है। साइकिल पर पत्नी के साथ गुरविंदर के पास से होकर गुजरता है।
गुरविंदर अपनी मस्ती में साइकिल चलाते हुए जोड़े से आगे निकल जाता है। खुद को पीछे
महसूस कर लड़का तेज पैडल मारने लगता है, जैसे ही वो गुरविंदर को पीछे छोड़ देता है,
पीछे बैठी दुल्हन के चेहरे पर खुशी,
जीत और गर्व का भाव एक साथ आ जाता है। तीन-चार बार साइकिल
दौड़ का यही क्रम जारी रहता है। इस अनकही दौड़ में अब गुरविंदर आगे निकल जाता है
और अपनी जीत को देखने के लिए पीछे देखता है, पाता है कि दुल्हन के चेहरे का गर्व, अब हार के भाव में बदल
चुका है। यह देखकर उसके मन में न जाने क्या आता है कि साइकिल धीमा,
और धीमा कर लेता है। लड़का एक बार फिर से आगे निकल जाता है।
दुल्हन जिसकी हार फिर से गर्व में बदल गई है। वह पीछे मुड़कर गुरविंदर की ओर देखती
है और फिर लड़के के कंधे पर हाथ रख लेती है। गुरविंदर ने एक हजार किताबें नहीं
पढ़ी थीं,
पर वह समझ गया था कि आज अगर यह लड़का अपनी पत्नी के सामने
इस साइकिल दौड़ में हार गया, तो फिर उसकी नजरों में कभी जीत नहीं पाएगा... कितनी सरलता
से गुरविंदर ने खुद को हार जाने दिया। कितनी सरलता से उस लड़के को जीत जाने दिया।
जिंदगी आसान है और गुरविंदर जैसे लोगों के पते पर मिलती है। राम सरूप अणखी और
प्रेम प्रकाश की कहानियों में मिलती है। 'बावर्ची' फ़िल्म में राजेश खन्ना यानी रघु के किरदार में मिलती है।
सरलता जो कहानियों में बची रह गई है, दरअसल वह आदमी के भीतर का सबसे सरल कोना है जो कि कभी-कभार
खुलता है।
क्या आपके अंदर भी ऐसा कोना है? क्या ऐसी सरलता आपके पते पर भी मिलती है। 4जी नेटवर्क के अंधेरे में खो रहे ऐसे कोनों को बचा कर रखिए, ऐसे पतों को ढूंढिए और लोगों को बताइये
- एक दिन तुझसे मिलने ज़रूर आऊँगा जिंदगी मुझे तेरा पता चाहिए...
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