जीने का तरीका खबरें जरा हट के
(इस
बात से हम अच्छी तरह से परिचित हैं कि हमारी
मीडिया / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया हमें क्या और कैसी बातें बताती-दिखाती
हैं, एक बार, बार-बार, दिन भर।
लेकिन इन सब के बीच कभी-कभी अखबारों के भीतरी पृष्ठों पर, टीवी
के एक कोने में, अनजान सोशल मीडिया में ऐसी खबरें छप जाती
हैं जो पढ़ने, समझने और एक भारतीय नागरिक हेतु हमें जानना
चाहिए। ऐसी ही एक और खबर रविवार, 3 अप्रैल, 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया, कोलकाता में छपी)
Why Indian
millennials are downsizing their careers
(क्यों
भारतीय युवा वर्ग अपने भविष्य का खुद निर्माण कर रहे हैं)
इस
रिपोर्ट में कई भारतीयों की चर्चा है जिन्होंने अपने सधे-सधाए, सुव्यवस्थित उज्ज्वल भविष्य को तिलांजली दी और एक अलग-नया जीवन प्रारम्भ किया।
ये भारत या विदेशों में बसे हुए थे और भविष्य सुरक्षित था। लेकिन इन युवाओं को वह
जिंदगी रास नहीं आ रही थी। इन्हें लग रहा था कि हाँ पैसा बहुत कुछ है लेकिन
सब कुछ नहीं। ये सब, अपने जीवन में एक बेचैनी महसूस
कर रहे थे। यह वह जिंदगी नहीं थी जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। कइयों को अपने
घर-परिवार से दूर रह कर अकेले ‘आनंद’
लेना कष्ट दायक लग रहा था, तो कइयों को यह ‘आनंद दायक’ ही नहीं लग रहा था। वे अपने देश, परिवार, समाज और दायित्व को लेकर बेचैन थे और आखिर
उन्होंने उस जीवन का त्याग कर नई शुरुआत की।
छपी रिपोर्ट बताती है कि आश्लेघ बर्ती, विश्व की चोटी की टैनिस खिलाड़ी और तीन बार ग्रांड स्लैम की विजेता ने
अचानक 25 वर्ष की उम्र में खेल से सन्यास लेने की घोषणा की। उस समय वे अपने खेल के
शीर्ष पर थीं, उन्हें विज्ञापनों से बड़ी मोटी रकम मिल रही
थी। बहुत से युवाओं ने उनके इस फैसले की प्रशंसा की तो कई अचंभित रह गए। बर्ती ने
कहा कि बहुत से लोग यह नहीं समझ पायेंगे कि पैसा कमाने के अलावा भी एक
खूबसूरत जीवन है। लेकिन कई युवा जो बर्ती के साथ पहचाने जाते हैं, वे भी जीवन में संतुलन, धीमी जीवन शैली और बिना
रुके (नॉनस्टॉप) के बजाय पूर्णता की भावना की इच्छा में अपरंपरागत कैरियर और जीवन
शैली को अपनाने के लिए स्थायी नौकरी छोड़
रहे हैं।
लंदन के आई बी एम में कार्यरत शुवाजीत पाइन के पास वह सब कुछ था जो एक
युवा अपने लिए और एक अभिभाववक अपने बच्चे के लिए सपने देखता है। लेकिन फिर 12 साल
पहले बिना किसी योजना के अपनी मोटी वेतन वाली, स्थायी नौकरी छोड़
दी। "मैंने एक पारंपरिक कैरियर से परे शायद ही कभी सोचा था, लेकिन कुछ वर्षों के बाद मुझे एहसास हुआ कि यह वह नहीं था जो मैं वास्तव
में करना चाहता था," 39 वर्षीय शुवाजित कहते हैं,
वे कुछ छान-बीन करने के बाद
महाराष्ट्र के एक ग्रामीण इलाके में शिक्षाविशारद बन गए। उन्होंने कहा,
"काम करने के अपने वर्षों में, जीवन में यह
पहली बार था जब मैंने अपना काम करते हुए महसूस किया कि मैं कुछ कर रहा हूँ। मैं अब
11 साल से विकास क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं।"
एक पत्रकार के रूप में लेखिका सोमी दास
की अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी थी, लेकिन जब उन्होंने इसके कारण
उत्पन्न मानसिक तनाव और गिरते स्वास्थ्य का अनुभव हुआ उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ कर स्वतंत्र
लेखन और पत्रकारिता का कार्य प्रारम्भ किया। इसके लिए उन्हें अपनी दिनचर्या में
परिवर्तन करने पड़े लेकिन अब वे अनुभव करती हैं कि अब न तो उनका शोषण हो रहा है और
न ही अब वे एक रोबोट मात्र बन कर रह गई हैं। जीवन में कई संघर्ष हैं लेकिन वे खुश
हैं कि उन्होंने ऐसा करने का साहस जुटाया, बहुत लोग ऐसा करने
का साहस नहीं जुटा पाते। कई लोग एक प्रकार के चक्रव्यूह में फंस गए हैं और उनके
पास इससे बाहर निकलने का विशेषाधिकार या साधन नहीं है।"
“व्हाट मिलेनियल्स वांट” के शोधकर्ता और
लेखक विवान मारवाह का कहना है कि इस तरह के फैसले देश के छोटे उपखंडों तक सीमित
हैं। "जिन लोगों के माता-पिता ने मध्यम वर्ग में आने के लिए कड़ी मेहनत की, वे ही इन विकल्पों पर विचार करने में सक्षम हैं। वे एक ही विचार से
प्रभावित महसूस नहीं करते हैं। हमारी सबसे बड़ी मूलभूत आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है, जिसकी हमें चिंता नहीं है। और
इसके बाद जो आता है वह है खुशी और तृप्ति, जिस पर वे ध्यान
केंद्रित कर रहे हैं।"
विवेक शाह स्वीकार करते हैं कि वित्तीय
स्थिरता ने उन्हें और उनकी पत्नी बृंदा को अलग-अलग निर्णय लेने की अनुमति दी।
सिलिकॉन वैली में एक विशिष्ट स्टार्टअप में काम करते हुए, शाह को पता था कि उनके जुनून कहां हैं। "हम इस तरह के काम के बारे
में कुछ नहीं जानते थे, लेकिन जानते थे कि हम भारत में इसके
बारे में सीखना चाहते हैं। यही वह जगह है जहां हमारा दिल है और हम यहाँ अहमदाबाद
के नजदीक इस फार्म पर आ गए। और अब हम इस फार्म पर तथा लैंडस्केप और बगीचे स्थापित
करने के प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं। वे आगे कहते हैं कि इस नयी जिंदगी में कई
समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन हम एक सरल जीवन व्यतीत करते हैं, कम संसाधनों के साथ।
छोटे शहरों में जाना और एक गैर परंपरागत
कैरियर को चुनने की तरफ अब युवाओं का रुझान बढ़ने
लगा है लेकिन अगर आज से 20 वर्ष पूर्व देखें तो यह मान्य नहीं था। जब जून
2003 में मंसूर खान ने बॉलीवूड में निर्देशक के काम को तिलांजली दे कर कून्नूर के
छोटे से चीज हाउस पर कार्य आरंभ किया था मुंबई में लोगों को यह विश्वास ही नहीं
हुआ कि मंसूर मुंबई छोड़ कर कून्नूर चले गए हैं। वे कहते हैं कि उनके पास अनेक युवा
आते हैं और उनसे जानने चाहते हैं कि उन्होंने यह सब कैसे किया? वे यह बताते हैं कि मुंबई में ब्रीच कैंडी में बैठ कर युवाओं को यह समझाना
बहुत कठिन है लेकिन यहाँ मैं उन्हें ऐसी जिंदगी के लिए प्रोत्साहित कर सकता हूँ कि
वे बड़े शहरों को छोड़ कर छोटी जगहें चुने।
बहुत से लोग आज भी यह नहीं समझते हैं कि
हमें तो एक ही जीवन मिला है, अपनी मर्जी से जीने के लिए। वे
हमें आलसी ही मानते हैं। लेकिन इन नव-जवानों का मानना है कि सफलता की कोई एक
निश्चित परिभाषा नहीं है, इसे हमें अपने हिसाब
से गढ़नी है। यह हमारी अपनी जिंदगी है, एक, घर पर माँ-बाप के साथ रह कर नौकरी करते हुए
रहना पसंद कर सकता है तो दूसरा बड़ी कंपनी
में नौकरी करना या उसका सीईओ बनना। लेकिन ये ही सफलता के मापदंड नहीं हैं, सब की अपनी-अपनी कहानी है, अपनी-अपनी मर्जी है, अपने-अपने मापदंड हैं।
(अगर
आप को भी कोई बेचैनी महसूस हो रही है तो आप भी अपनी कहानी खुद लिखिए, अपने मापदंड
खुद तय कीजिये। उनके केवल सपने मत देखिये, उसे यथार्थ में परिवर्तित कीजिये। आखिर आपको जीने के लिए एक ही जिंदगी
मिली है। सफलता, आनंद, सुख, शांति को खुद परिभाषित कीजिये, दूसरों की परिभाषा मत
दोहराइये।)
(अखबार
में छपी रिपोर्ट का आंशिक हिन्दी रूपान्तरण, पूरे रिपोर्ट
को नीचे दिया गया है।)
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