दुखियारी को ईश्वर ने भेजे
रूपये?
एक गरीब दुखियारी बुढ़िया।
ईश्वर पर अपार श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति। आवश्यकता पड़ गई 100 रूपये की। कहीं से भी नहीं मिले।
अंत में हार कर भगवान से ही मांगने का मन बना लिया, और एक
पोस्टकार्ड पर लिखा, ‘मेरे भगवान, मुझे सौ रूपये की सख्त जरूरत है। मुझे कहीं से नहीं मिल रहे हैं। जैसे भी
हो आप भिजवाओ’। पता लिखा - भगवान,
स्वर्ग, और पोस्ट कर दिया।
पोस्टमैन ने देखा तो
पोस्टमास्टर को दिखाया। पोस्टमास्टर ने पोस्ट ऑफिस में सब से बात की और रूपये जमा
करने शुरू किए। लेकिन सिर्फ ८० रूपये ही जमा हुए। उन्होने सोचा कि यही भेज दिया
जाए।
लौटती डाक से बुढ़िया ने
दूसरा खत लिखा, ‘भगवान, तूने तो १०० रूपये ही
भेजे थे, लेकिन बीच में २० रूपये इन लोगों ने खा लिए’।
प्रशासन और जनता दो विपरीत
धूरियों पर खड़े हैं। समस्या यह है कि दोनों चाहते हैं कि एक विश्वास का माहौल बने।
लेकिन पहल कौन करे? दोनों का कहना है “पहले तुम”। यह आवश्यक है कि प्रशासन जनता में अपनी छवि
इतनी सुधारे कि कोई उन पर अविश्वास न करे, और जनता प्रशासन
पर इस कदर विश्वास करे के जनता को छलते हुए प्रशासन अपने को दोषी समझे।
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