राजनीति के लिए पात्रता
विधायक द्वारा राजनीतिक
कार्यकर्ता के लिए लिये गए साक्षात्कार का एक अंश:
उन्होने उससे कुछ शुरुआती
बातें जानी, जैसे नाम, पिताजी का नाम, निवास
वगैरह। फिर बोले, “अभी क्या करते हो?”
“जी, कुछ नहीं
करता” उसने कहा।
“पढ़े कितना हो”?
“जी, एम.ए.
किया है”।
“फिर कुछ क्यों नहीं करते”?
“क्या करूँ सर, बहुत कुछ
ट्राइ किया लेकिन कहीं सक्सेस नहीं मिली....”
“तो अब राजनीति में आना
चाहते हो”? दादा ने बीच में ही कहा।
“जी....”
“क्यों? राजनीति
में आकार क्या करोगे”? दादा पूछ रहे थे।
एकबारगी यह प्रश्न चक्कर
में डाल गया। फिर उसने कह दिया, “जी, जैसा आपलोगों का
आदेश मिलेगा, और फिर.....”
“ठीक है,” बीच में
ही दादा ने कहा, “अब मुझे एक-दो बात और जाननी है.”
“ठीक है सर”
“सबसे पहले तो यह बताओ कि मुहल्ले
के लोगों से तुम्हारे संबंध कैसे हैं? उनसे कोई सम्पर्क है तुम्हारा? या नहीं है”? दादा ने जानना चाहा।
“जी, बहुत अच्छे
सम्बंध हैं, सभी से...... किसी से भी कभी मन मुटाव या लड़ाई
झगड़ा नहीं हुआ.....सभी मेरी इज्जत करते हैं......”
‘और उनमें से तुमसे डरते कितने लोग
हैं”? दादा ने आगे पूछा।
“जी....?” वह हकला
गया, “जी, डरने की तो कोई बात ही नहीं
है” उसके मुंह से निकला।
“ठीक है अब तुम जाओ” यह कह
कर दादा ने रमेन्द्र की तरफ देखा।
वह अपात्र था।
लोकलीला, राजेंद्र
लहरिया, पृ. ८७
1 टिप्पणी:
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