शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

कलिकाल में करुणावतार


कलिकाल में करुणावतार
(अनाम के मनोभाव)

(हमारे एक मित्र हैं। हमारे मतलब, हम सब भाइयों के। स्कूल के समय से। एक ही स्कूल में थे हम सब। सहपाठी थे। हम सबों के सहपाठी तो एक साथ हो नहीं सकते थे; हमारे बड़े भाई के सहपाठी थे। लेकिन हम सबों के बीच एक अजीब सा रिश्ता है – मित्रता का और साथ ही बड़े भाई का आदर और छोटे भाई का कर्तव्य, एक साथ निभता था। बात अजीब सी ही है; लेकिन सच्चाई भी यही है। अगर सहपाठी बड़े भाई के हुए तो मित्र भी उन्ही के होने चाहिये थे और हमारे लिए भाई साहब तुल्य रिश्ता। लेकिन हम मित्रवत ही हैं। कैसे निभाते हैं हम यह रिश्ता हमें पता नहीं – मित्र का विश्वास और खुलापन साथ ही बड़े-छोटे  भाई का अदब और उत्तरदायित्व। जब हम सब भाई एक साथ रहते थे अनेकों बार मुलाक़ात हो जाया करती थी। लेकिन फिर अलग अलग रहने लगे और मुलाक़ात तो दूर की बात, बातें भी बंद हो गईं। कई दशकों बाद फिर अचानक मुलाक़ात और बातें होने लगीं। हकीकत तो यही है कि मुलाक़ात तो कभी कभार ही होती है, हाँ बातें – व्हाट्सएप्प पर ज्यादा होती हैं। आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब क्यों बता रहा हूँ। दरअसल बात यह है कि यह मनोभाव  उन्ही का है; जब उन्होने इसे मेरे पास भेजा तो मैंने उनसे उनके नाम से फ़ेस बुक और ब्लॉग पर डालने की  इज़ाजत माँगी। उन्होने इज़ाजत तो दी, लेकिन अनाम के नाम से लिखने कहा। अब दोस्ती का तकाजा तो यह है कि मैं उनका नाम डाल दूँ, लेकिन शालीनता उसमें बाधा डाल रही है; क्योंकि इस दोस्ती में शालीनता की खुशबू है।  तो प्रस्तुत है उस अनाम के मन के उद्गार।)


शास्त्रों, ग्रन्थों, मान्यताओं और आस्थाओं में सृष्टि के संचालक एवं पालनहार को अगोचर तथा  निराकार बताया गया है। साहिर लुधियानवी के शब्दों में –

कोई भी उसका राज़ न जाने, एक हक़ीक़त लाख फ़साने
एक ही जलवा शाम-सवेरे, भेष बदल कर सामने आए।

किसी ने पुरुष रूप में उसकी कल्पना की है तो कुछ ने प्रकृति कहा। विद्वानों का मत है,जो उसे जानता है वह कहता नहीं और जो कहता है वह जानता नहीं”। उस सर्वशक्तिमान संचालक की घोषणा है “संभवामि युगे युगे”। हर युग में पृथ्वी का भार संतुलित करने के लिए उसका अवतरण होता आया है। यह बहुरंगी सृष्टि उसकी प्रिय रचना है, जिसे वह नष्ट नहीं होने देता; समय समय पर इसका शुद्धिकरण (sanitization) कर देता है। इतने महायुद्ध हुए, परमाणु बम गिराए गए, महामारियाँ फैलीं, ज्वालामुखी फटे, सुनामी आई, झंझावातों ने तांडव दिखाया, बड़े बड़े आतंकवादी हमले हुए फिर भी यह सृष्टि कायम रही।
करुणावतार ने लगाई दुनिया की गति पर लगाम 

हर युग में शुद्धिकरण होता आया है। वर्तमान समय में उस परम सत्ता का अवतरण  कोरोनावतार में हुआ है जो वास्तव में करुणावतार है। करुणावतार इसलिए कि उसने मानव जाति को एक विकल्प दिया है – जो बचना चाहे वह बचे। और जो अड़ा रहे कि कर्फ़्यू में उत्सव मनाना है, सैंकड़ों  लोगों को साथ लेकर धार्मिक अनुष्ठान करना है, 2000 लोगों की  भीड़ वाले विवाह समारोह का आनंद लेना है, कई हजार लोगों का जमघट करके अपने उन्मादी विचारों का प्रचार करना है, लौकडाउन (lockdown) के सारे प्रतिबंधों को ताक पर रख कर बड़ी भीड़ के मूवमेंट (movement) को अंजाम देना है – ऐसा करने वाले व्यक्तियों को करुणावतार से कृपा दृष्टि की आशा नहीं करनी चाहिए।
रायगंज से 300 कि.मी. दूर कंचनजंघा 
ध्यान देने लायक बात यह है कि अपने प्राणों को दाँव पर लगाकर जो लोग जनता की सेवा और सुविधाएं मुहैया करने में जुटे हुए हैं, उनमें मृत्यु दर न्यूनतम है तथा वे आतंकित भी नहीं हैं।

प्रकृति अपना काम निरंतर किए जा रही है। सृष्टि का नियम ठीक चल रहा है। पृथ्वी, सूरज, चाँद, तारे, ........, ग्रह, नक्षत्र, .......... – सभी अपने नियम से गति कर रहे हैं।

मायथोलोजिकल (mythological) राम राज्य कायम है। जल, वायु, आकाश स्वच्छ होने लगे हैं। ध्वनि 
 प्रदूषण गायब है। चोरी चकारी बन्द है। दूध में मिलावट की जरूरत नहीं रही, मेट्रो ट्रेन (metro train) के सामने कूदना संभव नहीं, एक्सिडेंट्स (accidents) से मौतें नहीं हो रही हैं, महिलाओं के प्रति अपराध नहीं हो रहे हैं। अपहरण और गुटों में संघर्ष का बाजार ठंडा है, अखबारों की काया क्षीण हो गई है, जुआघरों और मदिरालयों में ताले जड़े हुए हैं। प्राय: सभी गृहपति गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों में जुटे हुए हैं, गृहणियाँ अपनी परिचारिकाओं को कोसने की संतुष्टि से वंचित हैं, नर-नारी लगभग सदाचारी बने हुए हैं। लव-बर्ड्स (love-birds) के घोंसले उजड़े हुए हैं, अधिकांश बच्चों को बाप का संग-साथ मिला हुआ है, नेतागण कुचक्रों से दूर रहकर टीवी सिरियल देख रहे हैं या अंत्याक्षरी खेल रहे हैं। आदत से लाचार कुछ पुलिसिए लाठी भाँज रहे हैं तो उन्ही के अफसर गीत-संगीत की प्रस्तुति से जनता का मनोरंजन कर रहे हैं। न्यायाधीश छुट्टी मना रहे हैं, विलासिता वाले खर्चों पर लगाम लगी हुई है, आतंकवादी हमले बिलकुल कम हो गए हैं क्योंकि उनकी सफलता के लिए भीड़ का होना अनिवार्य है। लोगों को मानसिक रूप से कमजोर करने वाले तांत्रिक – मांत्रिक, रत्न विशेषज्ञ, पंडित, पुजारी, फादर, इमाम, योगिराज – इन सबके धंधे बन्द हैं। जनता के पैसों पर गुलछर्रे उड़ानेवाले बाबा, महाराज, महामंडलेश्वर, योगिराज, प्रवचनकर्ता, मठाधीश, माताजी, महासती (कई तो अपने को भगवान कहलाने से भी परहेज नहीं करते) ऐसी पूरी जमात अपने सामने भीड़ न पाकर अवसाद ग्रस्त (depressed) हैं। निठल्लेपन से इनके दिमागों में जाले लगने लगे हैं। तुलसीकृत रामचरित मानस के उत्तर काण्ड में इनका प्रचुर वर्णन है।

हिरण्यकशिपु जैसी हमारी चातुरी को इस नए और अकल्पनीय अवतार ने मात दे दी है। सृष्टि के उद्भव का रहस्य तथा गॉड पार्टिकल्स (God Particles) की खोज का दावा करने वाले वैज्ञानिक इस सूक्ष्मतम वाइरस (virus) के बनावट (composition) को बता पाने में असमर्थ हैं। विश्व की महाशक्तियों ने घुटने टेक दिये हैं और बेबसी से अपने-अपने संकुचित घेरों में कैद हो रहे हैं।  

हम सब इस भयावह परिस्थिति के संकट की अवधि का सही अंदाजा तक नहीं लगा पा रहे हैं और अंधेरे में टटोलकर  उपाय खोज रहे हैं। कभी चंद घंटों का जनता कर्फ़्यू तो कभी कुछ सप्ताहों का शट डाउन / लॉक डाउन, (कहीं-कहीं कई महीनों का)। क्या क्या अनोखे उपाय किए जा रहे हैं – डरावने 


सन्नाटे के बीच अचानक 5 मिनट का ध्वनि निनाद, कभी घरों में पूरा अंधेरा करके 9 मिनटों के मद्धिम प्रकाश का टोटका, 10 रुपयों में कोरोना का झाड़ा, फेस बुक तथा व्हाट्सएप्प पर 1008 तरह के नुस्खे। दो मुहाविरे हैं – मरता क्या न करता,और डूबते को तिनके का सहारा। अभी विज्ञान और अति विश्वास दोनों लाचार हैं। सृष्टि को चलाने वाला चुपचाप यह सब देख रहा होगा और मुस्कुरा रहा होगा। क्योंकि उसने लीला समेटने की अवधि अपने गणित से तय कर रखी है और कितना परिष्कार करना है यह भी। इस सुनहरे मौके पर वह इतना शोधन कर देगा कि अगली कई सदियों तक उसे विश्राम मिले।

इस बीच कब किसका नम्बर आ जाए यह कोई नहीं जानता। कवि सुरेन्द्र शर्मा अक्सर कहते हैं,क्या पता कल तुम न रहो, क्या पता कल हम न रहें”। अत: हर एक को अपनी भूल-चूक और कहे-सुने की माफी माँग लेनी चाहिए। शुरुआत अपने से करना सबसे अधिक उचित है।

जिन पाठ्यक्रमों को खारिज किया जा रहा है, उनमें बताया करते थे कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी 

हाइ वे, घरों के बरामदे और चौड़ी सड़कों पर समाजिक जानवरों का सामाजिक मिलन

है (man is a social animal)” लेकिन अब (जानवर सामाजिक) Animal Socialization कर रहे हैं। और Men (मेन) पिंजरों में  बंद हैं – वह भी एक दूसरे से दूर दूर – सेल्यूलर जेल की तरह। हर व्यक्ति एक दूसरे से यमदूत की तरह आतंकित है। मीरा याद आती है – “तात, मात, बंधु, भ्रात, आपणों न कोई”। अभी के हालात को शायर ज़ौक़ ने ऐसा सोचा था – मरके भी चैन ना पाया तो किधर जाएंगे। देखा जा रहा है कि मुर्दे के अंतिम संस्कार का विरोध करने के लिए 1000 लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जा रहा है।

किसको   खबर थी, किसको यकीं था
ऐसे भी दिन आएंगे
जीना भी मुश्किल होगा और मरने भी ना पाएंगे। ------ (साहिर)

वैसे सच ये है कि दिन गुजरने को ये भी गुजर जायेंगे। ढील मिलते ही क्या-क्या  करना है, इसका ताना बाना बुना जा रहा है।

जो बच रहेंगे उन्हे क्षुद्र मानव जाति की स्वरचित गीता से कुछ श्लोक मिटाने पड़ेंगे; जैसे – वही घोड़ा - वही मैदान, वही लूट-खसोट, वही डाकाजनी। पुन: प्रचारित हो रहे महाभारत सीरियल का विषय-वस्तु गीत राह दिखा रहा है,सीख हम बीते युगों से, नए युग का करें स्वागत”।

नए युग के लिए विश्व के सभी राजनेताओं से विनती है कि सादगी को अपनी शौकीनी बनायेँ, अपनी वाणी एवं व्यवहार को बदल कर नफ़रत की आँधी को रोकें। आतंकवादी और राक्षसी वृत्ति वाले स्वयं को बदल कर  जीयें और जीने दें। महापुरुष महावीर की जयंती पर उनके अहिंसा और संयम के संदेश को हम अपनायें – विलासिता के प्रदर्शन से बचें और प्रकृति के अबाधित दोहन पर लगाम लगायें। विश्व की अर्थ व्यवस्था आगामी लंबे समय के लिए चरमरा गई है। यथासम्भव प्रयत्नों के द्वारा पराश्रित जनों की सहायता करें। जावेद और अनवर के लिए लिखे एक फिल्मी गीत से प्रेरणा लें –
“अपने लिए जीए  तो क्या जीए, तू जी ऐ दिल ज़माने के लिये”।

मुझे पूरी आशा एवं विश्वास है कि अति शीघ्र “एक नई सुबह दुनिया में आने को है”।

एक नई सुबह




    

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