तार्किक, विद्वान, मनीषी अपनी बातों में आम इंसान को ऐसा उलझाते हैं कि बेचारे का दिमाग सुलझने के बजाय और उलझ जाता है। पानी से आधे भरे गिलास के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे। बात आधा खाली और आधा भरा में नकारात्मक और सकारात्मक सोच से काफी आगे तक बढ़ चुकी है। कुछ उदाहरण – प्रोजेक्ट मैनेजर के अनुसार गिलास आवश्यकता से दोगुना बड़ा है, यथार्थवादी के अनुसार गिलास में जितना पानी होना चाहिए उससे आधा है, अवसाद ग्रस्त व्यक्ति हैरान है कि आधे गिलास का पानी किसने पिया? लेकिन इंजीनियर का विचार है कि इतने पानी के लिए गिलास का डिज़ाइन सही नहीं है, चिंताग्रस्त व्यक्ति इस बात की चिंता करेगा कि बचा हुआ आधा पानी भी कल तक भाप बन कर उड़ जाएगा, जादूगर बताएगा कि असल में पानी गिलास के निचले नहीं ऊपरी भाग में है तो भौतिकशास्त्र का ज्ञाता बताएगा कि गिलास आधा खाली नहीं बल्कि आधे में पानी और आधे में हवा भरी है। ये अलग अलग व्याख्याएँ हास्यास्पद भी लग सकती हैं लेकिन चक्कर में डालने के लिए काफी हैं। इसके विपरीत एक प्यासा बिना सोच विचार किए गिलास उठा कर पानी पी जाएगा।
मुंबई निवासी आबिद सुरती के बारे में तो आपने सुना ही होगा। नहीं सुना? शायद किसी तार्किक के तर्क सुनने में व्यस्त रहे होंगे। आबिद, मुंबई निवासी हैं। फुटपाथ पर अपनी जिंदगी गुजारने वाले आबिद ने बूंद-बूंद पानी
आबिद सुरती |
वारेनबफे। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आपने इनका नाम न सुना हो। हाँ वही, दुनिया के सबसे अमीरों में जिनका नाम लिया जाता है। लोग उन्हें शेयर मार्केट का जादूगर भी कहते हैं। एक समय, बचपन में अपने
वारेन बुफ्फे |
एक बार किसी विश्वविद्यालय में ‘मानवीय मूल्यों’ पर अंतरराष्ट्रीय विचार विमर्श चल रहा था। देश-विदेश से अनेक मनीषी वहाँ जमा थे। भूटान प्रमुखता से इसमें रुचि एवं हिस्सा ले रहा था। वहीं भूटान के रॉयल यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति भी उपस्थित थे। उनसे एक साधारण सा प्रश्न पूछा गया, ‘आखिर कैसे भूटान के लोग इतने खुश मिजाज माने जाते हैं?’ उन्होंने बिना सोच विचार किए, मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘यह बहुत सरल है। हम अपना धन हथियार खरीदने में खर्च नहीं करते। बल्कि हम धन का प्रयोग बच्चों को शिक्षा देने में खर्च करते हैं। शिक्षा का अर्थ डॉक्टर, इंजीनियर, अर्थवेत्ता, धन कमाने की फ़ैक्टरी आदि बनाने से नहीं है। बल्कि विद्यालय से लेकर कॉलेज तक हम छात्रों को मानवीय मूल्यों की शिक्षा देते हैं। और उन्हें यह भी बताते हैं कि मृत्यु ही असल सत्य है। और उससे भी बड़ा सत्य यह है कि जीवन के समाप्त होने के पहले ही हम उसे भरपूर जी लें। ये भी कि न हथियारों से, न धन से कुछ हासिल होता है।
भूटान में जीडीपी (ग्रौस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) नहीं जीएनएच (ग्रौस नेशनल हैप्पीनेस्स) को माना जाता है। भूटान में जीने का यह नजरिया आधी शताब्दी से ज्यादा पुराना है। १९७२ में भूटान के चौथे राजा जिग्मे
जिग्मे वांगचुक |
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