हम साँस लेते हैं। इसमें कोई नयी बात नहीं है। कोई मिनट में सोलह बार, कोई अठारह बार और कोई योगी-यती हो तो मिनट में दस बार ही साँस लेता है। हमारे साँस लेने के बारे में कहीं चर्चा नहीं होती। लेकिन जरा साँस रुक जाये या दम उखड़ जाये तो यह समाचार बन जाता है और हमारी हैसियत के अनुसार दो-चार, दस-पांच या ठट-के-ठट देखने आ पहुँचते हैं। कोई पुष्पमाला भेंट करता है तो कोई अश्रुमाला ।
इस बात
की याद क्यों आई जानते हैं? एक बार आंध्र प्रदेश में मुल्की,
गैर मुल्की के प्रश्न को लेकर अच्छी तरह जूतियों में दाल बंटी।
रेलें रोकी गयीं, यात्रियों से चंदे उगाहे गये। धाँय-धाँय करते
हुए विद्यार्थियों ने विनाश का झंडा हाथ में लेकर चारों ओर बाही-तबाही मचा दी।
पूरी मालगाड़ी जला दी गयी, डीलक्स गाड़ी के अंजर-पंजर अलग कर
दिये गये, कुछ आदमियों पर भी पेट्रोल छिड़ककर उन्हें दियासलाई
दिखायी गयी। ऐसी घटनाएँ अखबारों में, रेडियो पर आती ही रहती
हैं। इन्हें पढ़-सुनकर मन में सवाल उठता है क्या भारतवर्ष, देवभूमि
भारतवर्ष, पूरी तरह से राक्षसों की क्रीड़ास्थली बन गयी है ?
लेकिन
ठहरिये। कुछ राय बनाने से पहले याद कर लीजिये:
"भले भले कहि छांड़िये खोटे जप तप दान।"
कुण्डली
में शुभ ग्रह हों तो कुछ नहीं किया जाता, लेकिन अशुभ होते ही शांति के लिये कितने उपाय शुरू हो जाते हैं। अंग्रेजी
में कहते हैं:
"जब कुत्ता आदमी को काटता है तो वह एक साधारण तथ्य होता
है, पर जब आदमी कुत्ते को काटे तब वह समाचार बन जाता
है।"
बुरे
को ऊँचा स्थान देने की पुरानी आदत है -“दुर्जनं प्रथमं वन्दे ।" या फिर :
बद
ख़सलतों को करता है बालानशीं फलक
ऊँची है
आशियानए जागो जगन की शाख ।
(दैव हमेशा बुरों को ऊँचा स्थान देता है। कौए और चीलों के घोंसले ज्यादा ऊँची
शाखा पर होते हैं।)
लेकिन इन सब चीजों को देखकर यह नहीं माना जा सकता कि
संसार बुराइयों से ही भरा है। सारा आकाश चील-कौओं से भरा नहीं रहता। लीजिये, अब एक ऐसी घटना सुनिये जिसे सुनाने में न अखबारों को रस है,
न रेडियो को।
हमारे एक मित्र दर्शन के लिये पांडिचेरी आ रहे थे। मुल्की-विरोधी आंदोलन
वालों ने उनकी रेल रोक दी और पूरे छब्बीस घण्टे तक रोके रखी। हमारे मित्र ने कहा:
"गाड़ी रोकी गयी तो हमें कुछ चिंता हो उठी। हमने जोर-जोर से माताजी को
पुकारा।" थोड़ी देर में गार्ड ने आकर हमें दिलासा दिया। फिर स्टेशन मास्टर आ
गया।
दोनों ने यात्रियों से कहा : 'जब तक हमारी जान में जान है, आप लोगों का बाल भी बांका न होने पायेगा।'
"छोटे से स्टेशन पर हम सबके नित्यकर्म आदि की व्यवस्था की गयी। थोड़ी देर
में गाँव के लोग आ गये। उन्होंने हम सब के खाने-पीने की व्यवस्था की। उनके व्यवहार
से ऐसा लगा मानों हम सब उनके गाँव में बराती बनकर आये हों। थोड़ी थोड़ी देर बाद
गार्ड और स्टेशन मास्टर आकर देख जाते थे। उन सब ने पूरे छब्बीस घण्टों तक हमारी
अच्छी तरह देखभाल की।”
ऐसे समाचार कभी अखबारों में नहीं छपा करते। हमारे पास यह मानने के लिये कोई
कारण नहीं है कि यह अपने जैसी एक विलक्षण घटना थी। न जाने इस तरह की कितनी घटनाएँ घटा
करती होंगी जिनके बारे में हमें कभी खबर नहीं मिलती।
इसी तरह की एक और घटना ले लीजिये। रेलों में, मोटरों में लड़कियों के साथ छेड़खानी करनेवालों की बातें
आये दिन सुनाई देती हैं। इससे उलटी घटनाएँ हमारे कानों तक नहीं पहुँचा करतीं। यह
घटना दिल्ली जैसे बदनाम शहर की है। दिल्ली के हवाई अड्डे पर जहाज उतरा तो रात काफी
बीत चुकी थी। उतरनेवाले अपने-अपने मित्रों के साथ चल दिये और हिन्दुस्तान के एक
दूसरे कोने से आयी एक जवान और सुन्दर लड़की अपने भाई को खोजती हुई अकेली रह गयी।
किसी गलतफहमी के कारण भाई उसे लेने के लिये न आ सका था। लड़की ने दिल्ली के बारे
में बहुत-सी कहानियाँ सुन रखी थीं,
अभी आते हुए ही कइयों ने डराया था कि अकेली लड़की के लिये दिल्ली
खतरनाक जगह है। अब लड़की को भी डर लगने लगा। जाये-तो-जाये कहाँ और आधी रात को वहाँ
भी कैसे पड़ी रहे ?
थोड़ी देर में एक सरदारजी से मुठभेड़ हो गयी। वह भी इसी जहाज से उतरा था और
सवेरे चंडीगढ़ जानेवाला था। सरदार ने कहा : "चलो, मैं दिल्ली से भली-भांति
परिचित हूं, मैं तुम्हें तुम्हारे भाई के यहाँ पहुँचा आऊँ।"
लड़की को कुछ डर तो लग रहा था पर उसके साथ जाने के सिवाय कोई चारा भी तो न
था। सरदार ने टैक्सी की, अपना सामान किसी होटल
में रखकर लड़की के भाई के मकान की तलाश में निकल पड़ा। काफी चक्कर लगाने के बाद
भाई का मकान मिला। भाई सोया पड़ा था। सरदारजी ने उसे जगाया। पहले जाँच कर ली कि वह
सचमुच उसका भाई है या नहीं, फिर लड़की को उसके हवाले कर
टैक्सी का किराया तक लिये बिना वहाँ से लौट पड़ा। हमें विश्वास है कि ऐसे आदमी
अपवाद-स्वरूप नहीं हैं। ऐसे न जाने कितने होंगे जिनके अंदर भारतीयता या यूं कहें
मानवता का दीया टिमटिमा रहा है पर उनकी बातें हमारे सामने नहीं आतीं और - खोटे जप
तप दान ।
-यायावर से
(‘खोटे जप ताप दान’ का प्रचार-प्रसार पहले से कई गुना
बढ़ गया है। अब ये इंटरनेट के पंखों पर चढ़ कर प्रिंट मिडिया,
एलेक्ट्रोनिक मिडिया और उससे भी ज्यादा सोशल मीडिया में ये खूब फल-फूल रही हैं।
इनको पानी-हवा-खाद देने वाले हम ही हैं। हम हवा का रुख बदल सकते हैं। हममें यह
काबिलियत है – केवल इच्छाशक्ति होनी चाहिए – खोटे के बजाय ‘खरे
जप ताप दान’ की बयार चलाने की।
*****
आपने भी कहीं कुछ पढ़ा है और आप उसे दूसरों से
बांटना चाहते / चाहती हैं तो हमें भेजें। स्कैन या फोटो भी भेज सकते / सकती हैं।
हम उसे यहाँ प्रकाशित करेंगे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अपने सुझाव (suggestions) दें, आपको कैसा लगा और क्यों? आप अँग्रेजी में भी लिख
सकते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें