होली-का-उत्सव
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उत्सव
यानि त्यौहार। त्यौहार यानि उमंग, उमंग यानि
खुशी, खुशी यानि चमक, सुगंध, प्रेम और अपनों का साथ। अलग-अलग
नहीं, सबों का साथ, एक साथ। संक्षेप
में कहूँ तो सबों के साथ खुशनुमा माहौल। इनमें से एक भी छूटा तो उत्सव फीका पड़ा।
रोज की दिनचर्या से हट कर कुछ और करने का जज़बा। ये सब सामग्रियाँ किसी भी उत्सव के
आवश्यक अंग हैं। इनमें भी अगर आप पूछें सबसे अहम अंग कौन सा है? तो इसका दिल है ‘अपनों का साथ’। सब कुछ हो लेकिन अपनों का साथ न हो तो न उत्सव, न त्यौहार।
समय के साथ-साथ हमारे उत्सवों में से एक-एक कर ये सामग्रियाँ कम होती गईं और जैसे-जैसे
ये कम होती गईं हमारे उत्सव फीके पड़ते गए।
क्या
आप बता सकते हैं इन में से वह कौनसी सामग्री है जो सबसे पहले छूटी? हाँ, आपने ठीक पहचाना, ‘अपनों का साथ’। ये अपने कौन थे? हमारे रिश्तेदार, हमारे परिचित, हमारे दोस्त और हमारे पड़ोसी। हम ने
अनेक बहाने खोजे, और खोज कर अपनों का दायरा सिकोड़ते
चले गए। हम कहते हैं कि लोग अब रंग नहीं केमिकल-गोबर-गंदगी का प्रयोग करते हैं, गुलाल नहीं धूल लगाते हैं, प्रेम नहीं रहा, समय की बर्बादी है .......। झूठ कहते हैं हम। ये ‘लोग’ कौन हैं, क्या ये हम या हमारे बच्चे ही नहीं हैं। ये
तो केवल बहाने हैं। अपने आँसूओं को छिपाने के। क्या हमें याद है हमने पिछली होली
कब, किस के साथ, कहाँ और कैसे खेली थी? अगर वे सब फिर जमा हो जाएँ तो क्या हम फिर वही हुड़दंग किए बिना रहेंगे? होली ही एक ऐसा त्यौहार है जब आदमी शिष्टाचार की चादर को थोड़ा हटा कर, अपने रंग में रंगता है! उन्मुक्त होकर हँसता-बोलता है। हाँ,कई बिछुड़ गए लेकिन नए तो आए हैं? उन नयों मिलाइए, उन्हें जोड़िए। हर उत्सव की जड़ तो वही ‘अपनों का साथ’ ही है। उनके बिना हर उत्सव वैसा ही है जैसे बिना नमक का व्यंजन, बिना चीनी की मिठाई। जहाँ जड़
मजबूत हुई ये सब बहाने नदारद हो जाएँगे और फिर से आ जाएगी वही खुशी, उमंग, चमक, सुगंध, त्यौहार। जहां ये जमा हुए, उत्सव राग बजने लगेगा। ढफली
बजने लगेगी, धमाल शुरू हो जाएगा।
बाजार से रंग नहीं फूल लाइये। गुलाल नहीं जड़ी बूटियाँ लाइये। अगर
आप के पास समय नहीं है तो बच्चों, दादा, दादी, बुजुर्ग, मित्र, पड़ोसी को साथ लगाइये। अगर उन्हें नहीं आता
तो उन्हें बता दीजिये, इंटरनेट में बनाने की विधियां मिल जायेगी।
फूलों से प्राकृतिक रंग और जड़ी बूटियों से सुगंधित गुलाल बनाइये। बच्चों को उत्सव और त्यौहार का
अर्थ समझ आयेगा और वे उससे जुड़ेंगे। उनके उत्साह और उमंग में खुशी और सुगंध का
तड़का लगेगा। मिठाई भले ही बाजार से लाइये, लेकिन कम से कम एक
मिठाई घर पर ही बनाइये। रिश्तेदारों को शामिल कीजिये – उन्हें बुलाएँ या उनके पास
जाएँ। उनके आमंत्रण का इंतजार मत कीजिये। क्या आप होली खेलने, बुलाने पर जाते थे? या बिना बुलाए ही जाते थे? बंद दरवाजों पर हुड़दंग मचा कर दरवाजे खुलवाते थे?
नाराजगी की परवाह किए बिना सतरंगी रगों में रंग जाते थे। मित्रों और पड़ोसियों के
दिलों पर दस्तक दीजिये। देखिये दरवाजे खुलने लगेंगे। अपने अहम का त्याग कर सरल-सहज
बनिए। उत्सव का संगीत फिर से बजने लगेगा। होली की ‘होलिका दहन’ मत कीजिये, बल्कि
होली ‘मंगलायें’ ।
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