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इस अंक में
कई विषय, लघु कहानी और धारावाहिक
‘कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी’ की सोलहवीं किश्त है।
१। बड़ा कौन - मेरे विचार
शर्मा जी की आँखें खुल गयी, और
उन्होंने दूसरे ही दिन अपना कारोबार-कारख़ाना फिर से शुरू कर दिया और संत शर्मा जी
फिर से व्यवसायी शर्मा जी बन गए। अपने को ईश्वर का दूत ........
ऐसा क्या
हुआ कि शर्मा जी के विचार बदल गए। शर्मा जी की आँखें खुल गयी, और उन्होंने दूसरे ही दिन अपना कारोबार-कारख़ाना
फिर से शुरू कर दिया और संत शर्मा जी फिर से व्यवसायी शर्मा जी बन गए। अपने को
ईश्वर का दूत समझ वैसी ही भावना से कर्म-रत हो गए।
२। मूर्खता
सोचने की एक पूरी श्रेणी होती है। जो लोग यह सोचते हैं कि उनकी
बुद्धि वरतर है और जिस चीज़ को वे नहीं समझते उसे ठुकरा देते हैं, ऐसों की भरमार है –
भरमार। और यह ठेठ मूर्खता का लक्षण है! दूसरी ओर, ऐसे भी कई
हैं लोग हैं जिन्हें सामान्यतया “सीधा-सादा"
माना जाता है, लेकिन मेरे
हिसाब से ये ही सराहनीय हैं और मैं ऐसे भोले-भालों को ही पसन्द करती हूँ .......
श्रीमाँ क्यों पसंद करती है उन्हें ?
३। आत्मा से तृप्त लोग ..... – मैंने पढ़ा
.........बच्ची ने मानवता की पराकाष्ठा
का पाठ पढ़ा दिया। मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा, इसे कहते हैं आत्मा से तृप्त लोग,
लोभवश किसी से.......
कौन हैं वे जो आत्मा से तृप्त होते हैं?
४। माँ ईश्वर का प्रतिरूप है - मैंने पढ़ा
क्या
मेल है माँ और ईश्वर के स्वरूप में? .......
५। नम्रता लघु कहानी - जो सिखाती है जीना
छोटी
कहानियाँ लेकिन बड़े अर्थ
६।कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी (१६)
– धारावाहिक
धारावाहिक
की सोलहवीं किश्त
.........
उसका फल हो सकता है फांसी के तख्ते पर मृत्यु या आजीवन कालापानी, किन्तु उस ओर दृष्टिपात न कर उनमें
से कोई बंकिम का उपन्यास, कोई विवेकानन्द का राजयोग या Science
of Religions, कोई गोठा, कोई पुराण तो कोई
यूरोपीय दर्शन एकाग्र मन से पढ़......
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