सूतांजली के जुलाई अंक में कुछ विचार, लघु कहानी और धारावाहिक ‘कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी’ का समापन किश्त है।
१। विडम्बना
विडम्बना यह है कि
हम धर्म मानते हैं, ईश्वर पर विश्वास करते हैं।
पैगंबर के पीछे चलने को, उनका अनुगामी बनाने को भले ही तैयार
हों, परमात्मा के पीछे चलने को तैयार नहीं। धर्म
ही, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर जलनेवाली ज्वाला को
प्रज्ज्वलित करने में सहायता करती है। धर्म केवल सहायता करती है, उसे जलाना और जलाए रखना हमारा ही काम है।
२। ईश्वर को एक अर्जी
ईश्वर ने हमें यहाँ धरती पर भेज दिया, लेकिन किस अवस्था
में, किस वातावरण में, किनके बीच? और जब हम तैयार हुए हमें बुला लिया? यह भी कोई बात
हुई?
३। जिंदगी ......, जरूरी
यह है कि वह कुछ बेहतर दे
हमारे पास करने के लिए बहुत अच्छे-अच्छे विचार हैं, योजना हैं,
अवधारणाएँ लेकिन हमें यह भी पता है कि हम वह सब नहीं कर सकते। तब क्या, वे जो उसे बेहतरीन ढंग से कर सकते हैं, उन्हें नहीं
दे सकते?
४। चरित्र बल लघु कहानी - जो सिखाती
है जीना
सी.वी.रमण
भौतिकशास्त्र के प्रख्यात वैज्ञानिक के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग।
५। कारावास
की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी
धारावाहिक का समापन किश्त
यू
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