शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

बदलो दुनिया को

जरूरत है

“एक खतरनाक जोखिम भरी यात्रा के लिए युवाओं की जरूरत है। यात्रा में हड्डियों को जमा देने वाली ठंड मिलेगी। महीनों तक पूर्ण अंधकार में रहना पड़ सकता है। यात्रा के दौरान पग-पग पर खतरों की संभावना है और सही-सलामत वापस आने में संदेह है। वेतन नाममात्र का ही मिलेगा। अगर यात्रा में  सफलता मिलती है तो सम्मान और प्रतिष्ठा मिलेगी”।

 

अर्नेस्ट शक्कलेटोन

यह इश्तिहार एक शताब्दी से पहले एरनेस्ट शक्क्लेटोन ने दिया था; 1914 में अंटार्कटिका की यात्रा के लिए नाविकों और साथियों के लिए। एरनेस्ट अपनी जोखिम भरी समुद्री यात्राओं के लिये जाने जाते हैं।

                                                     उम्मीदवार चाहिए

रिक्त स्थान के लिए उम्मीदवारों की आवश्यकता है। काम 24x7x365 है, बिना किसी छुट्टी के। भोजन के लिये भी अवकाश नहीं। काम के बीच ही समय निकाल कर भोजन करना है। कार्य पर सबसे पहले आप आएंगे और सब के बाद जाएंगे। रात-बिरात भी काम पर बुलाया जा सकता है। कोई रविवार, त्यौहार या छुट्टी नहीं। बल्कि ऐसे दिनों पर काम का दबाव ज्यादा रहेगा। अपना काम प्राय: खड़े खड़े  ही करना है। आपकी अपनी न कोई टेबल होगी न कुर्सी, न एयर कंडिशन होगा, न पंखा। और वेतन? कुछ भी नहीं। पूरा कार्य बिना किसी वेतन के। काम किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे साफ-सफाई का, पकाने का, बच्चों, वृद्धों, युवाओं को संभालने का। बच्चों को पढ़ाने का, बाजार जाने का, सामाजिक उत्सवों को मनाने का, त्योहारों को याद रखना और उनकी तैयारी करने का। इसके अलावा और कुछ भी जिसकी जब जैसे जरूरत पड़ जाये”

 व्हाट्सएप्प पर इसकी काफी चर्चा हुई है, आपने भी देखा ही होगा। जब उम्मीदवारों ने कहा ऐसा सिरफिरा तो कोई हो ही नहीं सकता। तो उन्हें बताया गया कि विश्व में अपने मन से ऐसा काम करने वालों की संख्या करोड़ों में है। तो लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ। तब कहा गया, ये और कोई नहीं आपकी माँ है ऐसी माताएँ दुनिया भर में हैं और निरंतर अपने कर्त्तव्य का निर्वाह पूरी ज़िम्मेदारी और निष्ठा से कर रही हैं।

 

जरूरत है बच्चे, जवान, बूढ़े, स्त्री, पुरुष, अनपढ़ या पढ़े लिखे सबों की

“केवल वे ही आयें जो अपना सर्वस्व स्वाहा करने को तैयार हों। सगे-संबंधी, धन-संपत्ति, सुख-चैन और तो और अपनी जान भी देने को तैयार हों। आपको केवल देना ही देना है, मिल सकती है जेल, लाठी, गोली या मौत। भाग्यशाली होंगे तब हो सकता है स्वतन्त्रता मिल जाये। वैसे स्वतन्त्रता का मिलना निश्चित है लेकिन यह निश्चित नहीं कि आपके जीवन काल में मिले”।  

 यह था गांधीजी का आवाहन, उनके सत्याग्रह में शरीक होने के लिए। और उनके आवाहन पर देश के करोड़ों लोग उनके साथ हो लिये थे।

 

विद्यालय में प्रवेश के लिए आवेदन

“यह शिक्षा केंद्र पूर्ण रूप से आवासीय है जिसमें छात्र-छात्राओं की शिक्षा, आवास व भोजन पूर्णत: नि:शुल्क है। शिक्षा का माध्यम अँग्रेजी है। शैक्षणिक सत्र हर वर्ष.......... से प्रारम्भ होता है तथा केवल 6 से 12 वर्ष तक की आयु के बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता है।

          यह केंद्र पूर्ण शिक्षा प्रदान करने तथा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए समस्त साधन प्रदान करने की अभीप्सा रखता है। जो अभिभावक अपने बच्चों के लिए सरकारी प्रमाण-पत्र, डिग्री व डिप्लोमा की आकांक्षा नहीं रखते अपितु उनकी सत्ता के केंद्रीय सत्य के अनुरूप उनके पूर्ण व सर्वांगीण विकास की अभीप्सा रखते हैं और अपने बच्चों को इस शिक्षण संस्था में प्रवेश दिलाने के इच्छुक हैं, वे पूरी जानकारी  के साथ निम्नलिखित पते पर संपर्क करें: ............”

 

यह इश्तिहार मैंने आज सुबह  श्री अरविंद सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका  अग्निशिखा में देखा। यह शिक्षा केंद्र लगातार साल-दर-साल आदमी को इंसान बनाने में लगा हुआ है।  

 मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ? केवल आपके ध्यान में यह लाने के लिए कि इस दुनिया में ऐसे सिरफिरे लोगों की कमी नहीं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन ये ही वे लोग हैं जो दुनिया को बदलते हैं। यह बात भी समझ आई कि हमें ज्यादा बच्चे क्यों चाहिये? पहला बच्चा तो हमें खुद अपने लिये चाहिये। देश-समाज को हम कैसे देंगे, किसे देंगे? कौन बदलेगा दुनिया को? कौन करेगा प्रशस्त भविष्य की मंजिल को?

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