शुक्रवार, 18 जून 2021

कुछ बदला है कुछ.....

 (कई युवा मजबूरी में अपनी मिट्टी छोड़ने के लिये विवश होते हैं, तो कइयों को वापस आने की जुगत नहीं दीखती। कई को विदेशी मिट्टी में खुशबू और सोना नजर आता है। कई तो ऐसे भी हैं जो अपनी मिट्टी से घृणा करते हैं। लेकिन इन सब से जुदा, यह भी है एक राह। युवाओं की सोच कुछ बदली है कुछ बदलेगी। एक दशक पहले एक माँ, उषा तनेजा, का पत्र अपने बेटे के नाम।)

प्रिय बेटा,

शुभ-मंगल आशीष।

जिंदगी में तुम्हारा आगे बढ़ना मेरे लिये कभी भी आश्चर्य नहीं रहा। स्कूल और कॉलेज के परिणाम तो बाद में घोषित होते थे पर मुझे पहले ही पता होता था। शायद एक शिक्षिका होने की वजह से मैं तुम्हें एक विद्यार्थी के तौर पर आँक लेती थी। स्कूल परिणाम में तो तुम अव्वल आते रहे, परंतु कॉलेज में अंकों का प्रतिशत कुछ गिर गया था। कई बार मैं विचलित हो जाती थी पर तुम हमेशा पूरे विश्वास के साथ मुझे तसल्ली देते थे कि जिन्दगी में चाहे जो भी कैरियर अपनाओगे उनमें निपुणता हासिल कर लोगे। सिम्बोसिस, पुणे से बीबीए करने के बाद जब तुमने यूके में मास्टर डिग्री करने की इच्छा जताई तो दिल व दिमाग में मिश्रित भाव थे – खुशी थी और चिंता भी। इन सभी भावों को नियंत्रित करके तुम्हें जाने की इजाजत दे दी। वहाँ दिल न लगने के बावजूद तुमने तय समय में डिग्री पूरी की। पोस्ट स्टडी वर्क वीसा के तहत एक बड़ी कंपनी में सीनियर पद पर रहकर कंपनी में बढ़िया प्रॉफेश्नल की इज्जत पाई।

 

परिवार और समाज को तुम पर बहुत गर्व हुआ। पर तुमने कुछ और ही चुना था। वहाँ से अनुभव प्राप्त कर तुम वापस भारत आ गये और अपने छोटे से शहर में  तुमने अपनी निजी कंपनी बनाई और कार्य शुरू किया। हमारे मन में भले ही थोड़ा-सा डर रहा हो कि यहाँ तुम्हारी योग्यता दब जाएगी, परंतु तुम तनिक भी शंकित नहीं रहे। तुमने अपने कार्य-कौशल से यूके, यूएसए व अन्य उन्नत देशों की कंपनियों में काम करके यह दिखा दिया है कि परिश्रम और लगन किसी शहर और देश का मोहताज नहीं होता। आज बेशक समाज और शहर के लोगों का नजरिया वो न रहा हो, जो तुम्हारे लंदनवास के दौरान था, फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उस युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा-स्त्रोत बनोगे, जो विदेशों में बसने के लिये लालायित रहती हैं।

 

तुम्हारी एक और बात मैं कभी नहीं भूल सकती। लंदन में रहते हुए तुम अक्सर कहा करते थे कि वहाँ सिर्फ पैसा है और कुछ नहीं। पर मैं तुम्हारा विचार बदलने की कोशिश करती थी। याद है एक बार मैंने तुम्हें कहा था कि तुम्हारी ताई और चाची जी साथ वाले घरों में रहते हैं पर हमें मिले हुए दो-दो हफ्ते हो जाते हैं। इस पर तुमने रुँधे हुए गले से जवाब दिया था, इवन देन यू नो ममा दे आर देयर। आधी रात को भी आवाज लगाओगे तो सब भाग कर आ जायेंगे

 

फिर मैंने एक बार कहा था कि ऐसा कैरियर यहाँ नहीं मिलेगा, तो तुम्हारा आत्मविश्वास झलक  पड़ा था कि तुम भारत में  अपना कैरियर अपने बूते पर बना लोगे। आज मुझे वो सब सच होता प्रतीत हो रहा है और अपने अनजाने भय की आशंका से  मैंने जो कुछ कहा, उस पर अफसोस होता है। आज इस पत्र के माध्यम से तुमसे अपने दिल की बात कहने और मन में दबी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिला है। भगवान का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहा है और आगे भी रहेगा।

तुम्हारी माँ,

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