(दांपत्य जीवन में पति-पत्नी के मध्य झगड़ा, विवाद होना लाजामी है, बल्कि होना ही चाहिए, अन्यथा जीवन समरस हो जाए। अत: झगड़िये, जरूर झगड़िये मगर ध्यान रहे ...... आगे खुद पढ़िये)
विश्व के तमाम झगड़ों से एकदम परे होते
हैं पति-पत्नी के झगड़े। हलके-फुल्के व्यंग्यों के प्रथम सोपान से आहिस्ता-आहिस्ता
विवादों के विभिन्न सोपानों पर चढ़कर आत्मविश्वास के साथ लड़ने को तैयार। अभी-अभी
ताजा लड़कपन लिये विवाह-सूत्रों में बंधे युवा दंपती झगड़ों के अभ्यस्त होने लगते
हैं। परंतु क्या आप सहमत नहीं हैं कि तमाम पारिवारिक, सामाजिक और मैत्रिक
झगड़ों से हटकर पति-पत्नी के झगड़े होते हैं? पता है कि (अधिकांश
प्रकरणों में) ताउम्र साथ देना है, सहारा देना है, बच्चों का विवाह करना है, गम बांटना है, आँसू पोंछना है, बुखार में गीली पट्टी भी रखनी है, बुढ़ापे में धुंधली आँखों से ही सही सुई में धागा भी डालना है, बटन टंकवाना है फिर भी झगड़ता है, खूब झगड़ता है। जबान
नियंत्रण खोयेगी, आँखें खूब रोएँगी,
फिर जबर्दस्ती भूखे पेट ही आँखें बंद कर सोयेगी, लेकिन झगड़े
तो होंगे ही। क्या है इन पति-पत्नी के झगड़े का मनोविज्ञान?
किसी ख्यातनाम मनोवैज्ञानिकों या मनोचिकित्सकों की भारी-भरकम पुस्तकों या शोधों या
सर्वेक्षणों का संदर्भ देना उचित ही नहीं है। क्योंकि जब पति-पत्नी के झगड़े विशाल आकार
लेते हैं, तो ख्यातनाम पुस्तकें और मनोचिकित्सक बौने हो जाते
हैं। भिन्न-भिन्न मानसिकता के भिन्न-भिन्न दम्पतियों के मध्य जब अस्त्र-शस्त्र
चलते हैं, तो अच्छे से अच्छे मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सकीय
उपाय धराशायी हो जाते हैं और उत्तरोत्तर स्वयं दंपती ही काफी अनुभवी चिकित्सक हो
जाते हैं। अपने दांपत्य जीवन को सुधारने हेतु आजमाये गए उपाय कभी दूसरे के दांपत्य
जीवन हेतु आजमाए जाने का जोखिम नहीं उठाना ही हितकर है। पृथ्वी पर जिस प्रकार
लोगों के चेहरे एक दूसरे से मेल नहीं खाते, कमोबेश विचारों
की स्थिति भी इससे अलग नहीं है।
प्यार है, दुलार है, फर्माइशों पर इकरार है, दिलों में स्नेह के तार हैं, फिर भी झगड़ों के अंबार हैं। बड़ी अबूझ पहेली है। इसके लिए मानसिक परिभाषाओं के साथ दैनिक परिभाषाओं की सूक्ष्मताओं को भी समझना होगा। केवल और केवल पति-पत्नी के मध्य दैहिक तरंगों का सर्वाधिक स्पंदन होता है। वैज्ञानिक तौर पर भी सिद्ध हो चुके प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने आभामंडल और तरंग आवृत्त में सर्वाधिक घुसपैठ सिर्फ उसका जीवन साथी ही करता है। दैहिक चेतनाओं, ऊर्जाओं और तरंगों का यही मुक्त आदान-प्रदान पति-पत्नी का प्रेम ही नहीं, झगड़ों का भी मुख्य कारण है। देहों की यह एकात्मकता मानसिक तौर पर पति और पति में इतनी समरसता भर देती है कि आवेग और उत्तेजना के क्षणों में अंतर्द्वंद्व की ओर एकरूपकता की भावना से ही अपने प्रिय जीवन साथी के साथ झगड़ पड़ता है। कहीं-कहीं पति-पत्नी के बीच विचारों के फर्क की गहरी खाई है, लेकिन विवाद शून्य है। क्योंकि पति कितना ही गलत, व्यसनी और शौकीन हो, फिर भी पत्नी को ‘चुप’ के विशाल पर्वत तले दबे रहने की सख्त हिदायतें बचपन से ही दी गई है, पराकाष्ठा उलांघती सहनशीलता की घुट्टी गले-गले तक पिलाई गई है। उसकी विरोध क्षमता शून्य नहीं, बल्कि ‘माइनस’ में है और कहीं-कहीं पत्नी का दबदबा प्रभाव और ‘स्टेटस’ इतना जबर्दस्त है कि पति की विरोध-शक्ति क्षीण है। दोनों ही परिस्थितियाँ ऋणात्मक हैं और ऐसे दम्पतियों की संख्या भी अल्प है। कुछ दंपती ऐसे भी होते हैं, जो झगड़ों के एडवेंचर से वंचित एक सरल रेखा में चलते-चलते बूढ़ा जाते हैं और ‘चले’ जाते हैं।
खैर! यहाँ तो मुद्दा अधिकांश दम्पतियों के मध्य पनपने वाले, पकने वाले, पूरे जोशो-खरोश से होने वाले झगड़ों को लेकर चल रहा है। किसी भी विरोधी नेता या राष्ट्र ने आज तक झगड़ों के शक्तिशाली दौर में जितने गड़े मुर्दे उखाड़े हैं, उतने तो एक सामान्य पति-पत्नी अपने झगड़ों के दौरान उखाड़ कर रख देते हैं। पति-पत्नी का रौद्रावतार और पुरुष का पौरुष चरम सीमा पर पहुँच जाता है और महान आश्चर्य तीन-चार दिनों पश्चात दोनों दुपहिया या चार पहिया वाहन पर ऐसे खिलखिलाकर हँसते-घूमते नजर आते हैं गोया कि भगवान ने दोनों की रचना खुश रहने के लिए की हो। यही है दो झगड़ों के बीच का आनंदोत्सव। पता नहीं फिर किस मुद्दे पर, किस झूठे अहम पर अगला झगड़ा हो जाए। उसमें अनबन की यात्रा कितने दिनों की हो? मानसिक संत्रास के प्रहार कितने तीव्र हों? फिर शनै: शनै: उसकी तपिश ठंडक में तब्दील होगी, खोया हुआ आकर्षण और प्रखर होकर खड़ा होगा। मानसिक और दैहिक दूरियाँ कम हो जाएंगी। वाचा के उग्र बाण फूलों में रूपांतरित हो जाएंगे। एक तन और एक मन। कब तक? अगले विवाद तक और अभी वसंत ऋतु के कामदेव और देवी को लजा देने वाला वसंतोत्सव! आनंदोत्सव! दो झगड़ों के मध्य का आनंदोत्सव।
झगड़िए, फिर झगड़िए और जरूर झगड़िए, लेकिन आनंदोत्सव में प्रण कीजिये कि कोई भी झगड़ा उम्रभर के लिए आपको भीषण पश्चाताप या पछतावे में न धकेल दे। दांपत्य जीवन के झगड़ों को समस्त औजारों के मध्य भी तराशिए, मगर ऐसा दुर्लभ दांपत्य जीवन जलाइए नहीं, लेकिन यह समझाइश एक-दूसरे को दो झगड़ों के बीच अद्भुत आनंदोत्सव में ही दीजिये।
(श्री विवेक हिरदे की रचना, अहा
जिंदगी से)
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