बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

नसीहत


नसीहत

उसकी बातें सुन मैं तो स्तब्ध रह गया | किसी प्रकार अपने आप को संभालते हुए मैं उठा और सम्मोहित सा धीरे धीरे चलता हुआ वहाँ से निकल गया| निकलते निकलते मैंने उसे मानसिक प्रणाम किया| मैं सोच रहा था, यह क्या गिरधारी की छोटी ऊँगली है जो गोकुलवासियों की रक्षा करने के लिए उठी थी या वाराह के नुकीले दांत जिसने पृथ्वी का उद्धार किया था| उसकी सोच एक साधारण मानव कि तो नहीं हो सकती|

वह अक्सर मेरे घर पर आती है| घर घर जाकर पर्सनल ग्रूमिंग का काम करती है| अगर आप उसे नहीं पहचानते तो धोखा खा जायेंगे| घर पर काम करनेवाली आया सी दिखती है| उम्र यही कोई ४०-४५| काया? फूंक मारो तो उड़ जाये| देखने में औसत से कम| धर्म परायण औरत है| पांच वक्त की नमाज़ी तो नहीं लेकिन अल्लाह में पूर्ण आस्था एवं विश्वास और संसार से जूझते हुए कम से कम एक वक्त की नमाज़ पढ़ने का समय तो निकाल ही लेती है| न जाने कितने वर्ष हुए पति ने तलाक दे दिया| एक लड़का है अपनी नानी के पास रहता है, और एक अदद माँ| अगर वह अपने माँ के घर पर है तो समझ लीजिए की आज रविवार है| बड़ी हंसमुख, बातूनी, दयालू एवं किसी भी प्रकार की सहायता करने के लिए प्रस्तुत|

ऐसा नहीं है की वह कमाती नहीं| अच्छा कमा लेती है| लेकिन मुसीबत यह, कि दुनिया ले जाती है| ले क्या जाती है, जैसा अपनी पत्नी के मुँह से सुना, दुनिया उसे ठग लेती है| उसके किस्से सुन सुनकर जब मेरे कान पक गए तो उसीका नतीजा यह निकला कि मैं  उसके घर पंहुच गया नसीहत देने| दूसरी मंजिल पर उसका फ्लैट, नहीं कमरा| पहुंचते ही मुझे ऐहसास हुआ की मुझे नहीं आना चाहिए था| उसने मुझे बैठने के लिए जो चीज दी मैं उसका नाम नहीं जानता, लेकिन हाँ, इतना जानता हूँ की अगर मेरे लिए संभव होता तो मैं उस पर नहीं बैठता| मैं अपनी पत्नी से सुन चुका था कि उसे गर्मी का अहसास नहीं होता| अतः उसके घर पर पंखा नहीं था| हमलोगों ने एक बार एक पुराना पेडस्टल फैन उसे दिया था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसके किसी दूर के रिश्तेदार की माँ की तबियत खराब होने के कारण वह मांग कर ले गया और फिर कभी वापस नहीं आया| उसके रसोईघर में पानी की भी व्यवस्था नहीं थी| नीचे से आवश्यकतानुसर रोज दो-चार बाल्टी पानी ले आती थी| चढती उम्र के कारण चूँकि अब दिक्कत होने लगी, तब उसने अपनी रसोईघर में एक नल लगाव लिया है| वहाँ बैठे बैठे मैंने देखा की हर १०-१५ मिनट में कोई-न-कोई पूरे अधिकार के साथ घुसा चला आ रहा है, पानी भरने के लिए, गोया वह उसका निजी नहीं सार्वजनिक नल हो|

उसे और उसके कमरे को देख ऐसा लग रहा था की अभी सुबह नहीं हुई है| शायद उसने मेरी नजर पढ़ ली| खुद ही बताना शुरु कर दिया| वैसे तो उसका दिन सुबह ५-६ बजे शुरू हो जाता है लकिन आज बस अभी अभी ही उठी थी| हुआ यूँ कि कल का दिन काफी व्यस्त था| अपने अंतिम ग्राहक से आते आते रात ११ से ज्यादा हो चुकी थी| व्यस्तता के कारण सारे दिन नमाज़ भी अदा नहीं कर सकी थी| सोने के पहले की नमाज़ अदा करते करते अचानक संदूक में साल भर से रखी एक नयी अच्छी साडी और रिश्तेदारी में एक बहन का ख्याल आ गया यह साडी तो उसके पास होनी चाहिए! उस पर सुन्दर भी लगेगी और वो खुश भी होगी| लेकिन आधी रात से ज्यादा हो चुकी थी| अभी अब क्या जाना, सुबह सबसे पहले यही काम करुँगी, यह निश्चय कर बिस्तर में घुस गयी| लेकिन नींद नहीं आयी| करवटें बदलने लगी| तरह तरह के विचार आने लगे| सुबह वह नहीं मिली तो? मुझे ही किसी कस्टमर के पास जाना पड़ा तो? और तो और सुबह तक मुझे ही लालच आ गया और विचार बदल गया तो? नहीं, चाहे जो भी वक्त हुआ हो, जैसे भी जाना पड़े, नमाज़ पढते पढते अगर यह ख्याल आया है तो यह काम अभी ही होना है| और बगल में साडी दबाए, आधी रात को, आधे घंटे का सफर लगभग दौड़ते हुए तय कर उसने अपने विचार को कार्य रूप दे दिया|

तुम भी हद करती हो| देने कि कोई मनाही नहीं है| लेकिन यह कोई तरीका है| आधी रात को यों पैदल जाकर, इस प्रकार से देने का? तुम्हारा दिमाग फिर गया है? मैंने कहा.

हाँ, दिमाग तो फिर हुआ ही है| सब यही कहते हैं| लेकिन इस पागलपन में जो सुकून मिलता है, जो आनंद मिलता है शायद वो जन्नत में भी नहीं मिले| आज रात जैसी नींद आई वैसी शायद इसके पहले कभी नहीं आई| मेरे पास कुछ भी ज्यादा आ जाता है तो जैसे बदन में जलन होने लगती है|

और फिर एक घटना बताने लगी| अभी कुछ दिन पहले, सर्दी कि एक शाम, कहीं काम करके निकली थी| ग्राहक ने उपहार स्वरुप उसे एक गर्म शाल भी दिया| लिफ्ट से उतरते उतरते बेचैनी शुरू हो गयी| मेरे पास पहले से एक शाल है| कुछ एक साल हो गए हैं, लेकिन अभी यह कई सर्दियाँ झेल सकती है| इस शाल का मैं क्या करुँगी? ना, इसे तो अभी ही किसी को देना है| काम्प्लेक्स कि चाहरदिवारी से निकलते निकलते बेचैनी इतनी बढ़ चुकी थी कि बैग में रखी हुई शाल उसके हाथों में आगई| गोया कहीं ऐसा न हो कि बैग से निकलते निकलते देर हो जाय और मौका छूट जाये| सर्दी कि शाम अच्छी ठंड पढ़ रही थी| सड़क पर सन्नाटा पसरा पड़ा था और अँधेरा धीरे धीरे उतर रहा था| धुंधलके में कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था| उस सुनसान सड़क पर अचानक उसे सामने से कोई व्यक्ति आता नजर आया| उसने शाल को कस कर पकड़ लिया|
यह शाल इसे ही देना है|
लकिन जब व्यक्ति कि काया कुछ साफ हुई तो उसे समझते देर नहीं लगी कि यह वह नहीं है जिसे वह खोज रही है| लेकिन उसकी बेचैनी सब सीमाएं पार कर चुकी थी| हिम्मत बटोर कर हिचकिचाते हुए उसने कहा, भाई साहब! मेरे पास यह एक गर्म शाल है| मुझे यह अभी किसी को देना है| क्या आपकी नजर में कोई है?
भद्र पुरुष ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा| उसके हाथ में रखे शाल को देख कर उसे लगा नहीं कि इस औरत की ऎसी हैसियत है कि वह उस शाल को किसी को दे सके| अतः उसने उससे पुछा कि क्या वह उस शाल को निश्चित रूप से किसी को देना चाहती है?
हाँ, अभी और इसी वक्त - बिना झिझके उसने तुरंत उत्तर दिया|
उस व्यक्ति ने उसे ठहरने का इशारा किया और कुछ ही देर बाद एक बूढ़ी औरत के साथ आ पहुंचा| इससे पहले कि वह बूढ़ी औरत कुछ कहती, वह भद्र इंसान कुछ बोलता उसके हाथ में उस शाल को रख वहाँ से भाग खड़ी हुई|

उसकी बातें सुन मेरे माथे पर पसीनें कि बूंदे आ गयीं| मुझे लगा, अगर में और कुछ देर रहा तो मुझे चक्कर आने लगेगा| मैंने जल्दी जल्दी अपनी बात समाप्त कर वहाँ से निकलने का फैसला किया|

तुम इतना कमाती हो फिर भी कष्ट में रहती हो| लोग तुम्हारी सरलता का लाभ उठा कर तुमसे उधार ले जाते हैं और फिर कभी वापस तो करते ही नहीं बल्कि बार बार मांगने आते रहतें है और तुम हो कि हर बार उन्हें देती रहती ही| यह सरासर नादानी है|

भैया! यह तो अपने अपने सोचने का ढंग है| मुझे तो लगता है कि अल्लाह मुझे इसीलिए देता है कि मैं उसके भेजे हुए बन्दों को बिना कुछ पूछे देती रहूँ|

मुझे तैश आ गया, अरे यह भी कोई बात हुई? एक ही आदमी कभी पढाई के लिए, कभी धंधे के लिए, कभी बीमारी के बहाने तुमसे उधर मांग कर ले जाता है| अच्छा खासा कमाता है, फिर भी कभी पैसे लौटने का नाम तक नहीं लेता| बल्कि बार बार मांगने चला आता है| और बिना किसी हील हुज्जत के तुम उसे बार बार पैसे दिए जाती हो| यह तो बेवकूफी है| 

उसने मुझे समझाते हुए कहा, मैं तो अपने आप को अल्लाह का बैंकर समझती हूँ और कुछ नहीं| मेरे चहरे पर एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लटक गया| उसने अपनी बात आगे बड़ाई, आप अपना पैसा बैंक में जमा करते हैं| और जब, जिसको, जितना चाहते हैं दे देते हैं| बैंक आपसे कभी कुछ नहीं पूछता| अगर बैंक एक दिन भी पूछ लेगा तो आप अपना बैंक तुरंत बदल लेंगे| अल्लाह ने अपना एकाउंट मेरे पास खोल रक्खा है| मैं कोई भी ऐसा काम क्यों करूँ कि वह अपना एकाउंट मेरे पास से हटा कर और कहीं ले जाय?

आया था नसीहत देने, उठा नसीहत लेके|

२९.०२.२०१२





मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

Quotes


अमृत लाल नगर

दुनिया धर्मक्षेत्र है. पवित्र हृदय से बढकर और कोई प्रभुमूर्ति नहीं, सत्य ही अविनश्वर धर्मग्रन्थ है. स्वार्थ बुद्धि की बलि ही सच्ची बलि है.
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इंसान कमजोरियों का पुतला है इसलिए सिर्फ उसकी अच्छाइयों को ही देखना चाहिए. बुराइयां पहले अपने में देखनी चाहिए.
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एक अंग्रेजी कहावत के अनुसार इतिहास में तारीखों के आलावा और सब कुछ गलत होता है और उपन्यास में तरीखों के आलावा और सब कुछ सच.
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भीष्म सहनी

किसी भी बात के लिए अधिक उत्साह नहीं दिखाना चाहिए. बहुत उत्साह दिखाओ तो ऊपर बैठे भाग्य-देवता को अच्छा नहीं लगता.
(मय्यादास कि माढी)
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अपने दिल की मुराद को मुहँ पर लेन से मुराद पूरी नहीं होती, मुराद को हवा लग जाती है.
(मय्यादास कि माढी)
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हजारी प्रसाद द्विवेदी

इतिहास साक्षी है कि देखी सुनी बात को ज्यों-का-त्यों कह देना या मान लेना सत्य नहीं है. सत्य वह है जिससे लोक का अत्यधिक कल्याण होता है. ऊपर से वह जैसा भी झूठ क्यों न दिखाई देता हो, वही सत्य है.
                             
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खुशवंत सिन्घ

बुराई के बारे में सजग होना अच्छाई के परिवर्धन की एक अनिवार्य शर्त है. पहले तल्ले की कच्ची दीवारों पर दूसरी मंजिल उठाने का कोई तुक नहीं. बेहतर इसी में है कि उसे गिरा दिया जाय.
           (ट्रेन टू पाकिस्तान)
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डॉ. कुसुम असल

बहुत से सच ऐसे होते हैं उनको छुपा लेने में ही भलाई है ...... नहीं तो इनसान पर से इनसान का ही नहीं, रिश्तों कि खूबसूरती का भरोसा भी खत्म हो जायगा, हमेशा के लिए.
                              (उसके होठों का चुप)
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नरेन्द्र कोहली

यदि पत्नी अपनी इच्छा का तनिक भी विरोध होने पर घर छोड़ कर जाने को तैयार बैठी हो तो कैसा दांपत्य जीवन होगा.
                   (महासमर)
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 शिव प्रसाद सिंह

आजकल साले नारे भी खूब निकले हैं. गुंडे गुंडागर्दी के खिलाफ, बदमाश बदमाशी के खिलाफ, चोर चोरी के खिलाफ और जुल्मी जुलुम के खिलाफ गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हैं.
                           (अलग अलग वैतरणी)
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पार्टी नहीं लड़ती जुल्म के खिलाफ, आदमी लड़ता है. आदमी अगर खुद स्वार्थी, बदमाश और लुच्चा होगा तो वह राम की ओर से भी लड़े तो उन्हें भी रावण बना कर दम लेगा.
                           (अलग अलग वैतरणी)
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उपेन्द्र नाथ अश्क

मनुष्य का मन अथाह समुद्र है. इसके गर्भ में क्या है, यह सतह देख कर नहीं जाना जा सकता.
                              (गिरती दीवारें)
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यह कपट! यह ऊपर से उतना कटु मालूम नहीं होता, पर जो व्यक्ति इस कपट का शिकार बनता है, जब उस पर इसकी यथार्थता खुलती है तो उससे जो झटका लगता है, छले जाने को जो खेद उससे होता है, वह हृदय में घाव बना देता है और वह घाव समय पा कर नासूर बन जाता है और कपटी के क्षमा मांग लेने पर भी, उससे बदला ले लेने पर  भी, नहीं मिटता.
                              (गिरती दीवारें)
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यशपाल

जब मनुष्य आभाव के गड्डे में होता है, उसे असमर्थता कि दीवारें बंदी बनाये रहते हैं. उसे सफलता का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे सकता. साधनों कि सीढ़ी पा जाने पर मनुष्य कि दृष्टि आभाव के गड्डे से ऊपर उठ जाती है. उसे सफलता के राजमार्ग दिखाई देने लगते हैं, महत्वाकांक्षा के शिखरों पर चढ़ने की रहें भी दिखाई देने लगती हैं.
                              (झूठा सच)
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