शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

मलाईदार लस्सी का रहस्य


           

बाहर अच्छी गरम है। एसी चला कर सोफा पर अधलेटा पड़ा हूँ। तभी रसोई से पत्नी ने आवाज दी, चलो आज हलवाई की लस्सी पी कर आते हैं। पता है कि वह पसीने में लथ-पथ होगी, ना कहने का सवाल ही पैदा नहीं होता, ‘हाँ चलो’, मैंने उठते-उठते कहा। तभी सामने चल रहे टीवी पर नजर पड़ी। एन्कर कह रहा था, ‘आपके शहर की सबसे अच्छी लस्सी की सच्चाई, जिसे सुन कर आप दंग रह जाएंगे और शायद बाजार की लस्सी पीना बंद कर देंगे। क्या आपने कभी सोचा कि आपकी लस्सी का स्वाद वैसा क्यों नहीं होता जैसा बाजार की लस्सी का होता है? आइए आज सुनते हैं हमारी विशेष रिपोर्ट जिसमें इस रहस्य पर से हम पर्दा उठा रहे हैं। तब तक पत्नी ने कहा, ‘आवाज थोड़ा बढ़ाओ’, और मेरे बगल में सोफा पर जांच गई। एंकर ने लस्सी का जो किस्सा सुनाया उसका सार-संक्षेप -

‘हलवा’ अपनी लस्सी के लिए प्रसिद्ध रहा है। वास्तव में उसकी लस्सी शहर में चर्चा का विषय रही है। उसके दीवानों में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। एक आयकर अधिकारी, जो एक बार उस रास्ते से गुजरा, उस दुकान पर लगी कतार को देखकर हैरान रह गया और उसने खुद उसकी लस्सी चखी तो वह भी उसका दीवाना हो गया और नियमित व्यसनी बन गया।

          लेकिन एक दिन अचानक उसका ध्यान स्वादिष्ट लस्सी से हटकर उसकी कमाई की ओर चला गया। उकी जिज्ञासा ने जल्द ही उसे ग्राहक से आयकर अधिकारी बना दिया। वह यह देखकर चकित रह गया कि हलवाई की कोई फ़ाइल ही नहीं है। उसने तुरंत उसे अपनी आय का ब्योरा जमा करने का निर्देश भिजवाया और जल्द उसे ब्यौरा प्राप्त भी हो गया।

          जब उसने उस ब्यौरे की जांच की तो उसकी आँखें चौड़ी हो गई, खर्च खाते में ब्लोटिंग पेपर का खर्च देखकर। हलवाई ब्लोटिंग पेपर का क्या कर रहा है? और वह भी इतनी बड़ी रकम? इस रहस्य को सुलझाने में असमर्थ वह उच्चाधिकारी के पास गया। बड़ी से बड़ी कंपनी में और न ही किसी भी सरकारी दफ्तर में भी इतना ब्लॉटिंग पेपर लगता है। तब यह हलवाई इतने ब्लॉटिंग पेपर का क्या कर रहा है?  इसे मिलावट’ का मामला समझ आयकर अधिकारियों ने यह मामला पुलिस को सौंप दिया। पुलिस ने हलवाई को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत ‘खाद्य पदार्थों में मिलावट’ के आरोप में पकड़ लिया।  मजिस्ट्रेट ने हलवाई को अभियोजन पक्ष के तर्क को सही ठहराया और सार्वजनिक स्वास्थ्य के आरोप में हलवाई को एक साल के कठोर कारावास की सजा सुना दी

          हलवाई ने उच्च न्यायालय में अपील की। और यहाँ से प्रारम्भ होती है असली रिपोर्ट। बचाव पक्ष के वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया, "माई लॉर्ड, मेरे मुवक्किल के खिलाफ आरोप बिल्कुल निराधार और काफी अस्पष्ट है। वह कई वर्षों से इस लस्सी को बेच रहा है, इस अवधि में लस्सी के हजारों प्रेमियों ने मीठा मथा हुआ दही चखा और उसका आनंद लिया है। क्या अभियोजपक्ष ने इन हजारों में से एक भी ग्राहक पेश किया है, जिसने शिकायत की हो या गवाही दी हो कि मेरे मुवक्किल की दुकान की लस्सी के कारण वह कभी बीमार पड़ा या किसी बीमारी से पीड़ित हुआ? इसके विपरीत, मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरे मुवक्किल के ग्राहक असाधारण रूप से अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेते हैं और मैं अनेक सम्मानित ग्राहक पेश कर सकता हूं, जिनका स्वास्थ्य मेरे इस दावे को पूरी तरह से पुष्ट करेगा।"

          बचाव पक्ष के वकील ने अपना ब्रीफ़केस खोलकर पिक्चर फ्रेम निकाले जिनमें कुछ हस्तलिखित प्रमाण पत्र लगे थे। न्यायाधीशों के सामने उन्हें गर्व से कहा, "मी लॉर्ड, ये कुछ प्रतिष्ठित लोगों के प्रमाण पत्र हैं, न केवल इस शहर के, बल्कि देश के भी, जिन्होंने प्रशंसात्मक शब्दों में इसकी मनोरमता की गवाही दी है। मेरे मुवक्किल की लस्सी की विशेषता और मौलिकता के कारण ही वह सूबे के उच्चाधिकारियों और नेताओं से बहुत आदर पाता है और उसे महत्वपूर्ण समारोहों में आमंत्रित किया जाता है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि गर्मियों के मौसम में, मेरे मुवक्किल की लस्सी को इस देश के विशेष पेय के रूप में आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को पिलाई जाती है।"

          "लेकिन ब्लॉटिंग पेपर के बारे में आपका क्या कहना है?" एक न्यायाधीश ने अधीरता से पूछा। "ब्लॉटिंग पेपर, माई लॉर्ड," बचाओ पक्ष के वकील ने उत्तर दिया, "मेरे मुवक्किल द्वारा गाढ़ा दही और मला  बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक महत्वपूर्ण सामग्री है, जिसे देखते ही उसके ग्राहकों के मुंह में पानी आ जाता है। ब्लॉटिंग पेपर के उपयोग से उत्पन्न होने वाली मोटी मलाके कारण ही ग्राहकों को इसे पचाने में बहुत मदद मिलती है।"

          अदालत में जाहिर तौर पर उसने जो जादू पैदा किया था, उसका आकलन करते हुए, वकील अब और भी सूक्ष्म तर्कों पर चले गए। अपने  सलाह जैसे संबोधन में उन्होंने कहा, "मेरा मुवक्किल लस्सी बनाने की कला में माहिर है। एक रसायनज्ञ की तरह वह ब्लॉटिंग पेपर का उपयोग बहुत वैज्ञानिक रूप से मापी गई मात्रा में करता है। वह केवल एक प्रसिद्ध पेपर मिल द्वारा बनाए गए पूरी तरह से साफ ब्लॉटिंग पेपर का ही उपयोग करता हैइसे दूध के साथ मिलाने से पहले अच्छी तरह से पीसा जाता है एक लंबी सांस लेते हुए और न्यायाधीश की आँखों-में-आंखें  डाल कर वकील ने अपनी बात जारी रखी, "यह अफ़सोस की बात है कि पुलिस ने मेरे मुवक्किल पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। वास्तव में, मेरे मुवक्किल की ईमानदारी बहुत सराहनीय है। वह इतना ईमानदार है कि उसकी लस्सी में इतनी गाढ़ी लाई होने के बावजूद वह इस स्वादिष्ट मलाई के लिए कुछ भी अतिरिक्त राशि नहीं लेता है। अपनी लस्सी उसी दर पर बेचता है जिस दर पर दूसरे हलवाई बेचते हैं। मैं निवेदन करता हूं, यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसे मैं आपसे नोट करने करने का अनुरोध करता हूं। यदि मेरा मुवक्किल चाहता तो वह आसानी से मलाके लिए एक अतिरिक्त राशि वसूल कर सकता थालेकिन चूंकि वह जानता है कि ग्राहकों के लिए जो मलाहै, वह वास्तव में मलाई नहीं है, इसलिए वह ईमानदारी से मानता है कि उसे अधिक शुल्क नहीं लेना चाहिए।”

          "लेकिन निश्चित रूप से आप उम्मीद नहीं करते होंगे कि हम आपकी वाकपटुता से सहमत होंगे कि लस्सी में ब्लॉटिंग पेपर के उपयोग से ग्राहकों के स्वास्थ्य को नुकसान और चोट नहीं पहुँती है," न्यायाधीशों में से एक ने टिप्पणी की।

          "निश्चित रूप से, महोदय, निश्चित रूप से।"  जज की तीखी टिप्पणी के जवाब में बचाव पक्ष के काउंसलर ने कहा, "आइए देखते हैं कि ब्लोटिंग पेपर किस चीज से बना होता हैसर, ब्लॉटिंग पेपर मूल रूप से उन्हीं सामग्रियों से बना होता है, जो वनस्पति घी बनाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। रासायनिक प्रयोगशाला के विश्लेषण में यह पाया गया है कि ब्लॉटिंग पेपर कच्चे बाँस का बना होता है। हाँ सर, बाँस, जो अचार की सबसे स्वादिष्ट किस्म का है”। वकील ने आगे कहा, "केवल अंतर यह है कि ब्लॉटिंग पेपर में, यह सूखे रूप में होता है। इस प्रकार ब्लॉटिंग पेपर में जो कुछ भी है, और जिसका अर्थ है कि मेरे मुवक्किल ने लस्सी में जो कुछ भी मिलाया है, वह एक प्रकार की वनस्पति ही है।" एक हंसी के साथ बोलते हुए, वकील ने आगे कहा, "इससे भी बढ़कर यहाँ ब्लॉटिंग पेपर वही काम करता है जो हमारी जानी-मानी देसी जड़ी-बूटी इसबगोल करती है। यानी यह आंतों को सिकुडऩे से रोकती है, जिससे मेरे मुवक्किल की लस्सी लेने वाले ग्राहकों को कब्ज की शिकायत नहीं होती, क्योंकि यह उनके पेट और आंतों को स्वस्थ्य रखती है। आप जानते हैं कि चिकित्सा विज्ञान ने कमोबेश पुष्टि की है कि अधिकांश रोग पेट के विकारों के कारण होते हैं - हमारी अधिकांश बीमारियों और खराब स्वास्थ्य का मूल कारण यही है। और चूँकि लस्सी पेट और आंत को साफ रखती है इस कारण मेरे मुवक्किल के ग्राहक अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं।"

          जब वकील ने देखा कि न्यायाधीश एवं अन्य उपस्थित लोग उनकी दलीलों को बहुत रुचि से सुन रहे हैं, वकील ने विजयी भाव से कहा, "और तो और, लस्सी में ब्लॉटिंग पेपर, मानव शरीर में मौजूद सभी जहरों को सोंख कर मिटा देता है ।" वकील के तर्क ने न्यायाधीशों को विस्मय में डाल दिया।

          वकील ने, आगे कहा, "चूंकि लस्सी में बहुत अधिक चर्बी होती है, बहुत से लोग इसे पचा नहीं पाते हैं। लेकिन मेरे मुवक्किल द्वारा मिश्रित ब्लॉटिंग पेपर अतिरिक्त चर्बी को अवशोषित करता है, जिससे चर्बी को पचाने में बहुत सहायता मिलती है। कोई आश्चर्य नहीं, सैकड़ों ग्राहक मेरे मुवक्किल के पास आते हैं क्योंकि वे केवल इस की लस्सी को पचा सकते हैं

          चकित श्रोताओं के रवैये से बहुत प्रोत्साहित महसूस करते हुए, बचाव पक्ष के वकील ने अदालत के सामने झुककर और विनती करते हुए अपनी टिप्पणी समाप्त की, "कृपया मेरे मुवक्किल के व्यापार के रहस्यों को क्लाइंट सुरक्षा प्रदान करें, जिसे मैं आपके आधिपत्य के सामने रखने के लिए बाध्य हूं। मुझे डर है कि कुछ नकलची और बेईमान विदेशी बहु-देशीय निर्माता ब्लोटिंग पेपर का पैटेंट करवाकर, इसकी  ब्रांडिंग करके भारी और मोटे मुनाफे में बेचेंगे। यह सब मेरे मुवक्किल, जिसकी महान प्रतिभा और ईमानदारी का पूरा देश कृतज्ञ और कर्जदार है, के प्रति अन्याय और नाइंसाफी होगी।" अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, उसकी लस्सी का पैटेंट करवा दिया और उसे स-सम्मान बरी कर दिया।

          एन्कर ने एक लंबी सांस लेते हुआ आगे कहा -  “न्यायालय ने तो उसे बारी कर दिया, लेकिन आप क्या करेंगे? क्या इन दलीलों पर आपको विश्वास है? क्या ब्लोटिंग पेपर से बनी लस्सी आप पीयेंगे? या फिर वही कहेंगे, अपना पुराना डियालोग  - “मेरे अकेले के करने से क्या होगा?निर्णय आपके हाथ में है।

          मैं अभी तक स्तब्ध पड़ा था, तभी पत्नी की आवाज कानों में पड़ी, “रहने दो मैं घर में ही अच्छी सी लस्सी बनाती हूँ, भले ही मलाईदार न बने कम-से-कम ब्लोटिंग पेपर तो नहीं ही होगा।”

 (यहाँ लस्सी तो केवल एक माध्यम है, लेकिन कमोबेश बाज़ार में उपलब्ध सभी खाद्य पदार्थों के पककेट्स का एक ही किस्सा है। घर में पकाया हुआ समान फ्रीज़ में भी कुछ ही दिन चलता है जबकि बाजार में बिकने वाले पदार्थ कई सप्ताह / महीने  चलते हैं, क्यों? गणमान्य रसायन शास्त्री, विशेषज्ञ, लैबरोटरी, डॉक्टर किस के पक्ष में बोलते के लिए मजबूर हैं?)

~~~~~~~~~~~~

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आ रहे हैं, क्या आप चाहते हैं दूसरों को भी इसे पढ़ना / जानना चाहिए!

तो इसे लाइक करें, सबस्क्राइब करें, और दूसरों से शेयर करें।

आपकी एक टिक – एक टिप्पणी दूसरों को

पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

~~~~~~~~~~~~

यूट्यूब  का संपर्क सूत्र à

https://youtu.be/0NMA-MspVJo

मेरा यू ट्यूब चैनल ->

youtube.com/@maheshlodha4989

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

कैसा हो जीवन का लक्ष्य



 


अभी कुछ समय पहले मैं श्रीअरविंद आश्रम – दिल्ली शाखा में  था। शुक्रवारीय संध्याकालीन ध्यान की संक्षिप्त वार्ता में वहाँ के एक आदरणीय साधक ने इस विषय पर चर्चा की थी। मुझे लगा कि उनके विचार आपके साथ साझा करूँ, फलस्वरूप यह लेखन-

जब मैं स्कूल में था, यकीनन इस विषय पर निबंध लिखाया जाता था – “मेरे जीवन का लक्ष्य” (My aim in life)। और इसका पहला पैरा प्रायः इस प्रकार प्रारम्भ हुआ करता था, “उद्देश्यहीन जीवन एक दयनीय जीवन होता है, एक महान उद्देश्य ही एक महान जीवन की सरंचना करता है। उद्देश्यहीन जीवन, सागर में  बिना पतवार की नाव की तरह हवा के थपेड़ों से इधर-उधर डोलती रहती है, उसका न तो कोई गंतव्य होता है, न ही कोई दिशा।”  तब से अब तक लक्ष्य के अर्थ भी बदल गये हैं और जहां पहले एक लक्ष्य से काम चल जाता था अब अलग-अलग अनेक लक्ष्य, यथा सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक, आध्यात्मिक, व्यावसायिक आदि की बातें होती हैं। अतः मैं लक्ष्य क्या और क्यों होना चाहिए पर चर्चा न कर लक्ष्य में क्या होना चाहिए, पर चर्चा करूंगा?

          एक प्रमुख बात। इसका इस से कोई लेना-देना नहीं है कि हम जीवन के कौन से पड़ाव पर हैं, बच्चे हैं या युवा, या अधेड़ या बुजुर्ग या फिर अति-बुजुर्ग। न ही इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि पुरुष हैं या महिला, नौकरी करते हैं या व्यापार, सन्यासी हैं या गृहस्थ, स्वस्थ्य हैं या रोगी, सही-सलामत हैं या दिव्यान्ग। एक सही लक्ष्य हमें जीवन के अंतिम क्षण तक, हर परिस्थिति में प्रेरणा देती रहती है, मार्ग प्रशस्त करती रहती है। यह निश्चित है कि हमारा जीवन वैसा ही होगा जैसा हमारा लक्ष्य होगा। हमारे जीवन का लक्ष्य ही हमारे जीवन का स्वरूप तय करता है। हमारा लक्ष्य किसी भी प्रकार का हो सकता है, बढ़िया-घटिया, अच्छा-बुरा, लेकिन जीवन वैसा ही होगा जैसा उद्देश्य होगा। तब उद्देश्य में ऐसा क्या होना चाहिए कि उद्देश्य बढ़िया और अच्छा हो। चूंकि इसका संबंध हमारे जीवन से ही है, अतः हमारे लिए महत्वपूर्ण भी है। 

          अगर हम अपने जीवन के लक्ष्य को इन चार स्तम्भों पर खड़ा करें तो हमारे जीवन के लक्ष्य में और जीवन में गुणवत्ता अपने आप आ जाती है। लक्ष्य हम चाहे जो भी बनाएँ लेकिन उन्हें खड़ा करें इन चार खंबों पर -

१। ऊंचा (High) -महान, , २। चौड़ा (Wide)-विस्तारित, ३। दयापूर्ण (Generous), और  ४।निःस्वार्थ (Dis-interested)

यानी, लक्ष्य एक ही होगा, लेकिन उसकी नींव में ये चारों तत्व होने चाहिये :   

१.    ऊंचा-महान – एक ऊंची और महान बात हमारे मन और मस्तिष्क की गहराइयों से आती है। यह क्षणभंगुर नहीं होती बल्कि दीर्घ कालीन होती है। यह हमारे सुलझे मस्तिष्क की देन होती है। किसी कष्ट का निवारण कुछ समय के लिए नहीं, लंबे समय के लिए भी नहीं बल्कि उससे मुक्ति के लिए। आनंद की प्राप्ति भी कुछ समय के लिए नहीं, लंबे समय के लिए भी नहीं बल्कि स्थायी होनी चाहिए। इसके लिए लक्ष्य पर गहराई से विचार करना और उस पर डट कर अडिग भाव से टिके रहना आवश्यक है। अगर हम लंबे समय के लिए उसे पकड़ कर नहीं रख सकते हैं तब इसका अर्थ है कि हम में महानता है तो सही लेकिन वह कभी-कभी अल्प समय के लिए ही प्रकट होती है। हम, किसी एक अच्छे कार्य के बारे में सोचते हैं,  कुछ दिन करते हैं लेकिन फिर छोड़ देते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वह हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं है बल्कि एक क्षणिक विचार है जो आया और चला गया। ऊंची पढ़ाई, बड़े पैसे, प्रचुर धन, इज्जत-पद-मान-सम्मान आदि भी अगर देखा जाए तो ऊंचे है लेकिन महान नहीं। जब हम अपने से आगे बढ़ कर दूसरे के बारे में सोचने लगते हैं तब हमारे जीवन का लक्ष्य महान बन जाता है। जब हम दूसरे के लिए सोचने लगते हैं तो इनकी ऊँचाइयाँ असीमित हो जाती हैं। बड़े रुपए, ज्ञान का क्या करेंगे?  इस क्या को लक्ष्य बनाएँ, यही लक्ष्य को असीमित भी बनाता है महान भी। इस क्या का उत्तर दूसरे के बार में विचार करने से ही मिलता है। केवल विचार काफी नहीं है, उस पर कार्य करना होगा, उसके लिए जुनून होगा, तब उसमें तीव्रता आएगी, अन्यथा यह एक क्षणिक विचार तक ही सीमित रह जाएगा, उस पर थोड़ा सा कार्य करके ही संतोष हो जायेगा। बड़ी वस्तु को पाने के लिए छोटी वस्तु छोड़ने के लिए तैयार होना होगा। कुछ देने से ही कुछ मिलता है। जितना ज्यादा और अच्छा चाहिए उतना ही ज्यादा मूल्य देना पड़ता है। हमारे पास हर कुछ पाने की न तो शक्ति होती है न ही समय। ज्यादा के लिए कम को छोड़ना ही पड़ता है। जैसे-जैसे महान लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते हैं छोटे उद्देश्य स्वतः छूटने लगते हैं, जीवन सुधरने लगता है। महान उद्देश्य की प्राप्ति से मिलने वाला संतोष भी ज्यादा होगा। क्योंकि इससे यह भावना पैदा होगी की मुझे और कुछ नहीं चाहिए मेरे पास सब कुछ है। एवरेस्ट फतेह करने पर जो और जैसा संतोष मिलेगा और कोई दूसरी चोटी पर चढ़ने से नहीं मिलेगा। यही नहीं उसके बाद और किसी चोटी पर चढ़ने की तमन्ना भी नहीं रहेगी।

२.    चौड़ा-विस्तारित – यानी जैसे हमारा जीवन उद्देश्य ऊंचा-महान है वैसे ही यह चौड़ा-विस्तारित भी होना चाहिए। संकुचित न हो कर इसमें अनेक लोगों का समावेश होना चाहिए, ज्यादा-से-ज्यादा। सब से सीमित हुआ केवल मैं, इसे थोड़ा विस्तारित करें तो मैं और मेरा परिवार, वृहत परिवार थोड़ा और विस्तारित हुआ लेकिन फिर भी सिकुड़ा हुआ ही है। इसमें जैसे-जैसे, मुहल्ला, समाज, शहर, देश और उससे भी आगे बढ़ कर समस्त मानव-जाति, प्राणी मात्र को जोड़ना अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण विस्तार देना है। यह कहना कि मैं पूरी मानव-जाति को प्यार करता हूँ कहना आसान है लेकिन करना कठिन। दूर देश के लोगों के बारे में सोचना बड़ा आसान है लेकिन अपने सामने खड़े 10 लोगों के लिए करना बड़ा कठिन है। मैं प्राणी मात्र की चिंता करता हूँ कहना बड़ा आसान है, सामने खड़े प्राणी के लिए करना बड़ा कठिन है। अपने लक्ष्य को विस्तारित कीजिये, ज्यादा-से-ज्यादा लोगों का समावेश कीजिये।

३.    दयापूर्ण - यानी उदारता का भी समावेश हो, हम देने के लिए तैयार हों। अब हमारा जीवन विस्तारित और महान है, और हम कुछ देने के लिए भी तैयार हैं। हम क्या दे सकते हैं? हम वही दे सकते हैं जो हमारे पास है। और किसे दे सकता हूँ? जिसे उसकी आवश्यकता है। यह जानना जरूरी नहीं है कि वह कौन है, न उसका हमारा परिचित होना जरूरी है, जरूरी है सिर्फ इतना ही कि उसे इसकी आवश्यकता है। जबरदस्ती किसी को कुछ नहीं दिया जा सकता। और-तो-और अच्छी बात, ज्ञान भी आप उसे ही दे सकते हैं जो उसे लेना चाहता है। हम व्हाट्सएप्प भेज तो सकते हैं लेकिन उसे सुनना, देखना, पढ़ना तो पाने वाले की इच्छा पर ही निर्भर करता है। देने का कार्य तो तभी किया जा सकता है जब आप उदार होंगे। और अगर उदार होंगे तो आपको कब, किसे किसकी जरूरत है यह भी दिखने और समझ में आने लगेगा। 

४.    निःस्वार्थ – यह यथार्थ रूप में बहुत कठिन है। यह अँग्रेजी का un-interested नहीं बल्कि dis-interested है, यानी ऐसा नहीं है कि मेरी उसमें मेरी कोई रुचि नहीं है बल्कि इसका अर्थ हुआ में इसमें मेरा कोई मतलब नहीं है, स्वार्थ नहीं है। इससे मुझे क्या मिलेगा इस पर हमारा ध्यान नहीं है। मिलेगा जरूर एक शांति, पूर्णता का अहसास, संतोष, तृप्ति की भावना। लेकिन यह स्वतः प्राप्त हो रही है, न हमें इसकी चाह थी और न ही हम इस भावना से दे रहे थे। देने में हमारा कोई स्वार्थ नहीं है, हम केवल इस लिए दे रहे हैं क्योंकि हम देना चाहते हैं, क्योंकि हम उदार है और इसमें मेरा कोई भी स्वार्थ नहीं है। हमें जो भी मिल रहा है वह हमारा मुख्य उत्पाद नहीं है बल्कि गौण-उत्पाद (by-product) है।

 

    अगर इन चारों – महान, विस्तार, उदार और निःस्वार्थ – को एक साथ जोड़ दें तो एक ही चीज निकलती है वह है अपने बारे में न सोच कर दूसरों के बारे में सोचना। केवल सोचना काफी नहीं है, बल्कि करना। जीवन में एक ऐसा उद्देश्य ही हमें पूर्णता प्रदान करता है, असीम ऊंचाई प्रदान करता है।

~~~~~~~~~~~~

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आ रहे हैं, क्या आप चाहते हैं दूसरों को भी इसे पढ़ना / जानना चाहिए!

तो इसे लाइक करें, सबस्क्राइब करें, और दूसरों से शेयर करें।

आपकी एक टिक – एक टिप्पणी दूसरों को

पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

~~~~~~~~~~~~

यूट्यूब  का संपर्क सूत्र à

https://youtu.be/UYZsH1e8_xU

मेरा यू ट्यूब चैनल ->

youtube.com/@maheshlodha4989

 


शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

सूतांजली अप्रैल 2023

 


 

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/rB0o8EraeYg

 

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2023/04/2023.html