शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

काला धब्बा

  

(हमारे शास्त्र, पुराण, वेद छोटी-छोटी कहानियों से भरे हैं। इनका उद्देश्य है जीवन की गूढ़ बातों को सहज ढंग से पाठकों तक पहुंचाना। हम, लोगों का मूल्यांकन करने में बड़ी हड़बड़ी और गड़बड़ी करते हैं, विशेषकर तब, जब हमारे पास उस व्यक्ति को नापसंद करने के लिए एक ज्ञात या अज्ञात कारण या हमारा आलोचनात्मक स्वभाव होता हैयह एक ऐसी ही अति प्राचीन कहानी है जो इस तथ्य को सरल ढंग से समझाती है ।)

 

एक समय की बात है एक व्यक्ति किसी आश्रम में एक ऋषि के पास आया। ऋषि से कुछ देर वार्तालाप करने के बाद वह एक अन्य आश्रम के ऋषि की आलोचना करने लगा। ऋषि धैर्य पूर्वक उसकी बात सुनते रहे। अन्य शिष्यों को अच्छा नहीं लग रहा था और वे आश्चर्यचकित भी थे कि उनके गुरु शांति से अन्य ऋषि की आलोचना कैसे सुन रहे हैं। जब उसने अपनी बात पूरी कर ली तब ऋषि ने अपने शिष्य से सफ़ेद कागज का एक बड़ा पन्ना लाने को कहा। ऋषि ने अपने कलम से उस सफ़ेद कागज पर एक काला धब्बा बनाया और फिर उस आगंतुक को वह पन्ना दिखा कर पूछा, "यह क्या है?" आगंतुक ने मुसकुराते हुए कहा, "एक काला बिंदु।" ऋषि ने कुछ नहीं कहा और वे उस पन्ने को उसी तरह पकड़े रहे। आगंतुक को समझ आ गई की ऋषि उसके जवाब से संतुष्ट नहीं है। वह गंभीर हो गया और पुनः विचार कर बोला, “एक काला धब्बा।”

          अब ऋषि ने मुसकुराते हुए कहा, "लेकिन आप सफेदी के बड़े विस्तार को क्यों नहीं देख पा रहे हैं और केवल काले बिन्दु को ही क्यों देख रहे हैं? आपके द्वारा दूसरे की आलोचना इसी  तरह की है। आप उसके सभी सुंदर गुणों को नहीं देख पा रहे हैं, लेकिन केवल उसके छोटे दोषों को ही देख रहे हैं। जिस काले धब्बे को आप दूसरे व्यक्ति में देखते हैं वे और कुछ नहीं बल्कि आपके अपने काले धब्बे के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह आपके अपने काले धब्बों का ही प्रतिबिंब है।"

          हाँ, यह सच है। निम्न आत्मादूसरों के दोषों को निकालने में तुच्छ और क्षुद्र आनंद लेता है और वह खुद अपनी प्रगति को बाधित करता है। यदि आप किसी में दोष देखते हैं, तो बहुत संभव है कि वह दोष आप में भी आ जाये। दूसरों के दोषों के बारे में बोलना निश्चय ही बहुत बुरा है; हर किसी के अपने दोष होते हैं और उनके बारे में सोचते रहना निश्चित रूप से उन्हें ठीक करने में मदद नहीं करता है, बल्कि इसके विपरीत वे दोष बढ़ जाते हैं और खुद में भी आ जाते हैं। अतः दूसरों की बुराई करने से बचें, उसमें काले धब्बे न देख कर उसके उजले भाग पर ही ध्यान केन्द्रित करें।

आप किसी कि बुराई से बचने के लिए कुछ साधारण नियम बना सकते हैं, जैसे :

१.     ऐसी किसी भी अवस्था में बोलने से बिल्कुल मना कर दें, पूर्ण मौन धरण कर लें।

२.     बिना किसी मोह, माया और दया के, खुद का अध्ययन करें और महसूस करें कि आप अपने आप में ठीक वही सब कुछ रखते हैं जो आपको दूसरों में बहुत हास्यास्पद, बेतुका और गलत  लगता है।

३.    अपने स्वभाव में उस अंधकार के विपरीत उजाले गुणों यथा, परोपकारिता, विनम्रता, सद्भावना आदि प्रकाशमान गुणों की खोज करें और इस बात पर जोर दें कि ऐसे तत्व अपने लाभ के लिए विकसित हों।

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

क्या सस्ता .... क्या महंगा


 

सुबह उठा तो बिस्तर पर ही पड़े-पड़े पूरे दिन का जायजा लिया। आज तो बाहर जाना है, एक  परिचित के विवाह में! कपड़े तो होंगे, फिर भी एक बार देख लूँ। अलमारी खोली और एक नजर घुमाई। हूँ.....  सब है लेकिन मोजा और एक नई टाई और ठीक मिल जाए तो एक स्वेटर लेनी पड़ेगी। विचार किया, इधर-उधर भटकने के बजाय मॉल में ही चलता हूँ तीनों एक ही जगह पर मिल जायेगी, सुविधा से सब कार्य फटा-फट हो जायेगा। तैयार होकर निकल पड़ा।

          एक स्टोर में घुसा। मैंने 9000 रुपये के मूल्य टैग के साथ एक स्वेटर देखा। स्वेटर के बगल में 10000 रुपये की जींस की एक जोड़ी थी। मोज़े थे, 8000 रुपये के! और आश्चर्यजनक 16,000 की टाई। मैं पसीने-पसीने हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या है?

          मैं एक सेल्स मैन (विक्रेता) की तलाश करने लगा। घड़ी विभाग में मुझे एक दिखा। वह एक ग्राहक को घड़ी दिखा रहा था, 225 रुपये में रोलेक्स की घड़ी। मुझे वहीं एक शीशे के शो केस में 195 रुपये में एक 4 कैरेट हीरे की अंगूठी भी दिखी। मैं हैरान भी था, विस्मित भी। मन चिड़-चिड़ा भी रहा था। आखिर झल्ला कर मैंने सेल्समैन से पूछा, "रोलेक्स की घड़ी 225 रुपये में कैसे बिक सकती है? और मोजे की यह एक सस्ती जोड़ी 8000 रुपये में! यह क्या हो रहा है?” सेल्समैन बेचारा खुद भी परेशान था और भ्रमित भी। झिझकते हुए उसने कहा कि लगता है कि कोई स्टोर में आया है और उसने सब वस्तुओं के प्राइस टैग को उलट-पुलट कर दिया है।

          उसने आगे कहा, सर, यह तो कोई खास बात नहीं है, आश्चर्य चकित करने वाली बात तो यह है कि ग्राहक इन्हीं कीमतों पर शॉपिंग भी  कर रहे हैं। वे सस्ती चीजों को अनाप-सनाप दामों पर खरीद रहे हैं और अनमोल वस्तुएं  पानी के भाव भी उन्हें महंगी नजर आ रही हैं। वे उधर झांक भी  नहीं रहे हैं। लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे उन्होंने अपनी समझ खो दी है। प्रतीत हो रहा है कि वे नहीं जानते कि वास्तव में क्या मूल्यवान है और क्या नहीं। क्या इन्हें कभी समझ आएगी? मुझे वास्तव में अफ़सोस हो रहा है, लोगों को सस्ती चीज़ों के लिए इतनी कीमत देते देखकर। और उससे ज्यादा इस बात पर कि अनमोल वस्तुओं को कोई छू भी नहीं रहा है।”

          मैं चौंका और विचार मग्न हो गया। लगा, वह कह तो ठीक ही रहा है लेकिन अभी मुझे न तो घड़ी चाहिए और न ही अंगूठी। तब क्या करूँ? बुझे मन से मैं भी मोजे और टाई की लिखी कीमत चुका कर वापस आ गया।

          लेकिन शांति से नहीं बैठ सका। तब से यही सोच रहा हूँ ...

क्या हमारा जीवन ऐसा ही नहीं है? क्या हमारे जीवन में भी कोई घुस गया है और उसने हर चीज का मूल्य अदल-बदल कर दिया है। प्रतिस्पर्धा, उपाधी, पद, मान, सम्मान, प्रसिद्धि, पदोन्नति, दिखावा, धन, शक्ति आदि साधारण चीजों को बहुमूल्य बना दिया है। और इन्हें हम लाइन लगा कर मुँह मांगे दामों पर खरीदते रहते हैं।

          ..और खुशी, परिवार, रिश्ते, शांति, संतोष, प्रेम, ज्ञान, दया, दोस्ती जैसी महंगी चीजों के मूल्यों पर भारी छूट दे... उन्हें कौड़ी के भाव कर दिया है! फिर भी हम इनकी तरफ से बे-खबर हैं। शायद हम सब इस सपने को जी रहे हैं.. कि महंगी चीजें ही अच्छी हैं! सस्ते में मिलने वाली चीजें बेकार हैं। महंगा रोये एक बार, सस्ता रोये बार-बार? क्या हम इस मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर देंगे और समय रहते  ही जीवन के सही मूल्य को पहचान जाएंगे। ऐसे हालातों पर ही शायद संत कबीर ने लिखा होगा :

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा ज
नम अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

 हम चंद्रमा तक पहुंचने, मंगल ग्रह का पता लगाने और प्लेटो और वृहस्पति पर रॉकेट भेजने में सक्षम हैं। लेकिन हम सच्चे प्यार पर आधारित एक छोटा सा समुदाय भी नहीं बना पा रहे हैं, जो कि चंद्रमा पर चलने की तुलना में, मानवता और हमारे ग्रह के लिए कहीं अधिक सकारात्मक परिणाम वाली एक बड़ी उपलब्धि है।

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शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

सूतांजली जनवरी 2023

सूतांजली के जनवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में हैं:

१। सद्गुणों के उत्सव में  -   मैंने पढ़ा

कौन सा है वह सद्गुण जो है तो महत्वपूर्ण लेकिन हमारे ख्याल में ही नहीं आता?

२। ययाति आख्यान  -  मेरे विचार

ययाति आख्यान से तो शायद आप परिचित हैं लेकिन क्या अपने कभी विचार किया कि पुरू, ययाति के छोटे पुत्र ने क्यों पिता का प्रस्ताव स्वीकार किया?

३। बड़े लोग, छोटे लोग   -   लघु कहानी - जो सिखाती है जीना

हम बड़े, छोटों को बहुत ज्ञान देते रहते हैं। लेकिन क्या हमारा खुद का आचरण उस ज्ञान के अनुरूप होता है?

 


यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/CfNuUI8K5JQ

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2023/01/2023.html