शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

काम या नाम

आज हर कोई, हर संस्था, राजनीतिक दल हो या राजनीतिक संगठन। सामाजिक कार्यकर्ता हों या सामाजिक संस्था। सामाजिक आंदोलन के प्रणेता या धार्मिक संस्थान, सब हिमालय जैसी भूलें कर रहे हैं, पर इनमें से एक भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं।

इन सब से अलग एक व्यक्ति था, इन सब से अलग था, अनूठा था। जो बातें उन्हें अलग और अनूठा  बनाती थीं, वे थीं:

१। उन्हें मृत्यु का भय नहीं था,

२। पराजय का भय नहीं था,

३। कहीं कोई उन्हें मूर्ख न मान ले – इसका डर नहीं था,

४। सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्हें अपनी गलती स्वीकार करने में डर नहीं लगता था।

इनके अलावा एक और विशिष्ट बात थी – कड़ुवे सच सुनने और समाज को कड़ुवे सच सुनाने का साहस था।

आज इन बातों को अगर हम मापदंड के तौर पर लें और पूछें कि कौन है जो इन मापदंडों पर खरा उतरता है, तो बहुत कम लोग मिलेंगे। यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इसे हम चाहे कुछ भी नाम दें, शक्ति कहें, ताकत कहें, आदत कहें या तकनीक कहें या कुछ और। उस व्यक्ति का नाम बताऊँ तो शायद आपके मुंह: का स्वाद खराब हो जाएगा। क्योंकि दुष्प्रचार, भ्रामक और झूठी बातें फैला कर सोशल मीडिया और खुद गर्ज़ लोगों ने हमारे दिल में उनके लिए नफरत भर दिया है। लेकिन कोई उनसे पूछे कि अगर ऐसा ही था तब, जब वे थे, पूरा भारत उनके पीछे क्यों चला, पूरा विश्व उनका लोहा क्यों मानता था, बिना कोई प्रश्न किए? खैर, अभी मुद्दा कुछ और है। वैसे भी, आप समझ ही गए होंगे मैं जिनकी बात कर रहा हूँ वे थे मोहनदास करमचंद गांधी।

हमें जब भी किसी राजनीतिक दल, राज्य या केंद्र सरकार की किसी गलती को खोज निकालने में मजा आए तो हमें खुद से भी पूछ लेना चाहिये क्या इस गलती को करने में हमारी अपनी भी कुछ भूमिका थी?’ हम ऐसा नहीं करने वाले। और राजनीति में जो लोग हैं, वे भी हमसे ऐसा करने को कहने वाले नहीं।  कोई यह कहने को तैयार नहीं कि मैं हारूँ तो हारूँ, मैं अपना स्नेह लुटा दूँ तो लुटा दूँ लेकिन मैं सच जरूर कहना चाहता हूँ। एक आम नागरिक  की तरह भी हमने अपने देश को नीचा दिखाया है – यह आज कोई कहने को तैयार नहीं। लेकिन इसके विपरीत इस पीड़ा को, इस दर्द को, इस घाव को दूर करने के लिए कई लोग ठोस काम कर रहे हैं। वे अपने आप को गांधीवादी नहीं बताते हैं। पर वे काम कर रहे हैं। उनकी संख्या कम है। उनके नामों से भी हम परिचित नहीं हैं। गांधी का जो भी काम देश में हो रहा है, वो खासकर उन्हीं लोगों से हो रहा है जो कि अपने काम को गांधी का नाम नहीं दे रहे हैं। उन्हें नाम से मतलब भी नहीं है। उन्हें केवल काम से मतलब है और वे सिर्फ अपने काम में रत हैं।

अब कुछ नाम और काम प्रकाश में आए हैं लेकिन उनकी चर्चा कहीं नहीं है। सुहासिनी माइती ने भीख मांग कर हयूमैनिटी अस्पताल खड़ा कर दिया, हरेकाला हजब्बा  ने संतरे बेच कर प्राथमिक विद्यालय की  स्थापना की,  बिहार के बेतहारवा गाँव में स्वाधीनता के बाद से आज तक न एक भी एफ़आईआर दाखिल हुई और न ही कोई केस दर्ज हुआ, अनेक सरकारी अधिकारी स्थानांतरण के जुल्म झेलते रहे लेकिन सत्य से नहीं डिगे,  नदिया जिले के अभयनगर में प्राथमिक विद्यालय के प्राध्यापक ने रोज पूरे गांववासियों को राष्ट्रगान पर सब काम छोड़ कर खड़े होने की प्रेरणा दी। इनमें से कोई भी नाम के पीछे नहीं गया, ये सब काम के भूखे हैं, इनमें एक जज़बा है। और सबसे खास बात ये है कि ये समाज के उस तबके से हैं जिन्हें हम कमजोर वर्ग का मानते हैं। उनपर न हमारी नजर पड़ती है और न हम उनकी परवाह करते हैं। दुनिया में जो थोड़ी बहुत अच्छाई बची है, इंसानियत बची है, वह शायद ऐसे ही लोगों के कारण बची है जो काम में विश्वास रखते हैं। वे न नाम की परवाह नहीं करते और न ही संसाधनों का इंतजार।  वे बिना किसी संसाधन के, अपने आप में समस्त  संसाधनों से युक्त पूर्ण संस्थान हैं। 

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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

डॉ एल पी तेस्सीतोरी

 विदेशी मनीषियों, साहित्यकारों, विद्वानों का हमारी संस्कृति, आस्था, साहित्य और भाषा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान रहा है। उनके यात्रा विवरणों से विश्व को हमारे एवं हमें अपने इतिहास, देश-काल, संस्कृति, सभ्यता  और समाज का पता चलता है। इसके अलावा हमारे कई अनमोल ग्रन्थों का भी उन्होंने ही उद्धार किया है । इसमें एक नाम है जर्मनी के श्री मैक्स मुलर का। हम यह जानते हैं कि हमारे वेदों को विलुप्त होने से बचाने में मैक्स मुलर का ही हाथ था। ये मैक्स मुलर ही थे जिनके प्रयास से विलुप्त होते हमारे चारों वेद प्रकाश में आये, उनकी छपाई हुई तथा अनेक भाषाओं में उनका अनुवाद भी हुआ। इस प्रकार ये हमारे अनमोल आधारशिला ग्रंथ विलुप्त होने से बचे।

 ऐसे ही इटली के भाषाविद थे डॉ एल पी तेस्सीतोरी। इटली में ही रहते हुए उन्होंने रामायण और राम चरित मानस पढ़ा, उसका अध्ययन किया और फिर ग्रियर्सन के अनुमोदन पर कोलकाता के एशियाटिक सोसाइटी में आये। यहाँ आकार उन्होंने राजस्थानी भाषा पर काम प्रारम्भ किया। राजस्थानी सीखी और राजस्थान को अपना कर्म क्षेत्र बनाया। विपरीत हालातों और मौसम की परवाह न कर ऊंटों पर सवारी कर पूरे राजस्थान का भ्रमण किया और दूर-दराज के गाँव-गाँव में घूम-घूम कर राजस्थानी साहित्य की पांडुलिपियाँ जमा कीं, उनको छपवाया और अन्य भाषाओं में  उनका अनुवाद भी किया और करवाया। उन्हीं के प्रयास से राजस्थानी के अनेक ग्रंथ विलुप्त होने से बचे।

 डा. तेस्सितोरी का संक्षिप्त परिचय – 13 दिसम्बर 1887 को इटली के उदीने शहर में जन्मे डा. तेस्सितोरी करीब 100 साल पहले भारत आए थे। 1910 में विदेशी भाषाओं के प्रति रुचि रखने वाले तेस्सितोरी ने फ्लोरेंस विश्व विद्यालय से संस्कृत में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे भारत में रहकर राजस्थान के राजपुताना के इतिहास को 1914 में लिपिबद्ध किया। इस प्रयास में भाषाविद जार्ज ग्रियर्सन ने भाषाई सर्वेक्षण कराने के लिए उन्हें भारत आमंत्रित किया था। उन्होंने तेस्सितोरी को तत्कालीन एशियाटिक सोसाइटी के स्कालर के तौर पर राजपुताना की भाषाओं पर शोध करने के लिए आमंत्रित किया था। तब कोलकाता देश की सांस्कृतिक व बुद्धिजीवियों का शहर माना जाता था। तेस्सितोरी ने जयपुर, जोधपुर व बीकानेर को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया तथा गहरी मेहनत के साथ ही इन्हें सोसाइटी में लिपिबद्ध किया। सोसाइटी ने इनमें से काफी तथ्यों का सिलसिलेवार प्रकाशन करवाया जिसमें तेस्सितोरी की हस्तलिपी भी संरक्षित है।

ग्रिर्यसन का तेस्सितोरी पर निर्भता इसी बात से समझा जा सकता है कि फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी के विद्वान ने संस्कृत, प्रकृत व पाली में शीर्ष डिग्री प्राप्त की। उन्होंने न केवल रामयाण पढ़ी बल्कि संस्कृत में लिखे बाल्मिकी रामायण तथा अवधी में तुलसीदासकृत राम चरित मानस के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध कर शोध पत्र भी लिखा। तेस्सितोरी ने राजपुताना की भाषा व संस्कृति के विकास क्रम को लिपिबद्ध किया। राजस्थान में उनके महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि राजस्थान की कई सड़कों व संस्थानों का नामकरण उनके नाम पर हुआ है। उन्होंने राजस्थान प्रवास के दौरान, यहाँ न केवल सघन दौरा किया, बल्कि तपते रेगिस्तान तथा झुलसा देने वाली धूप की भी परवाह किए बगैर राजस्थानी भाषा व संस्कृति के विकास व समृद्धि के लिए काम किया। हालकृत सतसई, नासकेतरी कथा, इंद्रिय पराजय शतकम और आजाद वक्त की कथा आदि कृतियों का इतालवी भाषा में अनुवाद करके जहाँ, वहाँ के लोगों को भारतीय साहित्य से परिचित कराया, वहीं इतालवी साहित्य की भी श्री वृद्धि करके अपनी मातृभाषा की सेवा भी की।

मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में 22 नवंबर 1919 को बीकानेर में माँ भारती का यह चितेरा उसकी गोद में सदा के लिए सो गया। बिकानेर के राजकीय संग्रहालय के प्रांगण में उनकी मूर्ति लगी है और इसी के नजदीक कब्रगाह में उनका मकबरा सुरक्षित है।

राजस्थानी प्रचारिणी सभा, दी एशियाटिक सोसाइटी के साथ हर वर्ष डा तेस्सितोरी की याद में व्याख्यान का आयोजन करती है। इस वर्ष यह आयोजन शनिवार, 9 नवंबर को संध्या 7.00 बजे से ज़ूम पर आयोजित है जिसमें उदीने, इटली के भाषाविद भी भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम की पूरी जानकारी तथा ज़ूम सभा की पूरी सूचना नीचे संलग्न है। हम ऐसी सभाओं में उपस्थिती दर्ज करा कर अपनी जानकारी बढ़ा सकते हैं साथ ही इससे आयोजकों का उत्साहवर्धन भी होता है। अत: प्रयत्न कर इस आयोजन का हिस्सा बनें।

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राजस्थानी प्रचारिणी सभा एवं दी एशियाटिक सोसाइटी आपको आमंत्रित करती है ज़ूम सभा में

विषय : डॉ. एल पी तेस्सितोरी  - व्याख्यानमाला 2020

समय : शनिवार, जनवरी 9, 2021, 07:00 संध्या, कोलकाता, भारत

 ज़ूम सभा का लिंक

https://us02web.zoom.us/j/6106781034?pwd=ZkwzNHU1SytvaXBlV3dKSmFBWjVPZz09

 सभा संख्या : 610 678 1034

पासकोड : tessitori

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

सूतांजली, जनवरी २०२१

 सूतांजली के जनवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में कई विषयों पर चर्चा है:

१। ध्यान कैसे करें?

कैसे करें, से पहले यह समझें कि ध्यान क्या है और क्यों करना है। अगर यह क्या और क्यों समझ आ जाए तो कैसे बेहद सरल हो जाता है।

२। बोध कथा

क्या होती हैं बोध कथाएँ’? क्या उद्देश्य होता है इन कथाओं का? कहाँ मिलेगा बोध कथाओं का खजाना? क्या सम्पर्क है इनका हमारी भाषा, सभ्यता और संस्कृति से? इन सब के उत्तर आपको मिलेंगे एक ही पुस्तक में। पढ़ें-पढ़ाएँ, सुने-सुनाएँ और पुस्तकालयों में बांटें।

३। जनसम्पर्क

जीवन में सफलता के लिए, लोक प्रिय बनने के लिए यह आवश्यक है कि आपका जनसम्पर्क मजबूत हो। कैसे बनाएँ ये जनसम्पर्क?

४। कारावास की कहानी

पांडिचेरी आने के पहले श्री अरविंद कुछ समय अंग्रेजों की जेल बंद में थे। जेल के इस जीवन का, श्री अरविंद ने कारावास की कहानी के नाम से, रोचक वर्णन किया है। अग्निशिखा में इसके रोचक अंश प्रकाशित हुए थे। इसे हम इस माह से एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। यहाँ इसका पहला अंश है।

संपर्क सूत्र (लिंक): ->  https://sootanjali.blogspot.com/2021/01/blog-post.html

ब्लॉग में इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है।