शुक्रवार, 25 जून 2021

एक दूसरी मैं का जन्म

(जिन्दगी हर एक को नये मौके, नये मोड़, नयी दिशा, नयी राह दिखाती है। कोई पहचान लेता है, छलांग लगा देता है और दृड़ता से उसे पकड़े रहता है। जिसने पहचाना, छलांग लगाई और उस राह को पकड़े रहा उसका जीवन बदल गया। नहीं तो जीते तो सब हैं जब तक मर नहीं जाते। लगभाग चालीस दशक पहले लिखा तारकेश्वरी सिन्हा का एक संस्मरण उन्हीं की कलम से।)

बहुत साल बीत गये। पर एक लपट जिसने जीवन को प्रज्वलित किया था, उसका अहसास और याद, दोनों जीवित है।

 

मैट्रिक का इम्तिहान देकर मैं जुलाई के अंत में कॉलेज के पहले वर्ष में कुछ दिन पहले दाखिल हुई थी। यूं तो मेरा लालन-पालन बड़ौदा के कन्या विद्यालय के उन्मुक्त प्रांगण में हुआ जहाँ एक लड़की को हमेशा दल के साथ रहना चाहिये, इसका रत्ती भर भी आभास नहीं हुआ था। फिर भी हमारे सामाजिक वातावरण में, जीवन का एक ही ध्येय महत्वपूर्ण समझा जाता था कि शादी होगी, ससुराल जाऊँगी, ढेर से गहने-कपड़े पहनूँगी, वगैरह-वगैरह।

 

बंबई के ग्वालिया टैंक में ९ अगस्त १९४२ को अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों, भारत छोड़ो का जो प्रस्ताव पारित किया था उसका खास प्रभाव पटना गर्ल्स कॉलेज में नहीं हुआ था। इसलिए १० तारीख की सुबह एक साधारण सुबह की तरह आई। हम सब कॉलेज गये पढ़ाई करने के इरादे से। उस समय ख्वाब में भी यह खयाल नहीं था कि जीवन में कोई भूचाल आने वाला है। पहला पीरियड खत्म हो गया था और दूसरे पीरियड में हमारी प्रोफेसर क्लास ले रही थीं। तब-तक कम्पाउण्ड के बाहर से नारों की आवाज कानों में पड़ी, बहनों, हमारा साथ दो। हमें उत्सुकता हुई कि कॉलेज के बाहर आखिर क्या हो रहा है? हमने छुट्टी मांगी और प्रोफेसर से कहा कि बरामदे के बाहर खड़े होने की इजाजत दें। हम सब बरामदे में जाकर खड़े हो गये, देखा कि नौजवानों का एक बहुत बड़ा जुलूस हमारे गेट के सामने खड़ा होकर नारा लगा रहा है, बहनों हमारा साथ दो। सच पूछिये तो किसी भी लड़की का इरादा जुलूस में भाग लेने का नहीं था, दिलचस्पी भी नहीं थी।  

 

तब तक चीख-पुकार की आवाज सुनाई पड़ने लगी। ऐसा लगा कि सामने बहुत खलबली मच गई है। कुछ लड़कियां तो दुबक कर क्लास में चली गयीं और दो-चार जिसमें मैं भी थी, पेड़ों के झुरमुट में छिप कर नजदीक से जानने की कोशिश करने लगीं कि आखिर हो क्या रहा है। देखा, बहुत से लड़कों का सिर फूटा हुआ था, और खून बेतहाशा बह रहा था। घुड़सवार पुलिस इधर-उधर दौड़ रही थी। घुड़सवारों को हुक्म हुआ था कि वे नौजवानों को रौंद दें। सैकड़ों नौजवान खून में लथपथ सड़क पर पड़े हुए थे। ऐसा लगा शहर में बिजली कौंध गई। शायद वह एक ऐसा लमहा था जिसने सारे अहसासों और भावनाओं को बदल डाला था। उसी पल एक दूसरी तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म हुआ। मैंने झुरमुट में खड़ी अपनी साथियों से कहा, दोस्तों, इस ज्यादती को देखने के बाद हमारी एक ही ज़िम्मेदारी रह जाती है कि हम इन भाइयों का साथ दें। चलो, इन भाइयों के साथ जुलूस में भाग लें। और इसी क्षण से साम्राज्यवाद की जंजीर से इस देश को छुड़ाने की कसम खा कर जुलूस में साथ हो लिये। 

 

जुलूस में बहुत से छोटे-छोटे बच्चे भी थे। जुलूस सचिवालय की ओर जा रहा था। हमारे साथ स्कूल की नवीं कक्षा का एक बंगाली बालक भी था जो राष्ट्रीय झण्डा फहराते हुए जुलूस के साथ ही सचिवालय की ओर जा रहा था। जुलूस जैसे ही सचिवालय के करीब पहुंचा, सचिवालय पर राष्ट्रीय  झण्डा फहराने की बात तय हुई। बिल्डिंग के ऊपर राष्ट्रीय झण्डा गाड़ना था। वह बच्चा तब तक न जाने कहाँ गायब हो गया था। इधर-उधर देखा, कहीं नजर नहीं आया। इतने में सचिवालय के ऊपर जहाँ यूनियन जैक फहरा रहा था, देखा, वह छोटा बच्चा यूनियन जैक को उतार चुका था और उसकी जगह पर उसने अपना छोटा-सा राष्ट्रीय झण्डा गाड़ दिया, जो हवा में बुलंदी से फहर रहा था। आज भी कानों में अंग्रेज़ डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट की आवाज गूँज रही है। उस बच्चे की तरफ इशारा कर के उसने कहा था, जो राष्ट्रीय झण्डा उसने लगाया था हटा ले, नहीं तो गोली से उड़ा दिया जायेगा। उस बच्चे का उत्तर भी याद है। उस अंग्रेज़ अफसर को उसने फटकार कर कहा था, एस.पी.साहब, यह झण्डा नहीं उतरेगा। आपको गोली चलाने में असुविधा न हो इसलिये कमीज की बटन खोल देता हूँ। आज भी उसका वह कमीज की बटन खोलना याद है। हर पल, एक-दो-तीन की आवाज भी कानों में गूँज उठती है। पुलिस एस. पी. ने कहा था उस बच्चे से कि, नादान बच्चे, चेतावनी देता हूँ कि यदि एक-दो-तीन की आवाज पर झण्डा नहीं उतारोगे, तो तुम्हारे ऊपर गोली चलेगी और देखा था कि हमेशा-हमेशा के लिये वह बच्चा वहीं सो गया था।  

 

जिंदगी का वह क्षण मेरी जिंदगी में आया था जिसने मेरी जिंदगी के पोर-पोर को बदल डाला और आज ऐसा लगता है कि सारी जिंदगी के हिसाब में वही चंद दिन हमने जिंदगी की तरह महसूस किये हैं। उतने खूबसूरत दिन फिर नहीं लौटे, वैसी खूबसूरत रातें नहीं लौटीं। जो हमारे बीच से उन दिनों अलग हो कर शहीदों की  टोली में शामिल हो गये उनके बारे में जब कभी सोचती हूँ तो जोश का यह शेर याद आ जाता है :

                   गुंचे तेरी जिंदगी पै दिल हिलता है,

                             बस, सिर्फ एक तबस्सुम के लिये खिलता है।

                                      गुंचे ने हँस के कहा,, बाबा!

                                                ये एक तबस्सुम भी किसे मिलता है?

 

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शुक्रवार, 18 जून 2021

कुछ बदला है कुछ.....

 (कई युवा मजबूरी में अपनी मिट्टी छोड़ने के लिये विवश होते हैं, तो कइयों को वापस आने की जुगत नहीं दीखती। कई को विदेशी मिट्टी में खुशबू और सोना नजर आता है। कई तो ऐसे भी हैं जो अपनी मिट्टी से घृणा करते हैं। लेकिन इन सब से जुदा, यह भी है एक राह। युवाओं की सोच कुछ बदली है कुछ बदलेगी। एक दशक पहले एक माँ, उषा तनेजा, का पत्र अपने बेटे के नाम।)

प्रिय बेटा,

शुभ-मंगल आशीष।

जिंदगी में तुम्हारा आगे बढ़ना मेरे लिये कभी भी आश्चर्य नहीं रहा। स्कूल और कॉलेज के परिणाम तो बाद में घोषित होते थे पर मुझे पहले ही पता होता था। शायद एक शिक्षिका होने की वजह से मैं तुम्हें एक विद्यार्थी के तौर पर आँक लेती थी। स्कूल परिणाम में तो तुम अव्वल आते रहे, परंतु कॉलेज में अंकों का प्रतिशत कुछ गिर गया था। कई बार मैं विचलित हो जाती थी पर तुम हमेशा पूरे विश्वास के साथ मुझे तसल्ली देते थे कि जिन्दगी में चाहे जो भी कैरियर अपनाओगे उनमें निपुणता हासिल कर लोगे। सिम्बोसिस, पुणे से बीबीए करने के बाद जब तुमने यूके में मास्टर डिग्री करने की इच्छा जताई तो दिल व दिमाग में मिश्रित भाव थे – खुशी थी और चिंता भी। इन सभी भावों को नियंत्रित करके तुम्हें जाने की इजाजत दे दी। वहाँ दिल न लगने के बावजूद तुमने तय समय में डिग्री पूरी की। पोस्ट स्टडी वर्क वीसा के तहत एक बड़ी कंपनी में सीनियर पद पर रहकर कंपनी में बढ़िया प्रॉफेश्नल की इज्जत पाई।

 

परिवार और समाज को तुम पर बहुत गर्व हुआ। पर तुमने कुछ और ही चुना था। वहाँ से अनुभव प्राप्त कर तुम वापस भारत आ गये और अपने छोटे से शहर में  तुमने अपनी निजी कंपनी बनाई और कार्य शुरू किया। हमारे मन में भले ही थोड़ा-सा डर रहा हो कि यहाँ तुम्हारी योग्यता दब जाएगी, परंतु तुम तनिक भी शंकित नहीं रहे। तुमने अपने कार्य-कौशल से यूके, यूएसए व अन्य उन्नत देशों की कंपनियों में काम करके यह दिखा दिया है कि परिश्रम और लगन किसी शहर और देश का मोहताज नहीं होता। आज बेशक समाज और शहर के लोगों का नजरिया वो न रहा हो, जो तुम्हारे लंदनवास के दौरान था, फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उस युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा-स्त्रोत बनोगे, जो विदेशों में बसने के लिये लालायित रहती हैं।

 

तुम्हारी एक और बात मैं कभी नहीं भूल सकती। लंदन में रहते हुए तुम अक्सर कहा करते थे कि वहाँ सिर्फ पैसा है और कुछ नहीं। पर मैं तुम्हारा विचार बदलने की कोशिश करती थी। याद है एक बार मैंने तुम्हें कहा था कि तुम्हारी ताई और चाची जी साथ वाले घरों में रहते हैं पर हमें मिले हुए दो-दो हफ्ते हो जाते हैं। इस पर तुमने रुँधे हुए गले से जवाब दिया था, इवन देन यू नो ममा दे आर देयर। आधी रात को भी आवाज लगाओगे तो सब भाग कर आ जायेंगे

 

फिर मैंने एक बार कहा था कि ऐसा कैरियर यहाँ नहीं मिलेगा, तो तुम्हारा आत्मविश्वास झलक  पड़ा था कि तुम भारत में  अपना कैरियर अपने बूते पर बना लोगे। आज मुझे वो सब सच होता प्रतीत हो रहा है और अपने अनजाने भय की आशंका से  मैंने जो कुछ कहा, उस पर अफसोस होता है। आज इस पत्र के माध्यम से तुमसे अपने दिल की बात कहने और मन में दबी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिला है। भगवान का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहा है और आगे भी रहेगा।

तुम्हारी माँ,

...

शुक्रवार, 11 जून 2021

खत में छिपे जिन्दगी के सबक

🔊 (10.09)

(चार्ली चैपलीन ने १९१४ में पहली बार एक आवारा (ट्रैम्प) का रूप धारण किया था। लंबे सूट, खुली पेंट, तंग कोट, सिर पर टोपी और हाथ में छड़ी लिए उसकी यह अप्रतिम छवि ने एक सदी तक लोगों का मनोरंजन किया। इसे वन हंड्रेड इयर ऑफ लाफ्टर भी कहा गया है। यहाँ लिखा गया यह खत चार्ली चैपलीन ने अपनी बेटी जिरल्डाइन को लिखा था। जिरल्डाइन अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेत्री है, जिसने पचास से भी अधिक फिल्मों में काम किया है। पत्र का हर शब्द चार्ली की आत्मा से प्रस्फुटित हुआ प्रतीत लगता है। इस पत्र का हिन्दी में अनुवाद जंग बहादुर गोयल ने किया है।) 

 


मेरी बच्ची,

रात का समय है। क्रिसमस की रात। मेरे इस छोटे से घर की सभी निहत्थी लड़ाइयाँ सो चुकी हैं। तुम्हारे भाई और बहन भी नींद की गोद में हैं। तुम्हारी माँ भी सो चुकी है। मैं अधजगा हूँ, कमरे में धीमी सी रौशनी है। तुम मुझसे कितनी दूर हो, पर यकीन मानो तुम्हारा चेहरा यदि किसी दिन मेरी आँखों के सामने न रहे, उस दिन मैं चाहूँगा कि मैं अन्धा हो जाऊँ। तुम्हारी फोटो वहाँ मेज पर और यहाँ मेरे दिल में भी, पर तुम कहाँ हो? वहाँ सपने जैसा भव्य शहर – पेरिस में! चैम्प्स ऐलिसस के शानदार मंच पर नृत्य कर रही हो। इस रात के सन्नाटे में मैं तुम्हारे  कदमों की आहट सुन सकता हूँ। शीत ऋतु के आकाश में टिमटिमाते तारों की चमक, मैं तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ। ऐसा लावण्य और इतना सुंदर नृत्य। सितारा बनो और चमकती रहो। परंतु यदि दर्शकों का उत्साह और प्रशंसा तुम्हें मदहोश करती है या उनसे उपहार में मिले फूलों की सुगंध तुम्हारे सिर चढ़ती है तो चुपके-से एक कोने में बैठकर मेरा खत पढ़ते हुए अपने दिल की आवाज सुनना। 

 

 मैं तुम्हारा पिता हूँ जिरल्डाइन, चार्ली चैपलीन! क्या तुम जानती हो जब तुम नन्ही बच्ची थी तो रात भर मैं तुम्हारे सिरहाने बैठ कर तुम्हें स्लीपिंग ब्यूटी की कहानी सुनाया करता था। मैं तुम्हारे सपनों का साक्षी हूँ। मैंने तुम्हारा भविष्य देखा है... मंच पर नाचती एक लड़की, मानो आसमान में उड़ती एक परी...लोगों की करतल ध्वनि के बीच उनकी प्रशंसा के ये शब्द सुने हैं, इस लड़की को देखो। वह एक बूढ़े विदूषक की बेटी है, याद है उसका नाम चार्ली था

 

हाँ, मैं चार्ली हूँ! बूढ़ा विदूषक! अब तुम्हारी बारी है। मैं फटी पैंट में नाचा करता था और मेरी राजकुमारी, तुम रेशम की खूबसूरत ड्रेस में नाचती हो। ये नृत्य और ये शाबाशी तुम्हें सातवें आसमान पर ले जाने के लिये सक्षम हैं। उड़ो और उड़ो – पर ध्यान रखना कि तुम्हारे पाँव सदा धरती पर टीके रहें। तुम्हें लोगों की जिन्दगी को करीब से देखना चाहिये - गलियों-बाज़ारों में नाच दिखाते नर्तकों को देखो जिरल्डाइन कड़कड़ाती सर्दी और भूख से तड़प रहे हैं। मैं भी उन जैसा था, जिरल्डाइन उस जादुई रातों में जब तुम्हें लोरी गा-गाकर सुलाया करता था और तुम नींद में डूब जाती थी, उस वक्त मैं जागता रहता था। मैं तुम्हारे चेहरे को निहारता, तुम्हारे हृदय की धड़कनों को सुनता और सोचता, चार्ली, क्या यह बच्ची तुम्हें कभी जान सकेगी?’ तुम मुझे नहीं जानती जिरल्डाइन। मैंने तुम्हें अनगिनत कहानियाँ सुनाई हैं पर उसकी कहानी कभी नहीं सुनाई। वह कहानी भी रोचक है। वह उस भूखे विदूषक की कहानी है, जो लंदन की गंदी बस्तियों में नाच-गाकर अपनी रोजी कमाता था। यह मेरी कहानी है। मैं जानता हूँ कि भूख किसे कहते हैं। मैं जानता हूँ कि सिर पर छत न होने का क्या दंश होता है। मैंने देखा है, मदद के लिये उछाले गए सिक्कों से उसके आत्म-सम्मान  को छलनी होते हुए, पर फिर भी मैं जिंदा हूँ, इसलिये फिलहाल इस बात को यहीं छोड़ते हैं।

 

तुम्हारे बारे में ही बात करना उचित होगा जिरल्डाइन। तुम्हारे नाम के बाद मेरा नाम आता है – चैपलिन। इस नाम के साथ मैंने चालीस वर्षों से भी अधिक समय तक लोगों का मनोरंजन किया पर हँसने से अधिक मैं रोया हूँ। जिस दुनिया में तुम रहती हो वहाँ नाच-गाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आधी रात के बाद जब तुम थियेटर से बाहर आओगी तो तुम अपने समृद्ध और सम्पन्न चाहने वालों को तो भूल सकती हो, पर जिस टैक्सी में बैठ कर तुम अपने घर जाओ, उस टैक्सी ड्राईवर से यह पूछना मत भूलना की उसकी पत्नी कैसी है? यदि वह उम्मीद से है तो क्या अजन्मे बच्चे के नन्हें कपड़ों के लिये उसके पास पैसे हैं? उसकी जेब में कुछ पैसे डालना मत भूलना। मैंने तुम्हारे खर्च के लिये पैसे बैंक में जमा करवा दिये हैं, सोच समझकर खर्च करना। 

 

कभी-कभार बसों में जाना, सब-वे से गुजरना, कभी पैदल चलकर शहर में घूमना। लोगों को ध्यान से देखना, विधवाओं और अनाथों को दया दृष्टि से देखना। कम से कम दिन में एक बार खुद से यह अवश्य कहना कि, मैं भी उन जैसी हूँ। हाँ! तुम उनमें से ही एक हो बेटी!

 

कला किसी कलाकार को पंख देने से पहले उसके पैरों को लहूलुहान जरूर करती है। यदि किसी दिन तुमको लगे कि तुम अपने दर्शकों से बड़ी हो तो उसी दिन मंच छोड़कर भाग जाना, टैक्सी पकड़ना और पेरिस के किसी भी कोने में चली जाना। मैं जानता हूँ कि वहाँ तुम्हें अपनी जैसी कितनी ही नृत्यांगनाएँ मिलेंगी – तुमसे भी अधिक सुंदर और प्रतिभावान। फर्क सिर्फ इतना है कि उनके पास थियेटर की चकाचौंध और चमकीली रौशनी नहीं है। उनकी सर्चलाइट चंद्रमा है। अगर तुम्हें लगे कि इनमें से कोई तुमसे अच्छा नृत्य करती है तो तुम नृत्य छोड़ देना। हमेशा कोई-न-कोई बेहतर होता है, उसे स्वीकार करना। आगे बढ़ते रहना और निरंतर सीखते रहना ही तो कला है।      

 

मैं मर जाऊंगा, और तुम जीवित रहोगी। मैं चाहता हूँ तुम्हें कभी गरीबी का एहसास न हो। इस खत के साथ मैं तुम्हें एक चेकबुक भी भेज रहा हूँ, ताकि तुम अपनी मर्जी से खर्च कर सको। पर दो सिक्के खर्च करने के बाद सोचना कि तुम्हारे हाथ में पकड़ा तीसरा सिक्का तुम्हारा नहीं है – यह उस अज्ञात व्यक्ति का है जिसे उसकी बेहद जरूरत है। ऐसे इंसान को तुम आसानी से ढूंढ सकती हो, बस पहचानने के लिये एक नजर की जरूरत है। मैं पैसे की इसलिये बात कर रहा हूँ क्योंकि मैं उस राक्षस की ताकत को जानता हूँ।

 

हो सकता है किसी रोज कोई राजकुमार तुम्हारा दीवाना हो जाये। अपने खूबसूरत दिल का सौदा सिर्फ बाहरी चमक-दमक पर न कर बैठना। याद रखना कि सबसे बड़ा हीरा तो सूरज है जो सबके लिये चमकता है।...

 

...मैं यह भी जानता हूँ कि एक पिता और उसकी संतान के बीच सदैव अंतहीन तनाव बना रहता है, पर विश्वास करना, मुझे अत्यधिक आज्ञाकारी बच्चे पसंद नहीं हैं। मैं सचमुच चाहता हूँ कि इस क्रिसमस की रात कोई करिश्मा हो ताकि जो मैं कहना चाहता हूँ वह सब तुम अच्छी तरह समझ जाओ।  

 

चार्ली अब बूढ़ा हो चुका है, जिरल्डाइन। देर-सवेर मातम के काले कपड़ों में तुम्हें मेरी कब्र पर आना ही पड़ेगा। मैं तुम्हें विचलित नहीं करना चाहता, पर समय-समय पर खुद को आईने में देखना उसमें तुमको मेरा ही अक्स नज़र आयेगा। तुम्हारी धमनियों मेरा रक्त प्रवाहित है। जब मेरी धमनियों में बहने वाला रक्त जम जायेगा तब तुम्हारी धमनियों में बहने वाला रक्त तुम्हें मेरी याद करवाएगा। याद रखना, तुम्हारा पिता कोई फ़रिशता नहीं, कोई जीनियस नहीं, वह तो जिंदगी भर एक इंसान  बनने की कोशिश ही करता रहा। तुम भी यही कोशिश करना।

 

क्रिसमस, १९६५                                                                  ढेर सारे प्यार के साथ                                                                                                                     चार्ली

(शायद आप न जानते हों, चार्ली चैपलीन महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और उनके प्रशंसकों में से एक थे। उनकी प्रसिद्ध फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर महात्मा से प्रभावित थी।)

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शुक्रवार, 4 जून 2021

सूतांजली, जून २०२१

सूतांजली के जून अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में दरअसल एक विषय एवं धारावाहिक कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी की छठवीं किश्त है।

 

एक ही विषय पर दो लेख - सुकरात को मैंने पढ़ा और समाज से में जो देखा-सुना उससे मेरे मेरे विचार बने।

जब हमारी उम्र बढ़ने लगती है, तब हमारी प्राथमिकताएं बदलने लगती हैं। हमारी सोच और मान्यताओं में परिवर्तन आने लगता है, हमारा तन और मन कुछ अलग खोजने लगता है तब हम कैसे एक चतुर माली की तरह अपने चारों तरफ एक सुंदर, सुगंधित, निर्मल बगीचे का निर्माण और उसका रख-रखाव करें कि जो भी उस बगिया में रहे, आये और बगल से गुजरे, तो उसका दिल भी प्रसन्नता से सरोबार हो जाये।

१। जीवन कैसे जिया जाये  - मैंने पढ़ा,

२। कैसे लें बुढ़ापे में आनंद? – मेरे विचार,

और अपना चित परिचित धारावाहिक की छठी किश्त

३। कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी – धारावाहिक

 

पढ़ने के लिए ब्लॉग का संपर्क सूत्र (लिंक) (ब्लॉग में इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है): ->

https://sootanjali.blogspot.com/2021/06/blog-post.html

सुनने के लिए यू ट्यूब का संपर्क सूत्र -  

https://youtu.be/zSOqtjm6Xps