शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

मेरी नहीं, तेरी इच्छा पूरी हो

  जीवन में ऐसे अनेक क्षण आते हैं जब प्रार्थना में पूर्ण आस्था रखने के बावजूद जब प्रार्थना न सुनी जाने के कारण उसपर से हमारा विश्वास हिल जाता है। और ठीक इसके विपरीत यानी ऐसी भी अनेक घटनाएँ हैं जब प्रार्थना में विश्वास न करने वाला भी प्रार्थना करता नजर आता है और उसकी प्रार्थना सुन ली जाती है।



विचित्रा, मिशिगन के एक विशाल ग्रेनाइट चट्टान की चोटी पर चढ़ने में  लगी हुई थी। वह लगभग आधा रास्ता तय पर कर चुकी थी। ऐसी चट्टान पर पर्वतारोहण करने का यह उसका पहला अनुभव था। चट्टान के एक कगार पर खड़ी वह जरा आराम कर रही थी। जैसे ही उसने वहां से आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाया, अचानक उसका कॉन्टैक्ट लेंस आँख से निकल कर गिर गया। बहुत ढूंढा लेकिन नहीं मिलाउसके मुंह से अनायास निकल पड़ा 'बहुत बढ़िया!’ और खयाल आया - यहां मैं एक चट्टान के मुहाने पर खड़ी हूं, नीचे से सैकड़ों फीट ऊपर और इसकी चोटी से सैकड़ों फीट नीचे, और अब मुझे सब कुछ धुंधला नजर आ रहा  है।' 

          उसकी नजरें लेंस को चारों तरफ खोजती रहीं और आशा करती रही कि शायद वह लेंस इस मोड़ पर मिल जाये। लेकिन कहीं नहीं था। धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि उसके अंदर घबराहट बढ़ रही है। उसके ओंठ स्वतः प्रार्थना करने लगे। उसने धैर्य, शांति और शक्ति के लिए प्रार्थना की, और उसने प्रार्थना की कि उसे उसका कॉन्टैक्ट लेंस मिल जाए। यही प्रार्थना करती हुई वह धीरे-धीरे चट्टान की चोटी तक  पहुंच गई। वहाँ उसके साथियों ने उसके लेंस को उसकी आंख और कपड़ों पर ढूंढा। लेकिन लेंस को नहीं मिलना था, नहीं मिला। हालाँकि अब वह शांत थी क्योंकि वह चोटी तक पहुँच चुकी थी, लेकिन वह दुखी भी थी क्योंकि वह पहाड़ों की श्रृंखला के पार स्पष्ट रूप से कुछ नहीं देख पा रही थी।

          उसने फिर से भगवान से प्रार्थना की... “हे ईश्वर, आप इन सभी पहाड़ों को देख सकते हैं। आप हर पत्थर और पत्ते को जानते हैं, और आप ठीक-ठीक जानते हैं कि मेरा कॉन्टैक्ट लेंस कहाँ है। कृपया मेरी मदद करें” थोड़ी देर बाद, पर्वतारोहियों का दूसरा दल शीर्ष पर पहुंच गया। उनमें से एक चिल्लाया, 'अरे! क्या तुमलोगों में से किसी का कॉन्टैक्ट लेंस खो गया है?’

          सब अचंभित रह गये! यह हुआ कैसे?  यह काफी चौंकाने वाला किस्सा था। हाँ, किस्सा क्योंकि यह किसी भी अवस्था में सत्य नहीं हो सकता था। हुआ क्या? पर्वतारोही ने इसे क्यों और कैसे देखा? एक चींटी चट्टान के नजदीक एक टहनी के ऊपर, इस कांटैक्ट लेंस को लेकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी! उसी अवस्था में उसकी उस चींटी पर नजर पड़ी और उसने उसे वहाँ से उठा लिया।

           कथा यहाँ समाप्त नहीं होती है। क्योंकि इसके बाद जो हुआ वह यकीनन कहानी नहीं घटना है। विचित्रा के पिता एक व्यंगकार हैं।  जब विचित्रा ने उसे चींटी, प्रार्थना और कॉन्टैक्ट लेंस की अविश्वसनीय कहानी सुनाई, तो उन्होंने उस कॉन्टैक्ट लेंस को पकड़े हुए एक चींटी का कार्टून बनाया और लिखा, 'हे भगवन, मुझे नहीं पता कि आप क्यों चाहते हैं कि मैं यह चीज़ ले जाऊं। मैं इसे नहीं खा सकती, और यह बहुत भारी भी है। लेकिन अगर आप मुझसे यही चाहते हैं तो मैं इसे आपके लिए लेकर आऊंगी।"

 

          मुझे लगता है कि यह हम सभी के लिए एक अति प्रभावशाली प्रार्थना होगी, "हे भगवन!, मुझे नहीं पता कि आप क्यों चाहते हैं कि मैं यह बोझ उठाऊं, यह कष्ट झेलूँ, दुख सहूँ, मुझे इसमें कोई अच्छाई नजर नहीं आती और यह बहुत कष्टप्रद भी है। लेकिन, अगर आप चाहते हैं कि मैं इसे उठाऊं, सहूँ, झेलूँ, तब, यह मैं करूँगा। मुझे कोई शिकायत नहीं"।

 

         भगवान योग्य लोगों को नहीं बुलाते, वह जिन्हें बुलाते हैं उन्हें योग्य बनाते हैं।

 

          सामान्य जीवन में प्रार्थना ईश्वर के साथ मानवीय संबंध के प्रमुख तत्वों में से एक है और अक्सर इसका उत्तर दिया जाता है लेकिन हमेशा नहीं; जब इसका उत्तर नहीं दिया जाता है तो धार्मिक व्यक्ति ईश्वर में अपना विश्वास बनाए रखता है और समझता है कि उत्तर देना ईश्वरीय इच्छा नहीं थी

 

          निःसंदेह सभी प्रार्थनाएँ नहीं सुनी जातीं - यदि सभी की प्रार्थनाएँ सुनी गईं, चाहे वे कितनी ही सच्ची क्यों न हों, तब दुनिया वर्तमान से भी ज्यादा विनाशकारी होतीजैसे हर ईश्वरीय प्रार्थना हमेशा तुरंत नहीं सुनी जाती है, वैसे ही, आस्था भी हमेशा तुरंत उचित नहीं होती है। एक चीनी कहानी में, एक देवता को किसी भक्त पर क्रोधजाता है, तब वह उसे श्राप देता है "तुम्हारी सभी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जाए"। यानी सभी मानवीय प्रार्थनाओं का सुना जाना वरदान नहीं अभिशाप है।

 

 श्रीअरविंद कहते हैं :

जहाँ तक प्रार्थना का प्रश्न है, कोई कठोर नियम नहीं बनाया जा सकता। कुछ प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जाता है, सभी का नहीं। आप पूछ सकते हैं कि फिर सभी प्रार्थनाओं का उत्तर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? लेकिन सही प्रश्न है उन्हें क्यों दिया जाना चाहिए? यह कोई मशीनरी नहीं है: स्लॉट में प्रार्थना डालें और अपना अनुरोध प्राप्त करें। इसके अलावा, उन सभी विरोधाभासी चीजों पर विचार करते हुए जिनके लिए मानव जाति एक ही क्षण में प्रार्थना कर रही है, यदि ईश्वर को उन सभी को प्रदान करना पड़ा तो वह एक अजीब स्थिति में होगा; चल नहीं सकता।  प्रार्थना में जो महत्वपूर्ण है, वह प्रतिक्रिया नहीं बल्कि संबंध है, निरंतर प्रार्थना हमें अपने भीतर के ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत और अंतरंग संबंध विकसित करने में मदद करती है। यदि प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जाता है, तो ठीक है। यदि उनका उत्तर नहीं दिया जाता है तो हम कहते हैं "मेरी नहीं, तेरी इच्छा पूरी हो" इस विश्वास के साथ कि वह हमसे बेहतर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है 

 

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शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

जीविका और जीवन

 जीविका और जीवन

          अच्छी से अच्छी परिस्थिति में भी एक महा दुखी है और दूसरा बुरी से बुरी परिस्थिति में भी सुखी है। राम और दशरथ एक ही परिस्थिति में हैं – एक दुख में प्राण त्याग करता है और दूसरा मुदित मन से वन-गमन करता है। आज हम सुखी हैं क्योंकि कोई भी छोटी बात हमारे मन में रुकी नहीं। छोटी बात ही हमें दुखी करती है।



          जिस आचरण से हमारा मंगल हो उसे मंगला चरण कहते हैं। जैसे-जैसे हमारी बाहरी भूख कम होती जाती है हमारी अंदर की भूख बढ़ने लगती है। हम तैयार होते हैं – मृत्यु के लिए नहीं बल्कि यह जानने के लिए कि मृत्यु होती ही नहीं। हमें यम नहीं ब्रह्म दिखने लगता है।

          आज 50 का वेतन मिल रहा है। एक दिन अचानक बताया जाता है कि अगर यह कार्य दो महीने में पूरा कर लेते हैं तब 125 का वेतन मिलेगा। और हम आनन-फानन में मनुष्य से बैल बन जाते हैं और कोल्हू के बैल की तरह चक्कर लगाने लगते हैं। 125 का वेतन हो गया  – तब और कम समय में और ज्यादा काम, और ज्यादा वेतन। यानी बैल बने रहिए। 50 में सुखी जीवन जी रहे थे, अब अगर वापस उसी 50 पर आ भी जाएँ तो.... सुख नहीं दुख ही मिलेगा। यानी बैल बने रहिए, निजात नहीं है। यह वह चक्र है जो कभी समाप्त नहीं होता, जीवन समाप्त हो जाता है।  हम लगातार भविष्य का अहम खरीदते रहते हैं। नया-नया अहम, नये-नये ऊंचे मूल्यों पर।

          अध्यात्म की एक बड़ी विचित्रता है। मार खाना भी सत्संग हो सकता है। रामायण में प्रसंग है। हनुमान वायु मार्ग से लंका पहुँच गये। लंका में  प्रवेश करने की विधि खोज रहे हैं। द्वार पर लंकिनी रास्ता रोके खड़ी है। कोई रास्ता न पाकर लंकिनी को मुष्टिका प्रहार करते हैं। प्रहार से लंकिनी को मूर्छा आ गई, रक्त निकल आया। लेकिन मूर्छा से उठी तो न आह किया-न ओह, न क्रोध आया। हनुमान ने भी कुछ कहा नहीं। लेकिन उठते ही लंकिनी ने कहा बड़ा सत्संग हुआ। मुष्टिका प्रहार ने उसे जगा दिया, उसे झकझोर दिया। अगर आप सजग हैं तो विपरीत परिस्थिति में भी अच्छा सत्संग हो सकता है।  हनुमान के उस प्रहार ने उसके अहंकार का नाश किया और यह समझ आई कि लंका के अहंकार के नाश का समय आ गया है। अगर यह सत्संग नहीं तो फिर किसे सत्संग कहेंगे?

          कोई खिलाना चाहे और हम न खाएं तो उसके खिलाने की चाह कम होने लगती है। कोई सहायता करना चाहे और हम उसकी सहायता न लें तो उसकी सहायता करने कि चाह कम होने लगती है। संबंध तब बनता है जब दोनों तरफ प्यास लगती है। अतः यह आवश्यक है कि कभी-कभी भूख न रहने पर भी खाएं, जरूरत न होने पर भी सहायता लें। इससे सिर्फ आपसी संबंध ही नहीं बनते बल्कि समाने वाले की खिलाने और सहायता करने की प्रवृत्ति को भी सहारा मिलता है। क्या यह सत्संग नहीं है?

          बाजार से लाई हुई मूर्ति-फोटो को रोज-रोज नहलाने, शृंगार करने, खिलाने से हम उसमें प्राण फूँक देते हैं। हमें हठी होना पड़ेगा। शिव ने सती का त्याग किया, उसे बगल में नहीं सामने बैठने कहा। लेकिन पार्वती की प्यास ने उन्हें मजबूर कर दिया, उन्हें भी अपने संकल्प का त्याग कर पार्वती को बगल में स्थान देना पड़ा।  

          यह मेरी जिंदगी है, इस पर मेरा अधिकार है! क्या यह आपकी है। जिस जिंदगी को अपनी इच्छा से प्रारम्भ नहीं कर सकते, जिस जिंदगी को आप अपनी इच्छा से समाप्त नहीं कर सकते, वह कितनी आपकी है? हमारे इस जीवन में अपरिमित शक्ति है, उसे हम संभाल ही नहीं पाते। अतः अपनी उस अपरिमित शक्ति को ईश्वर से जोड़ दीजिये, अपने से नहीं। वह हमारी शक्ति को संभाल सकता है।  

          दो प्रकार की संस्थाएं विश्व भर में हैं, हर देश में, हर शहर में, हर कस्बे में। एक सिखाती है जीवन और दूसरी सिखाती है जीविका। विशेष बात यह है कि जीवन सीखने वाली संस्थाएं जीविकोपार्जन भी सिखाती है, लेकिन जीविका सिखाने वाली संस्थाएं जीवन जीना नहीं सीखतीं। कभी जीवन सिखाने वाली संस्थाएं ही थीं, उससे ही दोनों, जीवन और जीविका, चल जाती थीं। लेकिन जैसे-जैसे लालच बढ़ा जीवन सीखने वाली संस्थाएं चाहरदीवारी में घिरने लगीं और जीविका सीखने वाली संस्थाएं बाजार में आ गईं। जीवन सिखाने वाली संस्थाओं को धार्मिक संस्था, आश्रम, धर्मस्थल, वृद्धों का घर, आदि नाम दिये गए हैं। उन्हें मिटाने के लिए पूरा प्रयत्न करने के बाद भी वे फल-फूल रही हैं क्योंकि जीना तो है ही और जीना तो वही सिखाती है। जीविका सिखाने वाली संस्थाएं  तो मानव को बैल बना रही हैं। 6-7 अंको वाली नौकरी तो बीते समय की बात हो गई है अब तो बातें 8-9 अंकों वाली नौकरी की होती है। कितनों को यह वेतन मिलता है? कक्षा में प्रथम कितने विद्यार्थी आते हैं? क्या बाकी का जीवन व्यर्थ है?

          जीवन सिखाने वाली संस्थाओं को आपका जीवन (समय) चाहिए और जीविका सिखाने वाली संस्थाओं को आपकी जीविका (धन) चाहिए। और यह धन भी 7-8 अंकों की। कम अंकों की शिक्षा से तो कुछ मिलने वाला नहीं सिर्फ पसीना बहाते रहिए। बड़ी शिक्षा लेकर बड़ी जीविका चाहिए तो कर्ज लीजिये, कर्ज यानी गुलामी। यह एक नया चक्र-व्यूह है, जिसमें अंदर जाने का तो रास्ता है लेकिन निकलने का ........?  

 गोलमाल के गाने के ये पंक्तियाँ याद आ रही है। - 

          गोल माल है भइ सब गोल माल है, हर सीधे रस्ते की एक टेढ़ी चाल है

                    भूख रोटी की हो तो पैसा कमाइये, पैसा कमाने के लिये भी पैसा चाहिये
                              गोल माल है भइ सब गोल माल है, हर सीधे रस्ते की एक टेढ़ी चाल है

          जीवन बनाना और जीविका बनाना दो अलग-अलग चीजें हैं। हम प्रायः जीविका बनाना ही जीवन बनाना मान लेते हैं और पूरी गड़बड़ी यहीं से हो जाती है। जीविका बाहर का अस्तित्व है और जीवन अपने भीतर का। सुदामा की, राम की जीविका अच्छी नहीं थी लेकिन जीवन अच्छा था। रावण की जीविका अच्छी थी लेकिन जीवन नहीं।  जीविका अच्छी हो तो आवश्यक नहीं की जीवन अच्छा होगा लेकिन अगर जीवन अच्छा होगा तो जीविका की परवाह नहीं होगी।  

          पहले अकाल आता है, पीछे सुकाल। पहले लू की जलती हुई हवाएं आती हैं, फिर बरखा की ठंडी फुहार। पहले भूख आती है, फिर रोटी। पहले रात आती है, पीछे दिन। प्रकृति का यही नियम है और कायदा भी। जीवन अच्छा बनाइये और धीरज रखिए। जीविका अच्छी बनाने के लिए धन चाहिए और जीवन अच्छा बनाने के लिए समय और अनुभव।

          पौष्टिक आहार का फैशन है और पौष्टिक विचार का अकाल। पौष्टिक विचारों का सावन लाइये और फिर जीवन को फलता-फूलता देखिये।  

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शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

सूतांजली अगस्त 2023


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