शुक्रवार, 24 मार्च 2023

लालच?

 एक गाँव में एक बढ़ई रहता था। गाँव में काम-धंधा ज्यादा था नहीं, अतः काम की तलाश में वह दूर किसी शहर में पहुंचा। वहाँ उसकी मुलाक़ात एक सेठ से हुई और उसे उसके यहाँ काम मिल गया। एक दिन काम करते-करते अचानक उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के काम करना संभव नहीं था और अपना गाँव दूर होने के कारण वह वहाँ वापस लौटना नहीं चाहता था। वह शहर के नजदीक ही एक गाँव में पहुंचा। खोज-बीन करने से उसे एक लोहार का पता चला। उसने लोहार से एक अच्छी आरी बना देने की विनती की। लोहार सहर्ष तैयार हो गया, लेकिन उसने बताया कि इसमें थोड़ा वक्त लगेगा और उसे अगले दिन आने के लिये कहा। लेकिन बढ़ई को तो जल्दी थी। उसने कहा कि वह कुछ पैसे अधिक ले-ले मगर आरी अभी बना कर दे-दे। लेकिन लोहार ने मना कर दिया और उसे समझाया, बात पैसे की नहीं है भाईअगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो औज़ार बनने में कमी रह सकती है। मैं औजार बनाने में कभी भी कोई कमी नहीं रखता।"

          बढ़ई को बात समझ आ गई वह तैयार हो गया। अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया। आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम करने लगा। बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रशंसा की। सेठ ने आरी को करीब से देखा। उसे ज्यादा समझ तो नहीं थी लेकिन वह यह समझ गया कि इसमें हुनर तो है।

इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?” सेठ ने बढ़ई से पूछा।

दस रुपये!

सेठ ने मन-ही-मन सोचा कि इतनी अच्छी आरी तो शहर में तीस रुपये में आसानी से बिक जायेगी। क्यों न उस लोहार से ऐसी आरियाँ बनवा कर शहर में बेची जाये।

          अगले ही दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन, आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे। लेकिन लोहार ने उसकी शर्त मानने से इंकार कर दिया। सेठ ने कुछ सोच कर कहा, ठीक है, मैं  तुम्हें हर आरी के पन्द्रह रूपये  दूंगा और तुम जितनी भी आरी बनाओगे मैं सब खरीद लूंगा, अब तो मेरी शर्त मंजूर है।

          लेकिन लोहार तब भी तैयार नहीं हुआ और कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य और अपने ग्राहक खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम और काम से संतुष्ट हूँ। मुझे इससे ज्यादा कीमत नहीं चाहिए।

          बड़े अजीब आदमी हो, भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?” व्यापारी आश्चर्य से बोला।

          लोहार से कहा,“आप मुझसे आरी लेंगे फिर मुंह मांगे दामों पर उसे बेचेंगे। लेकिन मैं किसी के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर लालच करूँगा तो मैं चैन से न सो सकूँगा। किसी-न-किसी रूप में मुझे इसका दंड भी भोगना पड़ेगा। इसलिए आपका यह प्रस्ताव मुझे स्वीकार नहीं है।


          

सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है। वह वापस चला आया।

          अपने हित से ऊपर उठ कर दूसरे लोगों के बारे में सोचना इंसानियत है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका जरा सा लालच बहुत से ज़रूरतमंद लोगों के शोषण का जरिया साबित होगा। शोषण करने वालों की शृंखला इसी प्रकार बनती है। वह सेठ के लालच में नहीं पड़ा। हर शोषक कहीं--कहीं शोषित भी है। अगर हम शोषण करना बंद करें तो शोषित होना भी बंद हो जाएंगे।

          मुझे याद आ रही है बचपन में पढ़ी एक कहानी। दो भोजनालय थे।  पहले भोजनालय में  भोजन करने का कोई मूल्य नहीं लगता था, लेकिन अंदर प्रवेश करने के पहले हथेली पर एक लंबी चम्मच इस प्रकार बांध दी जाती थी कि चम्मच मुँह तक नहीं पहुंचती। स्वादिष्ट पकवान मेज पर पड़े होते, उससे निकलती सुगंध से भूख जाग्रत हो जाती और लोग खाने पर टूट पड़ते। चम्मच भरते लेकिन यह क्या, चम्मच के लंबे होने के कारण पकवान उठा तो लेते लेकिन कौर किसी भी तरह मुंह तक नहीं पहुँचता। लोग तरह-तरह से प्रयत्न करते, लेकिन किसी भी अवस्था में खा नहीं पाते। कोशिश करने के चक्कर में सब भोजन वहीं मेज पर, जमीन पर गिर जाते। कई आसमान में, अगल-बगल उछाल कर मुंह में डालने की कोशिश करते, लेकिन खाना कभी नाक पर, माथे पर, आँख पर, गालों पर, कपड़ों पर गिरता लेकिन मुंह में नहीं जाता। कभी-कभी तो अपना उछला हुआ भोजन  कोई और अपने मुंह में लपक लेता, और बस फिर क्या था उन दोनों में मार-पीट हो जाती। चारों तरफ शोर-शराबा, कलह, गंदगी, अफरा-तफरी मची थी और  खाना किसी को नहीं मिल रहा था।

          बगल में ही एक और भोजनालय था। वहाँ भी नियम वही था, और पैसे भी लगते। सब के हाथों में चम्मच बंधी होती। लेकिन यहाँ का वातावरण एकदम भिन्न था। शांति थी, स्वच्छता थी, प्रेम-सौहार्द-आनंद और खुशी का माहौल था। सब  शांति से भोजन कर रहे थे। बात यह थी कि यहाँ कोई खुद नहीं खा रहा था सब एक दूसरे को खिला रहे थे। पहले कमरे में दानव थे दूसरे में देव। पहले में स्व था दूसरे में सर्व’, पहले में मैं था दूसरे में हमदूसरों को खिलाने से स्वयं को भी मिलता है।

          आप शायद यही सोच रहे हैं कि सब अपनी-अपनी  सोचते हैं कोई दूसरे की परवाह नहीं करता। कोई बात नहीं, दूसरों को सोचने दीजिये, आप प्रारम्भ कीजिये, थोड़ा धैर्य रखिए और फिर देखिये आपको दुनिया बदली-बदली नजर आएगी। आगे बढ़ कर दूसरों के बारे में सोचना प्रारम्भ कीजिये। शोषण करने के अनेक तरीके हैं, लेकिन सब का मूल है एक ही है लालच – मूल्य लेना ज्यादा-से-ज्यादा, देना कम-से-कम।

          अगर ध्यान से देखा जाए तो लोहार की तरह ही हम में से अधिकतर लोग जानते हैं कि कब हमारे स्व की वजह से सर्व का  नुकसान होता है। पर यह जानते हुए भी हम दूसरों को कष्ट में डालते हैं। यह  शृंखला, कब और कैसे टूटेगी? कब तक हम दूसरों के और दूसरे हमारे शोषण का कारण बनते रहेंगे? हमें अपना बर्ताव बदलना है। कोई नहीं बदलता का साथ छोड़ उनका साथ देना होगा जो बदलते हैं। बाकी लोग क्या करते हैं इसकी परवाह किये बगैर हमें खुद ये निर्णय करना होगा – स्व के बदले सर्व की भावना अपनानी पड़ेगी। ठंडी, शीतल बयार तो सर्व से ही चलेगी स्व से तो लू और आँधी ही चलेगी। शोषण तो सर्व से ही रुकेगा स्व से नहीं। शोषित होना बंद करना है तो शोषण करना बंद करें। To stop getting exploited, stop exploiting.  

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शुक्रवार, 10 मार्च 2023

धन की शक्ति

 

आपसी प्रेम, सौहार्द, भाईचारा

और रंगों के महापर्व होली की

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

रंगों का यह त्यौहार आप सभी के जीवन को

सुख, समृद्धि और अपार खुशियों

के रंग से भर दे।

धन की शक्ति

एक कहानी है, बहुत पुरानी। आपने भी जरूर सुनी या पढ़ी होगी। कहानी इस प्रकार है :

          किसी जमाने में एक धर्मपरायण, सत्यनिष्ठ, धार्मिक, न्यायप्रिय राजा था। उसकी प्रजा उसे बहुत प्यार करती थी और राजा भी उन्हें अपने बच्चों के समान ही प्यार करता था, उनके दुःख-दर्द का ध्यान रखता था। राजा को अपने गुरु पर भी अगाध श्रद्धा थी और आये दिन वह उनके आश्रम में, जो उसके शहर के बाहर ही था, सलाह मशविरा करने चला जाया करता था। उसे आश्रम का वातावरण सात्विक, शांत और मनमोहक लगता। धीरे-धीरे उसके मन में वैराग्य पैदा होने लगा और राज-पाट छोड़ कर गुरु के पास उसी आश्रम में रहने का मन होने लगा। लेकिन  इसके पहले, आवश्यकता थी एक योग्य व्यक्ति की जो उसके राज्य और प्रजा को सँभाल ले और उसी की तरह प्रजा को प्यार करे। राजकुमार अभी छोटा था और अन्य किसी को भी इस पद के उपयुक्त नहीं पा रहा था। उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी। आखिर उसने निश्चय किया कि इस संबंध में अपने गुरु से ही चर्चा करूँ और तुरंत वह उनके आश्रम में पहुँच गया।

          राजा को देखते ही गुरु समझ गये कि राजा किसी उलझन में हैं। गुरु के पूछने पर राजा ने मन की बात बताई और पूछा, मैं एक योग्य व्यक्ति कहाँ से लाऊं?” गुरु ने मुसकुराते हुए पूछा, “तुम्हें कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा?”

नहीं गुरुदेव।”

“मेरी नजर में एक व्यक्ति है”, गुरु ने कहा।

“कौन है गुरुदेव, तुरंत बताएं। आपका बताया हुआ व्यक्ति निश्चित रूप से इस कार्य के लिए उपयुक्त होगा, मैं उसे अविलंब राजा बना कर आपके पास आ जाऊंगा”।

गुरु ने कहा, “विचार कर लो, अगर तुमको लगता है कि मैं तुम्हारे राज्य और प्रजा को अच्छी तरह संभाल सकता हूँ, तो मैं इस कार्य के लिए तैयार हूँ।”

राजा को सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और बोल पड़ा, आप!, आप सँभालेंगे इस राज्य को?”

“नहीं! अगर तुमको लगता है कि मैं नहीं सँभाल पाऊँगा तो कोई बात नहीं......”, गुरु ने कहा।

राजा बीच में ही बोल पड़ा, “नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है। मुझे इससे बढ़िया व्यक्ति कहाँ मिलेगा। लेकिन आप इसे संभालेंगे कैसे?

गुरु ने कहा, “मेरी छोड़ो तुम बताओ, तुम क्या करोगे?”

अब राजा सोच में पड़ गया और थोड़ा विचार कर बोला कि मैं कोई भी व्यापार कर लूँगा।

“लेकिन उसके लिए धन कहाँ से लाओगे?

“मैं राज कोश से कुछ धन ले लूँगा।”

“अरे वाह! ऐसे कैसे ले लोगे, मैं तो तुम्हें कुछ भी नहीं दूँगा।”

“मैं कहीं नौकरी कर लूँगा”, राजा ने कहा।

गुरु ने फिर पूछा, “तुम राजा थे, एक राजा को नौकरी देने की हिम्मत कौन करेगा?”

राजा को इसका उत्तर नहीं मिला, वह मौन हो गया।

तब गुरु ने कहा, “मेरे पास एक नौकरी है, राजा की, करोगे?

राजा मुसकुरा उठा। उसे गुरु की बात समझ आ गई। अब वह मालिक नहीं कर्मचारी था। उसे अब अपने कंधों पर बोझ महसूस नहीं हो रहा था। और अब वह निश्चिंत होकर राज्य का सारा कार्य गुरु की सलाह से चलाने लगा।

यह तो थी कहानी, लेकिन ऐसी सत्य घटनाएँ भी हैं। ऐसे लोगों से आप भी मिले होंगे और सुने भी होंगे। क्या आप कभी इसकी चर्चा किसी से करते हैं? अगर नहीं, तो नियम बनाइये, सकारात्मक बातें-घटनाओं की चर्चा कीजिये। खैर मैं अपने सीमित परिचय में परिचित हूँ ऐसी एक आत्मा से, आपलोगों में से कई लोग उससे परिचित भी होंगे, उन्हीं की चर्चा करता हूँ-

          आजादी के पूर्व। उनका बड़ा व्यापार था। देश के अनेक शहरों में उनका व्यापार फैला हुआ था। दिल्ली, कलकत्ता, पटना, इलाहाबाद, बनारस, लखनऊ, कानपुर, मेरठ, आगरा, देहरादून, सतना, कटनी, मैहर आदि में उनका कार्यालय था। एक बार भारत भ्रमण पर निकले। जब वे दक्षिण भारत में घूम रहे थे और पांडिचेरी के पास से गुजरे तो किसी ने बताया कि वहाँ एक बड़ा और अच्छा आश्रम है, जाना चाहिए। और बस वे पहुँच गए पांडिचेरी के श्रीअरविंद आश्रम में। इसके पहले उन्होंने उसका नाम नहीं सुना था और-तो-और उसे चला भी रही है एक विदेशी महिला, उनका पूरा जोश ही समाप्त हो गया। अनिच्छा से ध्यान-कक्ष में पहुंचे और वहाँ उन्हें दर्शन हुए श्रीमाँ के। और श्रीमाँ के प्रति ऐसे आकर्षित हुए कि बार-बार उनसे मिलने दिल्ली से पांडिचेरी जाने लगे। आखिर उनसे रहा नहीं गया और निश्चय किया कि पूरे व्यापार को समेट-बेच कर पांडिचेरी श्रीमाँ के पास ही चला जाऊँ। विचार किया ऐसा करने के पहले माँ को बता तो दूँ? पहुँच गए पांडिचेरी माँ के सामने और अपनी मंशा बताई। उसके बाद का वाकया उन्हीं के शब्दों में -   

        माताजी ने ज़ोर से कहा- "नहीं ! भगवान के काम के लिए धन एक बहुत बड़ी शक्ति है । इस समय लाचारी से संसार का सब व्यापार और धन आसुरिक शक्तियों के हाथ में है और तुम जो एक छोटा-सा व्यापार चला रहे हो, बेच देने के बाद वह भी आसुरिक शक्तियों के हाथ में चला जायेगा । यदि तुम इसे नहीं चला सकते तो इसे मैं स्वयं चलाऊँगी।"

    

         उसके बाद फिर वह व्यापार नहीं बेचा गया, श्रीमाँ की सलाह से वे पूरे व्यापार का संचालन करने लगे। आज, उसी धन की शक्ति से श्रीअरविंद आश्रम दिल्ली शाखा, मदर्स इंटरनेशनल स्कूल और मिराम्बिका जैसे प्रतिष्ठान खड़े हैं।

          जैसा कि श्रीमाँ ने कहा धन एक बहुत बड़ी शक्ति है आज हम कुछ पैसों के लालच में इस शक्ति को असुरों के हाथ में देने में नहीं हिचकते। हम यह नहीं समझते कि इस प्रकार हम ही असुरों को शक्तिशाली बना रहे हैं। मौके के फायदा उठा कर, कमजोरों से, धन का लालच देकर, ये असुर उन शक्तियों को बटोर रहे हैं। धन के बजाय अगर वे बाहुबल दिखाकर आपसे लें तो क्या आप दे देंगे? ये असुर अब समझ गए हैं कि बाहुबल के बदले धन-बल से शक्ति जल्दी और आसानी से बटोरी जा सकती है। एक बार ये शक्तियां बटोर कर जब बलवान हो जाएंगे तब फिर आप इन्हें कैसे रोकेंगे? आज तो आप कह रहे हैं कि वे हमें ज्यादा धन दे रहे हैं, देवता उतना नहीं देते, हमें क्या? क्या आप अपनी संपत्ति अपने बेटे को छोड़ किसी दूसरे के बेटे को केवल इसलिए देंगे क्योंकि वह ज्यादा धन देने तैयार  है?  लेकिन कल जब वे ही इसी शक्ति से बलवान होकर आपकी मान-मर्यादा-लक्ष्मी-पद-इज्जत-धन-संपत्ति सब लूट ले जाएंगे तब आपको बचाने कौन आयेगा? असुरों के हाथ में शक्ति मत जाने दीजिये, अगर कोई लाचार है तो उसकी कैसे मदद हो सकती है? इस बात पर विचार कीजिये कि कैसे उनकी मदद की जा सकती है, और उसे मदद कीजिये। देते समय सुपात्र और कुपात्र का ध्यान रखें, हर समय इस पर विचार कीजिये। इस शक्ति के हस्तांतरण को न सरकार रोक सकती है, न कानून, न पुलिस। इसे एक और केवल एक ही व्यक्ति रोक सकता है और वह और कोई नहीं बल्कि वे हैं :                                             आप खुद



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यूट्यूब  का संपर्क सूत्र à

https://youtu.be/Zvr-YeQkApM

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

सूतांजली मार्च 2023

 


सूतांजली के मार्च अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में हैं :

१। नैतिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक दृष्टि   -      मैंने पढ़ा

नैतिक दृष्टिकोण आए आध्यात्मिक दृष्टि का भेद

२। सच्चिदानंद स्वरूप     -    मेरे विचार

क्या इस स्वरूप के जब दर्शन होते हैं आप पहचान पते हैं?

३। छोटों से भी सलाह लें       -      संस्मरण, जो सिखाती है जीना

श्री लाल बहादुर शास्त्री के संस्मरण

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/2v0wdRQX1Yg

 

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2023/03/2023.html

गुरुवार, 2 मार्च 2023

सूतांजली फरवरी 2023

सूतांजली के फरवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-



इस अंक में हैं महात्मा की पुण्य तिथि पर :

१। अगर्चे आज गांधी होते तो................?         मेरे विचार

जितना आसान है यह कहना :

अगर गांधी होते तो ........           अगर गांधी नहीं होते तो.........

उतना ही कठिन है इसका अर्थ समझना।

२। उपकार मानो, एहसान नहीं       संस्मरण  - जो सिखाती है जीना

क्या फर्क है उपकार और अहसान में

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/Q9mpYEvbleY

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2023/02/2023.html