बुधवार, 1 नवंबर 2017

सूतांजली, नवंबर २०१७

सूतांजली                                                    ०१/०४                             ०१.११.२०१७
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मंथन
कुछ समय पहले की एक घटना है। कुछ समय, यानि कई एक वर्ष। एक पारिवारिक उत्सव पर हमारा पूरा परिवार जमा था। युवाओंबच्चों, बच्चियोंबहुओं का एक झुंड एक तरफ बैठा था। उसीके समीप हम बुजुर्ग भी बैठे बतिया रहे थे। आदतन मेरा मन जल्दी से बुजुर्गों के बीच कम लगता है। अत: बैठा भले ही उनके साथ था लेकिन मेरे कान बगल में बैठे युवाओं की बातों में घुसपैठ कर रहे थे।
आजकल चलते फिरते दुकानों में हर समय गरमा गरम सामान खाने को मिल जाता है, एक ने कहा।
हाँदुकानों में माइक्रोवेव ओवेन रहता है। जो भी मांगो हाथों हाथ गरम करके देते हैंदूसरे ने टिप्पणी की।
दूध का भी कितना आराम हो गया है। दिन भर जब चाहो एकदम ताजा दूध मिल जाता हैतीसरी ने कहा।
मुझसे रहा नहीं गया और मैं उस दल की ओर मुखातिब हुआ, “मुझे एक संदेह है। गरम खाना किसे कहते हैं? उसे जिसे अभी पकाया गया हो या उसे जिसे अभी फिर से गरम किया गया हो?
एक सन्नाटा पसर गया। इसका फायदा उठाते हुवे मैंने दूसरा प्रश्न दाग दिया, “तुम लोग ताजा दूध की बात कर थे।  ताजा दूध किसे कहते हैं जिसे कुछ समय पहले दूहा गया हो? या गुजरात से अभी कोलकाता पहुंचा हो?या वितरक के हाथों घूमता हुआ दुकान में आया हो? या अभी जिसे हम दुकान से खरीद कर लाये हों? धरोष्ण दूध किसे कहते हैं, जानते हो?
इस बार सन्नाटे को चीरती हुई एक टिप्पणी आई, “अंकल, अब आप बूढ़े हो गये हैं, अपनी कुर्सी वापस उधर घुमा लीजिये।
शायद कुछ समय बाद बच्चे यह भी कहने लगें कि वे अमूल का दूध पीते हैं
परिभाषाएँ बदल गई हैं। मान्यताएँ विस्मृत हो गई हैं। सुविधायेँ  हावी हो गई है। पूरा संसार मुट्ठी भर परिवारों की जागीर हो गई है। हम अनजाने वही देखने, सोचने और करने को मजबूर हैं जो वे चाहते हैं। गांधी ने इसी के मद्देनजर मशीनों का बहिष्कार करने का सुझाव दिया था। उन्हे कार्य की सुविधा से नहीं संसाधनों के केंद्रीय करण पर एतराज था। फोर्बेस के आंकड़ों के अनुसार विश्व का ५० प्रतिशत संसाधन सिर्फ ८५ व्यक्तियों के हाथों में हैं।


                                                                                                 मैंने पढ़ा
प्रश्न पूछो ध्यान से
अहा जिंदगी, जुलाई २०१७आंद्रे मोक्विर्ज़, पृ. ७९
जीवन की निराशाओं का एक बड़ा कारण यह है कि हम ऐसे प्रश्नों के समाधान ढूंढते हैं, जो प्रश्न स्वयं ही गलत हैं। हमारा प्रश्न होता है, “मुझे ऐसा प्रेम पात्र कैसे मिले, जो सब प्रकार से सुंदर हो, निर्दोष हो और निस्वार्थ हो?ऐसी कौन-सी व्यवस्था हम खोज निकालें कि हमारे देश में सदा के लिए सब प्रकार कि समृद्धि और शांति स्थापित हो जाए? “मैं कौन सा पेशा अपनाऊँ कि ऊंचे से ऊंचे पद पर पहुँच जाऊँ? जो व्यक्ति अपनी समस्याओं को इस रूप में रखते हैं, उनके लिए कोई भी व्यक्ति संतोषप्रद समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकता। तो फिर प्रश्न का सही रूप क्या हो? यह मैं ऐसा प्रेम पात्र कहाँ पाऊँ जो मेरी ही तरह कमजोरियाँ रखता हो, किन्तु जिसके साथ पारस्परिक सद्भावना के आधार पर प्रगाढ़ मैत्री का संबंध स्थापित किया जा सके, जो हमें संसार के आघातों को सहने की  शक्ति दे? मेरा देश कौन से गुण प्राप्त करने के लिए कठोर श्रम करे कि उसका अस्तित्व खतरे में न पड़े?मैं अपना समय और शक्ति किन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अर्पित करूँ कि आत्म विश्वास के साथ उनकी प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकूँ।   
  गीता के (४.३४)   श्लोक का हरि गीतामें अनुवाद है
सेवा विनय प्रणिपात पूर्वक प्रश्न पूछो ध्यान से ।
उपदेश देंगे तब ज्ञान का तत्व-दर्शी ध्यान से ।।

परवरिश बच्चों को लीडर बनाओ
अहा! जिंदगी, सितंबर २०१७ पृ २९, डॉ.अबरार मुल्तानी
थॉमस एल्वा एडिसन प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे। एक दिन स्कूल से घर आए और माँ को एक कागज देकर कहा,टीचर ने दिया है। उस कागज को पढ़कर माँ की आँखों में आँसू आ गए। एडिसन ने पूछा क्या लिखा है? आँसू पोंछ कर माँ ने कहा इसमें लिखा है – “आपका बच्चा जीनियस है। हमारा स्कूल छोटे स्तर का है और शिक्षक बहुत प्रशिक्षित नहीं है, इसे आप स्वयं शिक्षा दें।कई वर्षों बाद माँ गुजर गई। तब तक एडिसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन चुके थे।
एक दिन एडिसन को अलमारी के कोने में एक कागज का टुकड़ा मिला। उन्होने उत्सुकतावश उसे खोल कर पढ़ा। यह वही कागज था, जिसे टीचर ने दिया था। उसमें लिखा था, “आपका बच्चा  बौद्धिक तौर पर कमजोर है। उसे स्कूल न भेजें।
एडिसन घंटो रोते रहे .... फिर अपनी डायरी में लिखा, “एक महान माँ ने बौद्धिक तौर पर कमजोर बच्चे को सदी का महान वैज्ञानिक बना दिया।
महान थॉमसन एल्वा का उदाहरण यह बताता है कि हमारे बच्चों में छुपी प्रतिभा को बच्चे के अभिभावक ही समझ पाते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने उत्तरदायित्व को समझें। न दूसरों पर निर्भर हों और न अपनी इच्छा उनपर थोपें। खुद बच्चों पर ध्यान दें और उनमें छिपी प्रतिभा को निखारें। 

                                            मैंने सुना
श्रद्धेय आचार्य श्री नवनीत जी
श्री अरविंद आश्रम, दिल्ली शाखा, नैनीताल, जून २०१७
प्रश्न : क्या पूजा पाठ एक घंटे करना आवश्यक है?
उत्तर: ४८ मिनट का एक मुहूर्त होता है। एक मान्यता है कि आप जब कोई भी कार्य करते हैं तो उसे कम से कम एक मुहूर्त तक करें ताकि उस कार्य की गहराई तक पहुंचा जा सके। या फिर आप कबड्डी की तरह भी कर सकते हैं। सांस बंद कर दौड़ते हुवे आए और छू कर वापस भाग लिए। ऐसे भी दर्शन हो सकता है और पूजा भी। लेकिन इसे तो हम कबड्डी पूजा / दर्शन ही कहेंगे। इसे हम बुरा नहीं कहते हैं लेकिन उसका अपना उद्देश्य और परिणाम है। लेकिन ४८ मिनट, जो एक घंटे के करीब हैमें चित्त  शांत हो कर निश्छलता प्राप्त होती है। यह एक नियम सा है लेकिन इसके अपवाद हैं।
एक बच्चा एक कवि से पूछता है, “मुझे आप जैसा कवि बनना है। इसके लिए मैं क्या करूँ?
कवि ने कई एक कवियों का नाम बताते हुवे कहा कि इनकी पुस्तकें पढ़ो और लिखने की कोशिश करो शायद कवि बन जाओगे।
बच्चा फिर पूछता है, “आपने कौन से कवियों की पुस्तक पढ़ी थी?
मैंने तो किसी को नहीं पढ़ा।
अरे! जब आप नहीं पढ़े तो मुझे पढ़ने क्यों बोल रहे हो?
प्यारे बच्चे मेरे मन में कवि बनने का प्रश्न उठा ही नहीं। मैंने कविता लिखनी शुरू कर दी, लोगों ने बताया कि मैं एक कवि हूँ और अच्छी कवितायें लिखता हूँकवि ने कहा।
इसे अपवाद कहते हैं, अन्यथा अपवाद अपवाद नहीं सुविधाहो जाती है।

ब्लॉग में विशेष
विकास का मतलब
इवान इलिच, गांधी मार्ग, सितंबर-अक्तूबर २०१५ पृ.२०१५
अब यह मांग बढ़ रही है कि अमीर देश शस्त्र आदि पर खर्च करना रोक कर पिछड़े देशों के विकास पर खर्च करें। यह मांग ठीक नहीं है। लोगों को विदेशी मदद के प्रति सावधान रहना चाहिए। समझना चाहिए कि एक अमेरिकी ट्रक एक अमेरिकी टैंक से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
क्यों और कैसे? जानने के लिए यहाँक्लिक करें