शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

एक अति से दूसरी अति

जब हम एक अति पर पहुँच जाते हैं, तभी दूसरी अति पर बदलने की हमारी तैयारी शुरू होती है। जटिलता की हम अति पर पहुँच गए हैं। अब उसके आगे कोई उपाय नहीं  है, और विपरीत बात हमारी समझ में आ सकती है। जैसे कोई आदमी बहुत श्रम करके थक गया हो, तभी उसे नींद की बात समझ में आ सकती है। निद्रा श्रम के बिलकुल विपरीत है। उसी प्रकार जो नींद लेकर थक चुका हो उसे श्रम की बात समझ आ जाती है।

विपरीत से हम प्रभावित होते हैं, लेकिन विपरीत के साथ रह नहीं सकते। इसलिए हमारी आखिरी दिक्कत यह होती है कि जिससे हम प्रभावित होते हैं, उसके साथ रह नहीं सकते और जिसके साथ रह सकते हैं उससे हम कभी प्रभावित नहीं होते। इसलिए पुराने लोग ज्यादा होशियार थे, या कहें, चालक थे। वे कहते थे, विवाह किसी और से करना और प्रेम किसी और से करना। ये दोनों काम कभी एक साथ मत करना। विवाह उसके साथ करना जिसके साथ रह सको, और प्रेम उससे करना  जिससे प्रभावित हो। इनको कभी एक साथ मत लाना।

जहां जहां मशीन पूरी तरह आ जाएगी, वहीं-वहीं सवाल उठेगा कि आदमी अब समय का क्या करे? शक्ति का क्या करे? तकनीक का क्या करे? ज्ञान का क्या करे? और जिसका हम उपयोग नहीं कर पाते, उसका हमें दुरुपयोग करना पड़ता है। क्योंकि हम बिना किए नहीं रह सकते। करना तो कुछ  पड़ेगा ही। पाल सार्त्र ने कहा है हम चुनाव कर सकते हैं, लेकिन न चुनाव करने के चुनाव की कोई स्वतन्त्रता नहीं है।  चुनना तो पड़ेगा ही। करना तो कुछ पड़ेगा ही। अगर ठीक नहीं करेंगे, तो गलत करना पड़ेगा। शक्ति का तो उपयोग करना ही पड़ेगा। अगर सृजनात्मक न हुआ तो विध्वंस में हो जाएग।

एक बार कनफ्यूसियस एक गाँव से गुजरा। देखता है एक बूढ़ा आदमी अपने बगीचे में अपने बेटे को अपने साथ जोते हुए कुएं से पानी खींच रहा है। कनफ्यूसियस चकित हुआ और उस बूढ़े आदमी के पास  जाकर कहा कि क्या उसे पता नहीं है कि अब लोग घोड़ों या बैलों से पानी खींचने लगे हैं, राजधानी में तो कुछ मशीनें भी बना ली गई हैं, जिनसे पानी खींचा जाता है। उस बूढ़े आदमी ने कनफ्यूसियस को  हिदायत दी कि जरा धीरे बोले, कहीं उसका बेटा सुन न ले और उसे थोड़ी देर बाद आने के लिये कहा।

कनफ्यूसियस बहुत हैरान हुआ। जब वह थोड़ी देर बाद पहुंचा, उस बूढ़े ने, जो वृक्ष के नीचे लेटा  था, कनफ्यूसियस से कहा कि ये बातें यहाँ मत लाओ। यह तो मुझे पता है कि अब घोड़े जोते जाने लगे हैं। घोड़े जोत कर मैं बेटे का समय तो बचा दूँगा, लेकिन फिर बेटे के उस बचे हुए समय  का मैं क्या करूंगा? और घोडा जोत कर मैं बेटे की शक्ति बचा दूँगा, लेकिन उस शक्ति का मेरे पास कोई उपयोग नहीं है। तुम अपने घोड़े और मशीन को अपने शहर में रखो, यहाँ उसकी खबर मत लाओ।  


इसके पहले की हम आदमी को कोई मशीन दें, कोई शक्ति दें, उस शक्ति का सृजनात्मक उपयोग पहले बता दो। इसके पहले की हम आदमी के हाथ में एटम बम रखें  आदमी की आत्मा को इतना बड़ा बना दें की उसके हाथ में एटम बम रखा जा सके। अन्यथा एटम बम उसके हाथ में न रखें। छोटे आदमी के हाथ में एटम बम खतरनाक होगा। अज्ञानी के हाथ में शक्ति खतरनाक हो जाती है। अच्छा है अज्ञानी आदमी अशक्त हो। तो कम से कम कोई दुरुपयोग तो नहीं होगा। 


शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अपने घर से विलुप्त होती प्रजाति

विश्व की अनेक प्रजातियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से अनके ऐसे हैं जिनके बारे में  हमें  जानकारी ही नहीं है। अनेक ऐसे हैं जो अब नहीं हैं  लेकिन उनके कंकाल, चित्र, अन्य जानकारियाँ विश्व के संग्रहालयों (म्यूजियम) की धरोहर हैं और वहाँ देखे जा सकते हैं। अनेक विलुप्त होने के कगार पर हैं और बचा कर रखने की पहल लगातार हो रही है।  इनमें केवल पेड़-पौधे और पशु-पक्षी ही नहीं बल्कि मानव की भी प्रजातीय हैं।  इनमें वनवासी और जनजाति ही नहीं पूरी तरह से सभ्य, शिक्षित और होनहार जातियाँ भी हैं। प्राचीन चीन, ग्रीस, रोमन ऐसी ही कुछ सभ्यताएं हैं जिनके वाहक अब समाप्त हो चुके हैं और उनके विलुप्त हो जाने के कारण ही  किसी समय संसार की गिनी चुनी श्रेष्ठ सभ्यताओं का नामोनिशान नहीं रहा। आज हम बड़े गर्व से गाते हैं:
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
सारे जहाँ से अच्छा ......
लेकिन सावधान! हमारी इस सभ्यता के वाहक भी धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं और अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी सभ्यता का भी नामों निशान मिट जाएग। इसे बचा कर हम ही रख सकते हैं क्योंकि हमारी सभ्यता के ये वाहक हमारे ही घरों रहते हैं।

आने वाले १०-१५ वर्षों में  एक पीढ़ी संसार छोड़ कर जाने वाली है। कड़वा है लेकिन सच है। इस पीढ़ी के लोग बिलकुल ही अलग हैं। मसलन रात को जल्दी सोने वाले, सुबह जल्दी जागने वाले और भोर में घूमने निकलने वाले। आँगन और पौधों को पानी देने वाले, देव पूजा के लिए फूल तोड़ने वाले, पूजा अर्चना करने वाले, प्रतिदिन मंदिर जाने वाले। रास्ते में  मिलने वालों से बात करने वाले, उनका सुख दुख पूछने वाले, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाले, पूजा किए बगैर अन्न जल ग्रहण न करने वाले। उनका अजीब सा संसार ...... तीज, त्यौहार, मेहमान, शिष्टाचार, अन्न, धान्य, सब्जी, भाजी की चिंता। तीर्थयात्रा, रीति रिवाज, सनातन धर्म के इर्द गिर्द घूमने वाले। पुराने फोन पे ही मोहित,  फोन नंबर की डायरी मेंटेन करने वाले, रोंग नंबर से भी बातें करने वाले, समाचार पत्र को दिन भर में २-३ बार पढ़ने वाले। हमेशा एकादशी याद रखने वाले, अमावस्या और पूर्णिमासी याद रखने वाले। भगवान पर प्रचंड विश्वास रखने वाले लोग, समाज का डर पालने वाले लोग, पुरानी चप्पल, बानियान, चश्मे वाले लोग। गर्मियों में अचार-पापड़ बनाने वाले लोग, घर का कूटा हुआ मसाला इस्तमाल करने वाले लोग और हमेशा देशी टमाटर, बैंगन, मेथी, साग सब्जी ढूँढने वाले लोग। नजर उतारने वाले, सब्जी वाले से १-२ रुपए के लिए झिक झिक करने वाले। क्या आप जानते हैं ये सभी लोग धीरे-धीरे हमारा साथ छोड़ कर जा रहे हैं? क्या घर में कोई ऐसा है? यदि हाँ, तो उनका बेहद ख्याल रखें, अन्यथा एक महत्वपूर्ण सीख उनके साथ ही चली जाएगी। वो है, संतोषी जीवन, सादगी पूर्ण जीवन, प्रेरणा देने वाला जीवन, मिलावट और बनावट रहित जीवन, धर्म सम्मत मार्ग पर चलने वाला जीवन और सबकी फिक्र करने वाला आत्मीय जीवन।

   दैनिक विश्वामित्र से

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

पैसे दे शिक्षा ले

विद्याधर शास्त्री वाराणसी में विख्यात पंडित थे। धर्म ग्रन्थों का ज्ञान और अनुशीलन दोनों उन्हे प्राप्त था। उनके शिष्य और विद्यार्थी जहां भी जाते उन्हे अपने गुरु और आचार्य की जितनी ही प्रशंसा प्राप्त होती। विद्याधर शास्त्री की ख्याति का कोई ओर छोर नहीं था। कहा जाता है कि उनके गुरुकुल में एक सहस्त्र विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर चुके थे और अपने अपने क्षेत्र में  यश और धन दोनों उपार्जन कर रहे थे। विद्याधर शास्त्री को भी बिना मांगे इतनी गुरु दक्षिणा मिलती थी कि वे पूर्ण वैभव के साथ जीवन यापन करने में समर्थ थे।

काल की गति किसी के लिए नहीं ठहरती। विद्याधर शास्त्री का भी समय आ गया तब उन्होने भी खुद को चित्रगुप्त के समक्ष खड़ा पाया। बोले, “महाराज, मैंने तो इतना विद्यादान किया है कि उसके पुण्य के बखान से  आपका पूरा खाता भी अपर्याप्त होगा”।
चित्रगुप्त बोले, “आचार्य, आप नि:संदेह विद्वान हैं, परंतु एक बात आप भी समझ नहीं पाये। आपने अगर किसी एक भी ऐसे शिष्य को विद्या दी होती, जो कि आपकी गुरुदक्षिणा देने में असमर्थ था, तब मैं उसे दान समझता। आप ने विद्यादान कहाँ किया, आपने तो विद्या का विक्रय किया है”।

शिक्षा, जो एक सामाजिक कृत्य, समाज  सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व हुआ करता था एक व्यवसायिक कृत्य, व्यवसाय का जरिया और व्यवसायियों का उत्तरदायित्व हो गया है। शिक्षण संस्थायें, इन संस्थाओं में उपलब्ध पाँच सितारा सुविधाओं, शिक्षा के अलावा दी जाने वाली अन्य शिक्षाओं तथा वहाँ से निकले छात्रों को कहाँ कितना वेतन मिलता है इसकी चर्चा करती हैं। वहां क्या शिक्षा दी जाती है, कैसे शिक्षा दी जाती है, शिक्षकों का क्या स्तर है, वहाँ से निकले छात्र कैसे इंसान बने इसकी कोई जानकारी नहीं है।

कई दशकों पूर्व सिटी कॉलेज के आचार्य ने कहा, “शहर के प्रतिष्ठित कॉलेज केवल उन्ही विद्यार्थियों को प्रवेश देती हैं जिन्हे माध्यमिक में प्रथम श्रेणी प्राप्त होता है। फिर वे छात्र स्नातक की परीक्षा में भी वैसा ही परिणाम देते हैं। हम तीसरी श्रेणी तथा कंपपार्टमेंटल से पास होने वाले विद्यार्थियों को लेते हैं, लेकिन स्नातक की परीक्षा में सब  पास होते हैं और उनमें से कइयों को  प्रथम श्रेणी भी प्राप्त होता है”।

पहले शिक्षा ले फिर पैसे दे, अब पैसे दे तब शिक्षा ले।
 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018